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अपनी मेहनत और जज्बे से रामशरण वर्मा बने खेती के जादूगर, किसानों को दिखाई नई दिशा

रामशरण वर्मा ने काबिलियत के बल पर अलग पहचान बनाई...

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अपनी मेहनत और जज्बे से रामशरण वर्मा बने खेती के जादूगर, किसानों को दिखाई नई दिशा

बाराबंकी. हमारे देश में ज्यादातर किसानों की हालत बहुत दयनीय है। अक्सर किसान आर्थिक हातालों के आगे मजबूर होकर आत्महत्या तक कर ले रहे हैं। लेकिन इन सब से अलग समाज में कुछ किसान ऐसे भी हैं जो अपनी मेहनत और जज्बे के बल पर सफलता के एक मुकाम तक पहुंच चुके हैं। ऐसे ही एक किसान उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में हैं। जिन्होंने अपनी सोच और काबिलियत के बल पर अपनी अलग पहचान बनाई। हाईस्कूल फेल होते हुए भी ये किसान खेती के माध्यम से करोड़पति बने और अपनी खेती से आज औरों को नई दिशा दिखा रहे हैं।

रामशरण वर्मा ने बनाई अपनी अलग पहचान

हम बात कर रहे हैं बाराबंकी जिले के दौलतपुर गांव रामशरण वर्मा की। रामशरण वर्मा एक गरीब किसान के घर में पैदा हुए, लेकिन आज जिले में ही नहीं बल्कि देशभर में अफने नाम और काम से पहचाने जाते हैं। या यूं कहें कि रामशरण वर्मा आज किसानों की शान बन चुके हैं। रामशरण वर्मा के खेतों पर अक्सर देश-विदेश से कृषि वैज्ञानिक और किसान आते रहते हैं। वह यहां रामशरण वर्मा से उनकी खेती करने की तकनीकि और तरीका सीखते हैं। रामशरण वर्मा टिशूकल्चर पद्धति से केले की खेती करते हैं और आज केले की पैदावार में रामशरण वर्मा सबसे आगे निकल चुके हैं। रामशरण वर्मा एक एकड़ केले की फसल में ढाई से साढे तीन लाख तक फायदा उठाते हैं। इसके अलावा रामशरण वर्मा अपने खेतों में अलावा टमाटर और आलू की भी खेती करवाते हैं।

मिला राष्ट्रीय कृषि पुरस्कार

रामशरण वर्मा की इसी मेहनत का नतीजा है कि उन्हें साल 2007 और 2010 में राष्ट्रीय कृषि पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। राष्ट्रीय कृषि पुरस्कार को देश के सबसे बड़े कृषि सम्मान के रूप में जाना जाता है। इसके साथ ही साल 2014 में रामशरण वर्मा को बागवानी के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। आपको बता दें कि रामशरण वर्मा को कई प्रदेशों के मुख्यमंत्री और राज्यपाल सम्मानित कर चुके हैं। साल 2012 में पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय एपीजे अब्दुल कलाम ने तो रामशरण वर्मा को खेती का जादूगर होने का खिताब देते हुए सम्मानित किया था।

खेती में मेहनत बहुत जरूरी

रामशरण वर्मा ने अपनी इन उप्लब्धियों के बारे में बताते हुए कहा कि उनके पास पुश्तैनी 6 एकड़ जमीन थी। जिसमें उनके पिताजी खेती करते थे। उन्होंने बताया कि उनकी सफलता का राज उनके द्वारा खेतों पर रहकर पेड़ पौधों से सुख दुख की बातें करना है। साल 1986 से अज तक वह 6 एकड़ जमीन से डेढ़ सौ एकड़ पर खेती कर रहे हैं। उनका कहना है कि खेती में मेहनत बहुत जरूरी है। रामशरण वर्मा ने बताया कि प्रदेश के कई जिलों से किसान उनके फार्म हाउस पर आकर उनसे खेती की टेक्निक सीखते हैं।

बदली पूरे गांव की तस्वीर

रामशरण वर्मा ने दशकों से केवल अपनी खेती ही नहीं बल्कि पूरे गांव की खेती की तस्वीर बदल दी। आज गांव में उनके अलावा गांव में सैकड़ों किसान केले की खेती करके अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। रामशरण अपनी जिंदगी में खेती के माध्यम से सबकुछ हासिल कर चुके हैं। खेती से अच्छा मुनाफा कमाकर वे आज लोगों के लिए मिसाल बन चुके हैं। उनके गांव के अलावा दूर-दूर से लोग आते हैं और रामशरण वर्मा से खेती के गुर सीखकर आज खेती से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। रामशरण वर्मा आज एक वीआईपी की तरह लक्जरी जीवन भी जी रहे हैं और मौका पड़ने पर खेत में मजदूरों के साथ घंटों खेतों में जुटकर पसीना भी बहाते हैं। गांव में ही रामशरण वर्मा अपने दो मंजिला फार्महाउस में रहते हैं।

खेती में लागत ज्यादा, मुनाफा कम

रामशरण वर्मा कहते हैं कि आज सबसे बड़ी समस्या खेती के लिए मजदूरों की है, क्योंकि गांव से हर साल बड़ी संख्या में लोग शहर की तरफ जा रहे हैं। जिससे गांव में बड़ी समस्या उत्पन्न हो रही है। आज कोई भी व्यक्ति खेती नहीं करना चाहता क्योंकि खेती में लगातार लागत बढ़ती जा रही है। जबकि उसके मुकाबले मुनाफा कम हो रहा है। किसानों को उनकी फसलों का वाजिब दाम भी नहीं मिलता। सरकार को इस तरफ ध्यान देना चाहिए कि किसानों की फसलों के पूरे दाम उन्हें मिलेंं।