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बच्चों के स्वास्थ्य में बांसवाड़ा के हालात बांग्लादेश आैर नेपाल जैसे देशों से भी बदतर

बांसवाड़ा जिले का हाल बांग्लादेश और नेपाल से भी बुरा है, जहां बच्चों की मृत्यु दर बेहद ज्यादा है।

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आवेश तिवारी/जयपुर। बांसवाड़ा में 90 मासूमों की मौत के बाद राज्य सरकार के उन दावों पर फिर से सवाल खड़े हो गए हैं, जिनमें राज्य में बच्चों की मृत्युदर को 2025 तक घटाकर आधा करने का दावा किया गया था। गौरतलब है कि राज्य में 2015 में नवजात शिशु मृत्युदर प्रति एक हजार 41 बच्चों की रही है, निस्संदेह पिछले एक दशक के दौरान शिशु मृत्युदर में कमी आई है, लेकिन आदिवासी बहुल बांसवाड़ा में हालात ज्यादा नहीं बदले हैं। यह वो जिला है जहां बच्चों की मृत्यु दर राष्ट्रीय दर की लगभग दोगुनी रही है।

तुलनात्मक तौर पर देखें तो बांसवाड़ा जिले का हाल बांग्लादेश और नेपाल से भी बुरा है, जहां बच्चों की मृत्यु दर बेहद ज्यादा है। गौरतलब है कि राजस्थान स्वास्थ्य सेवाओं पर सर्वाधिक धन खर्च करता है। रिजर्व बैंक की रिपोर्ट की मानें तो मौजूदा वित्तीय वर्ष में स्वास्थ्य सेवाओं पर कुल बजट का 5.6 फीसद खर्च किए जाने का आकलन किया गया है, फिर भी हालत काबू से बाहर हो रहे हैं।

50 फीसदी से ज्यादा बच्चों का कम वजन
राष्ट्रीय फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक जिले में 84.6 फीसदी बच्चों में खून की कमी पाई गई है, जबकि पांच साल में 50.7 फीसदी बच्चों का वजन औसत से कम है। पॉपुलेशन रिसर्च सेंटर की एक रिपोर्ट कहती है कि यहां एक माह में करीब 1500 डिलीवरी होती है ऐसे में नवजात के लिए समस्याएं बढ़ी है। सेंटर ने यहां ज्यादा सुविधाओं की सिफारिश की है।

बांसवाड़ा के लिए की गई थी सिफारिश
बांसवाड़ा के जिला अस्पताल के लिए पॉपुलेशन रिसर्च सेंटर ने सरकार से कुछ सिफारिशें की गई थी, जो अब तक लंबित हैं सेंटर ने कहा था कि अस्पताल में अभी 61 फीसदी विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी है। जनस्वास्थ्य की दृष्टि से इन रिक्त पदों को तत्काल भरे जाने की जरूरत है। जिला अस्पताल में ग्रेड एक और ग्रेड दो की नर्सिंग अधीक्षक की तत्काल नियुक्ति की जानी चाहिए।


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