
देवेन्द्र झाझडिय़ा की असल जिंदगी सलमान खान की फिल्म 'सुल्तान' की स्टोरी से मिलती जुलती है। इस रियल लाइफ स्टोरी में देवेन्द्र भाला फेंक का 'सुल्तान' बना तो पत्नी मंजू झाझडिय़ा ने 'आरफा' जैसा रोल बखूबी निभाया है। मंजू खुद कबड्डी की नेशनल प्लेयर रह चुकी हैं।
शादी के बाद दोनों के सामने खेलों में स्वर्णिम भविष्य बनाने का अवसर था, मगर परिवार की बागडोर संभालने के लिए किसी एक को पीछे हटना जरूरी हो गया था। तब मंजू ने खुद की बजाय देवेन्द्र को आगे बढ़ाने का फैसला किया।
देवेन्द्र ने बताया कि पास के गांव चीमनपुरा निवासी मंजू से वर्ष 2007 में शादी हुई। तब वे मलसीसर स्थित हैलिना कौशिक महाविद्यालय में फाइनल की स्टूडेंट व कबड्डी खिलाड़ी थीं।
वर्ष 2009-10 में मंजू के सामने इंटरनेशनल लेवल की कबड्डी प्रतियोगिता में हिस्सा लेने का अवसर आना था, मगर उन्हीं दिनों बेटी जिया पैदा हुई। तब दोनों में से किसी एक को खेल छोड़कर घर व बेटी को संभालना था। मंजू ने देवेन्द्र का कॅरियर बनाने के लिए कबड्डी छोड़ दी।
गेम छोडऩा चाहा तो बढ़ाया हौसला
मंजू ने न केवल परिवार की जिम्मेदारी बखूबी निभाई बल्कि देवेन्द्र का हौसला बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वर्ष 2013 में देवेन्द्र के कंधों व घुटनों में दर्द हो गया। वे खेल छोडऩा चाहते थे, मगर मंजू ने उन्हें 2016 के पैरा ओलम्पिक में भारत के लिए स्वर्ण पदक लाने का सपना याद दिलाया और गेम छोडऩे की बजाय दर्द हो जितने समय कम खेलने के लिए प्रेरित किया, मगर उन्हें गेम नहीं छोडऩे दिया। इनके दो साल का बेटा काव्यान भी है।
15 मिनट सिर्फ खेल की बातें
ओलम्पिक से भारत के लिए स्वर्ण पदक लाना कभी मेरा भी ख्वाब था, जो पति के जरिए अब पूरा हो गया। उन्हें आगे बढ़ाना था और परिवार की जिम्मेदारी भी संभालनी थी तो मैंने कबड्डी छोड़ दी। किसी प्रतियोगिता या प्रशिक्षण के लिए देवेन्द्र घर से बाहर होते हैं तो शुरुआत की 15 मिनट तक हम सिर्फ खेल की ही चर्चा करते हैं।
-मंजू झाझडिय़ा, देवेन्द्र की पत्नी
Published on:
14 Sept 2016 07:04 pm
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