
इस रामलीला पर ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड विश्वविद्यालय ने शोधपत्र जारी किया है। साथ ही सन 2018 से विश्वविद्यालय की हैंडबुक्स ऑफ फेस्टिवल में भी पाटूंदा की रामलीला पर आधारित एक अध्याय शामिल है।
विश्व भर में प्रसिद्ध विरासत को सहेज रहे ग्रामीण, पाटूंदा में 165 वर्षों से हो रहा आयोजन
जितेन्द्र नायक @ बडग़ांव. कस्बे के नजदीक एक छोटा सा गांव पाटूंदा अपनी अनोखी रामलीला के लिए जाना जाता है। दरअसल हाड़ौती भाषा की ढाई कड़ी शैली में मंचन होने वाली यह रामलीला भारत के कई राज्यों में अपने अनोखे मंचन के कारण पुरस्कार प्राप्त कर चुकी है। साथ ही ऑस्ट्रेलिया की क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी में इसे अध्याय के रूप में शामिल किया गया है। इस रामलीला की सबसे खास बात यह है की रामलीला को मंचन करने वाले कोई प्रोफेशनल कलाकार नहीं बल्कि गांव के ही आम नागरिक हैं। गांव के रंगमंच पर इस वर्ष भी ग्रामीणों द्वारा इस अनोखी रामलीला का मंचन किया जा रहा है।
ऐसे हुई शुरूआत
पाटूंदा के ही रहने वाले गणपत लाल दाधीच जब काशी से पढकऱ अपने गांव पहुंचे तब उन्होंने रामायण की चौपाइयों को संक्षिप्त रूप में संग्रहित कर हाड़ौती की ढाई कड़ी शैली में इस इसकी रचना की। इस रामलीला में रावण से लेकर राम तक और शत्रुघ्न से लेकर सुग्रीव तक बनने वाला हर व्यक्ति गांव का ही किसान या फिर सरकारी नौकरियों में अपनी सेवाएं दे रहा ग्रामीण है। गांव के 65 वर्ष के बुजुर्ग से लेकर 14 वर्ष के बच्चे तक इस रामलीला में अभिनय करते हैं । इन कलाकारों के श्रृंगार से लेकर वस्त्रों तक की डिजाइन भी यह ग्रामीण खुद ही करते हैं। बिना किसी अनुभवी और प्रोफेशनल कलाकारों की होने वाली रामलीला, देश भर में अपना लोहा मनवा चुकी है।
हो चुका है शोध
इस रामलीला पर ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड विश्वविद्यालय ने शोधपत्र जारी किया है। साथ ही सन 2018 से विश्वविद्यालय की हैंडबुक्स ऑफ फेस्टिवल में भी पाटूंदा की रामलीला पर आधारित एक अध्याय शामिल है।
भारत सरकार ने भी किया प्रोत्साहित
भारत सरकार भी इस रामलीला को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने के लिए अपने खर्च पर अयोध्या, दिल्ली, चित्रकूट, भोपाल जैसे राष्ट्रीय मंचों पर मंचन करवा चुकी है। यह रामलीला में गणेश वंदना, गुरु वंदना, लक्ष्मीनाथ भगवान की वंदना और अखाड़ा बंधन से प्रारंभ होती है। इस रामलीला में भारत माता की वंदना भी एक विशेष आकर्षण का केंद्र है। इसे सन 1945 के करीब आजादी के चल रहे संघर्ष के समय लोगों को जन जागृत करने के लिए जोड़ा गया था। इसकी रचना भी रामलीला के कलाकार एवं अध्यापक रहे जगन्नाथ शर्मा ने की थी, यह वंदना आज भी लगातार इस रामलीला में की जाती है । इस प्रसिद्ध रामलीला को राजस्थान के सामान्य ज्ञान की पुस्तकों में भी पढ़ाया जाता है ।
चांदी का छत्र किया भेंट
रामलीला का रियासतकालीन महत्व इस से भी पता चलता है कि कोटा दरबार ने प्रोत्साहन स्वरूप 1950 में इस रामलीला को चांदी का छत्र भेंट किया था। चैत्र नवरात्रि की शुक्ल पंचमी से शुरू होकर यह रामलीला कृष्ण पक्ष की पंचमी तक आयोजित की जाती है। जहां इस रामलीला आयोजन से पूर्व शोभायात्रा भी निकाली जाती है, यह भी आकर्षण का केंद्र रहती है । रामलीला के दौरान देशभर के कई इतिहासकार भी यहां इस मंचन को देखने पहुंचते हैं।
Published on:
05 May 2025 11:35 am
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