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रेगिस्तान में दिखाएं 1965 और 1971 का युद्ध, जैसलमेर की तरह दौड़े आएंगे पयज़्टक

- बाड़मेर-जैसलमेर-बीकानेर-श्रीगंगानगर में विकसित हों बॉडज़्र टूरिज्म- जैसलमेर लोंगेवाला से कमा रहा है 15 करोड़ सालाना

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रेगिस्तान में दिखाएं 1965 और 1971 का युद्ध, जैसलमेर की तरह दौड़े आएंगे पयज़्टक

रेगिस्तान में दिखाएं 1965 और 1971 का युद्ध, जैसलमेर की तरह दौड़े आएंगे पयज़्टक

एक्सट्रा ऑडिज़्नरी स्टोरी
फोटो समेत
बाड़मेर पत्रिका.
1971 के युद्ध की स्वणज़्जयंती वषज़् में राज्य के चार जिले बाड़मेर-जैसलमेर-बीकानेर और श्रीगंगानगर के युद्धशौयज़् को बॉडज़्र टूरिज्म बनाकर मैप तैयार हों तो न केवल अदम्य साहस, शौयज़्,वीरता और युद्ध कौशल से आने वाले पीढिय़ां रूबरू होगी अपितु बॉडज़्र टूरिज्म के नए अध्याय से प्रदेश जुड़ जाएगा। जैसलमेर के लोंगेवाला में करीब 50 हजार सैलानी सालाना पहुंच रहे है और 10 से 15 करोड़ का पयज़्टन व्यवसाय फलफूल रहा है। इसी नक्शे पर बाड़मेर,बीकानेर और श्रीगंगानगर को उतारा जाए तो बॉडज़्र टूरिज्म की इबारत लिखी जाएगी।
1965 और 1971 के युद्ध क्यों महत्वपूणज़्
1965 और 1971 का युद्ध देश की पश्चिमी सीमा के बाड़मेर,जैसलमेर, बीकानेर और श्रीगंगानगर की जमीन से लड़ा गया था, यहां से पाकिस्तान को न केवल खदेड़ा गया भारत ने 1971 के युद्ध में बाड़मेर से छाछरो तक फतेह कर लिया था।
जैसलमेर से लें सीख :15 करोड़ कमाई,50 हजार सैलानी आते है
जैसलमेर पयज़्टन नगरी है लेकिन यहां से करीब 160 किमी दूर तनोट माता के मंदिर के साथ ही लोंगेवाला में 1971 के भारत पाक युद्ध के जीवंत दृश्य है, जिसको देखने के लिए करीब 50 हजार सैलानी हर साल आते है और 15 करोड़ की कमाई इससे पयज़्टन को हो रही है। यह तीनों जिलों के लिए बॉडज़्र टूरिज्म का रोडमैप बनाने का एक बड़ा आधार है।
बाड़मेर: मुनाबाओ-गडरारोड़
मुनाबाओ: रिट्रीट सेरेमनी हों
वाघा बॉडज़्र की तजज़् पर मुनाबाव बॉडज़्र: पंजाब के वाघा बॉडज़्र पर दोनों देशों की ओर से संयुक्त परेड(रिट्रीट सेरेमनी) का आयोजन किया जा सकता है। यहां पर मुनाबाव- खोखरापार जीरो लाइन पर यह आयोजन बीएसएफ और पाक रेंजसज़् कर सकते है। अटारी में इसे देखने सैलानियों का हुजुम उमड़ता है।
गडरारोड़:रेलवे शहीद स्मारक
भारत-पाक युद्ध 1965 में गडरारोड़ के पास 17 रेलकमीज़् शहीद हुए। इनकी याद में यहां स्मारक बना है। मांग है कि यहां जैसलमेर के लोंगेवाला की तजज़् पर स्मारक और स्थल बनें तो पयज़्टकों का बड़ा जुड़ाव यहां हो सकता है, जो बॉडज़्र टूरिज्म के लिए मील का पत्थर साबित होगा।
कच्छ का रण
बाड़मेर के कच्छ का रण का वो इलाका है जहां से 1971 के युद्ध में भारतीय सेना बाखासर होते हुए आगे बढ़ी और सेना को स्थानीय ग्रामीणों ने न केवल रास्ता दिखाया बंदूक लेकर साथ सिपाही बन गए और छाछरो फतेह किया। कच्छ रण का यह इलाका बॉडज़्र टूरिज्म की विपुल संभावनाएं लिए हुए है।
बीकानेर- सांचू पोस्ट
बीकानेर की सांचू पोस्ट से दुश्मन के दांत खट्टे करने का शौयज़् कौशल 1965 के युद्ध में दजज़् है। बीएसएफ यहां सांचू माता के मंदिर की आस्था भी इससे जुड़ी है। यहां बीएसएफ की ओर से दशज़्नीय स्थल का विकास किया जा रहा है।
श्रीगंगानगर- सेंड ड्युन्स
1971 के युद्ध में श्रीकरणपुर के पास में सेंड ड्युन में सेना के तीन अधिकारी और 18 जवान शहीद हुए थे, जहां स्मारक बना हुआ है। एक किलोमीटर भीतर तक आई पाकिस्तानी सेना को साहस और युद्धकौशल से खदेड़ा गया, यहां पर बॉडज़्र टूरिज्म की संभावनाएं है।


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