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इनसे रहे सावधान, क्यंकि यह अब छात्र नहीं रहे

Beware of them, because they are no longer students बांसवाड़ा जिले में सरकारी-गैरसरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों की दिनोंदिन विकृत होती मानसिकता चिंता का कारण बन गई है। इंटरनेट संस्कृति को दोष दें या घरेलू वातावरण को, स्कूलों में बिगड़ते माहौल को जिम्मेदार मानें या सोहबत को, जो भी हो नतीजा उसका भावी पीढ़ी को गर्त की ओर ले जाता दिखाई दे रहा है।

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इनसे रहे सावधान, क्यंकि यह अब छात्र नहीं रहे

इनसे रहे सावधान, क्यंकि यह अब छात्र नहीं रहे

Beware of them, because they are no longer students बांसवाड़ा जिले में सरकारी-गैरसरकारी स्कूलों के विद्यार्थियों की दिनोंदिन विकृत होती मानसिकता चिंता का कारण बन गई है। इंटरनेट संस्कृति को दोष दें या घरेलू वातावरण को, स्कूलों में बिगड़ते माहौल को जिम्मेदार मानें या सोहबत को, जो भी हो नतीजा उसका भावी पीढ़ी को गर्त की ओर ले जाता दिखाई दे रहा है।

यह हकीकत हाल ही सामने आए घटनाक्रमों से सामने आ रहे हैं। इससे घर-परिवार और शिक्षक वर्ग ही नहीं, पूरा समाज प्रभावित होने लगा है। ताज्जुब यह कि बच्चों की हरकतें निगाह के सभी के हैं। जब-तब अवसर आने पर भाषणबाजी भी होती है लेकिन इसका तोड़ नहीं सूझ रहा। ये हालात बढ़ते रहे तो शांत कहे जाने वाले वागड़ की यह नई पौध आगे संक्रमित होने की आशंका है।

सर्टिफिकेट और डिग्री की पढ़ाई नाकाफी

अमूमन स्कूल स्तर पर सालभर में अच्छे अंकों से पास का सर्टिफिकेट और कॉलेज स्तर पर डिग्री के मकसद से मशक्कत के बीच नैतिक ज्ञान विलोपित हो रहा है। फिर जब विद्यार्थी जीवन में भटकाव है तो आगे सुनहरे भविष्य की बात बेमानी है।

केस-1..बात-बात में चाकू से जानलेवा वार

शहर के सबसे बड़े सरकारी स्कूल में हाय-हैलो के बीच जाने कौनसी पुरानी टसक याद आई और चाकू निकाल कर दे मारा। नतीजे में घायल छात्र अस्पताल तो उसी दिन हमलावर छात्र सलाखों के पीछे।

केस-2...बदजुबानी पर टोका तो उम्र का लिहाज भी छोड़ा
उदयपुर रोड से सटे निजी स्कूल के पास एक वृद्ध की गाड़ी अचानक बंद पड़ी। मदद की आस में इधर-उधर देखा तो स्कूल के बाहर बतियाते सभ्रांत घरों के बच्चों की टोली दिखी। छात्राओं की मौजूदगी में यहां बच्चों के संवाद में खुली गालियां सुनकर चौंके वृद्ध ने टोका तो उनसे ही बदजुबानी हो गई। आखिर अपने सम्मान की खातिर वृद्ध ने खुद को परे किया, एक युवक की मदद से गाड़ी स्टार्ट कर रवानगी की।

केस-3...चौथी में चीटिंग, डांट पर पैरवी में आए अभिभावक

शहर के ही एक अन्य निजी स्कूल में चौथी कक्षा का टर्म टेस्ट। एक छात्र हाथ पर कुछ प्रश्नों ने उत्तर पेन से लिखकर लाया और लगा नकल करने। टीचर ने पकड़ा और डांट पिलाकर हाथ धुलवाए। फिर घर लौटकर बच्चे ने बताया तो दूसरे दिन टीचर की शिकायत करने अभिभावक पहुंच गए । माजरे से वाकिफ संस्था प्रधान ने अभिभावक को समझाने की चेष्टा की तो बात उल्टा पड़ गई। अभिभावक आंखें तरेरते हुए यह कहकर चल दिए कि मेरा बेटा तो ऐसा ही करेगा।

केस-4...यूनिफॉर्म को लेकर डांट पर पीटीआई को लगाया थप्पड़

देहात के सरकारी स्कूल में बगैर यूनिफॉर्म पहने चटकीले कपड़ों में आए 12वीं के छात्र को पीटीआई ने डांट लगाई तो पलटकर उसने थप्पड़ जड़ दिया। हाथ मे कड़ा पहने छात्र की अचानक इस हरकत से पीटीआई चेहरे पर आई चोट से खून टपकने लगा। यह असहनीय हरकत संस्था प्रधान तक पहुंची। फिर पुलिस तक शिकायत और आखिर छात्र की गिरफ्तारी हुई।

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मैं क्या करूं, सवाल से जिम्मे को विराम

घर-स्कूल हो या बाजार, आएदिन बच्चों की बेअदबी पर परिजन स्कूल पर तो स्कूल परिवार को जिम्मेदार बताकर टलते रहे हैं। हकीकत में कल तक पड़ोसियों की भी खोजखबर रखने वाले आज अपनों को लेकर भी बेपरवाह हैं। इससे स्वतंत्रता के नाम पर बच्चों में हावी होती स्वछंदता के दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। उलझते मामलों पर मैं क्या करुं कहकर पल्ला झाडऩे की फितरत भी परेशानियों में इजाफा कर रही है। ऐसे में हर स्तर पर जिम्मेदारी से नियंत्रण जरूरी हो गया है।

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मनोवैज्ञानिक तरीके से समाधान निकालना होगा

स्कूली विद्यार्थियों में बढ़ती अनुशासनहीनता संदेह चिंताजनक है। किशोरावस्था की यह स्वच्छंदता भविष्य में सामाजिक नेतृत्व पर प्रश्न चिन्ह है। इसका मुख्य कारण सामाजिक स्तर का पतन एवं विद्यालयों में सक्षम नेतृत्व का अभाव है। सरकार एवं बाल संरक्षण के कठोर निर्देशों के कारण भी छात्रों के समक्ष अध्यापक विवश नजर आते हैं। समाज, सरकार और शिक्षक को संयुक्त रूप से मनोवैज्ञानिक तरीके से इस समस्या का समाधान निकालना होगा।

- राजेंद्रप्रसाद द्विवेदी,सेवानिवृत्त शिक्षा अधिकारी

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शैक्षिक ज्ञान से काम नहीं चलेगा

बीते कुछ वर्षों में स्कूल-कॉलेज में अनुशासनहीनता बढ़ी है। केवल शैक्षिक ज्ञान से काम नहीं चलेगा। गांवों-शहरों में हर स्तर पर बुद्धिजीवियों को जिम्मेदारी के साथ गलत आचरण अपना चुके बच्चों को सही राह पर लाने के सख्त प्रयास करने होंगे। स्वच्छ भारत अभियान की तरह अब नैतिकता के जन आंदोलन की जरूरत है।

-डॉ. सरला पंड्या प्राचार्य, हरिदेव जोशी कन्या महाविद्यालय

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मौजूदा हालात में सुधार की जरूरत

बच्चों की विकृत होती मानसिकता के लिए मल्टीफेक्टर प्रभावकारी है। किसी एक चीज को जिम्मेदार नहीं कहा जा सकता। किसी से लडकऱ आए तो शाबाशी दे रहे या डांट लगा रहे इस पर बच्चे का आगे का रवैया निर्भर है। टीवी, यू-ट्यूब का दुष्प्रभाव और स्कूल का वातारण भी काफी हद तक जिम्मेदार रहता है। मौजूदा हालात में सुधार के लिए समग्र प्रयासों की जरूरत है। अनुशासन हर स्तर पर ईमानदारी से जरूरी है।

-डॉ. शिल्पा मईड़ा, मनोचिकित्सक, एमजी अस्पताल


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