मौलाना ने कहा कि संविधान ने मुस्लिमों को मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक जिंदगी गुजारने की इजाजत दी है। अब ऐसी परिस्थिति में मुसलमान संविधान पर अमल करते हुए कुरान और हदीस पर अमल करता है। अगर शरीयत के खिलाफ कोई बात कही जाती है तो मुसलमान उसको मानने को बाध्य नहीं है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि जो महिलाएं कोर्ट जाती है, उनको मेरा सुझाव हैं कि वो इस्लामी संस्था दारुल इफ्ता और दारुल क़ज़ा में आएं।