वकालत का पेशा छोड़कर रविन्द्र ने की खीरा-ककड़ी की खेती, सालाना कमाई एक करोड़ रुपए
इनमें नमक मिर्च का मसाला लगाने से इनका स्वाद ओर बढ़ जाता है। इसी कारण हाइवे से गुजरती कई चमचमाती कारें एवं दुपहिया वाहन चालक मीठे एवं रसभरे अमरूदों को देख यहां रूकने का लोभ नहीं त्याग पाते। अमरूद के बाग मालिक बगीचे को हर साल उत्पादन एवं किस्म के अनुरूप 10 से 50 हजार रुपए बीघा की दर से किराए पर दे देते हैं। जिसके बाद किराए पर लेने वाले लोग सपरिवार साल भर यहीं रह अपनी आजीविका चलाते हैं।
लगा जड़ गलन रोग
जैविक खेती के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित गुलाबपुरा के किसान गणपत लाल नागर के अनुसार अमरूद की नई किस्म बर्फ खान गोला को काफी दिन तक स्टोर किया जा सकता है। जबकि लखनऊ-49 किस्म ज्यादा दिन भंडारण नहीं की जा सकती। अमरूद का बगीचा लगभग 25 साल बारहों महीने फल देता है। विशेषकर सर्दी में भरपूर अमरूद आते हैं।
एकाएक धड़ाम से गिरे सब्जियों के भाव, किसान आहत
इन बगीचों से क्षेत्र के लगभग 150 जनों को रोजगार मिला हुआ है। लेकिन पिछले 5-6 साल से अमरूद बगीचों में जड़ गलन रोग लग जाने से कई पेड़ों की डालियां सूखने लगी हैं। किसान नागर ने बताया कि उनके बगीचे की 50 पौध इस रोग की चपेट में आकर खत्म हो गई। इसका निदान कृषि वैज्ञानिक भी नहीं तलाश पा रहे। ऐसे में यही हाल रहा तो आने वाले कुछ सालों में लोग पलायथा क्षेत्र के अमरूदों का स्वाद नहीं चख पाएंगेे।