
बांसवाड़ा : दिगम्बर जैन मुनि सुधीरसागर ने त्यागी देह, जिस दिन जन्मे उसी दिन ली संसार से विदाई
बांसवाड़ा. दिगम्बर जैन मुनि सुधीरसागर ने मंगलवार तडक़े समाधि लेकर देह त्याग कर दिया। बाहुबली कॉलोनी स्थित नवनिर्मित संत भवन में रात करीब 2.40 बजे उन्होंने देहत्यागी। वे 73 वर्ष के थे। मुनि यहां उनके दीक्षा गुरु आचार्य सुनीलसागर के ससंघ सान्निध्य में विराजित थे। मुनि के देह त्याग के बाद सुबह दस बजे संत भवन से उनकी चकडोल शोभायात्रा निकाली गई। जिसमें मुनि के परिवारजन समेत बड़ी संख्या में जैन समाज के लोग, आचार्य सुनीलसागर व ससंघ रह रहे सभी मुनि, माताजी, ब्रह्मचारी, ऐलक-क्षुल्लक आदि साथ चले। चकडोल यात्रा खांदूकॉलोनी स्थित समाधि स्थत पहुंची, जहां उनके गृहस्थ जीवन के पुत्र अंकुर, पुत्रियां रुचि, मोना, दामाद आदि ने जैन धर्म विधि विधान के अनुसार मुखाग्नि दी गई। मुनि सुधीरसागर का जन्म 31 दिसंबर 1946 को भोर के समय ही हुआ था और उन्होंने देह त्याग भी इसी तिथि को लगभग जन्म के समय ही की। यह दुर्लभ ही संयोग रहा है। ऐसा कम ही देखने को मिलता है कि जिस दिन व समय पर जन्में उसी तिथि समय पर देहत्याग हो।
गृहस्थ जीवन के परिजन आ रहे थे जन्म दिन मनाने, मुनि व माताजी रहे उपवास पर : - मुनि सुधीर सागर के गृहस्थ जीवन के परिजन उनका जन्म दिन मनाने के लिए दिल्ली से बांसवाड़ा आ रहे थे। इसके लिए वे 30 दिसंबर को ही रवाना हुए थे। इस बीच उन्हें रास्ते में ही सूचना मिली कि मुनि ने समाधि लेते हुए अपनी देह त्याग दी है। बाद में सुबह यहां उनके पहुंचने पर चकडोल शोभायात्रा में निकालने आदि के कार्यक्रम संपन्न किए। मुनि सुधीरसागर के समाधि लेते हुए देहत्याग के बाद मंगलवार को बाहुबली कॉलोनी संत भवन में विराजित आचार्य सुनीलसागर समेत ससंघ मुनियों व माताजी ने उपवास रखा। वे आहारचर्या पर नहीं उतरे। मुनियों की आचारचर्या दो काल में होती है। पहली सुबह 10 से 11 बजे के दौरान। यदि आहारचर्या का यह समय किसी कारणवश टल गया तो इसके बाद दूसरे काल दोपहर एक बजे भी आहारचर्या पर उतर सकते है। हालांकि जैन मुनि दिन में एक बार ही आहार लेते है, लेकिन मुनि की समाधि पर सभी ने उपवास रखा। मुनि सुधीरसागर एक अच्छे लेखक भी थे। उन्होंने पत्रिकाओं में कई लेख लिखे। गिरनार वंदन नाम से यात्रा वृत्तांत पुस्तक लिखी है। वे 20 माह 11 दिन मुनि अवस्था में रहे। गुरु की आज्ञा में कठोर साधना करते हुए मुनि के 28 मूल गुणों का पालन करते थे। 24 दिसंबर से नियम संल्लेखना ली, संथारा लिया। तब से केवल पेय पदार्थ 24 घंटे में एक बार ही लेते थे। सात दिन पहले ही देहत्याग की तारीख प्रतीकात्मक रूप से बता दी थी। उनकी आत्मा को शांति मिले। जिस दिन संघ में किसी संत की समाधि होती है। संथारा सींझता है। तब उस दिन सभी मुनि निर्जल उपवास करते हैं। आज भी सभी का उपवास है।
Published on:
01 Jan 2020 03:30 pm
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