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परदेस की ‘रोटी’ छूटी रास आ रहा बाड़मेरी ‘बाजरा’

locationबाड़मेरPublished: Jul 15, 2020 07:16:24 pm

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Dilip dave

– जिले के प्रवासी मजदूर कोरोना के चलते वापसी को नहीं तैयार- गांव में ही संभाल रहे खेतीबाड़ी- बॉर्डर पर तादाद ज्यादा बारिश का कर रहे इंतजार- सरकारी आंकड़े के अनुसार ६६ हजार प्रवासी आए बाड़मेर तादाद कहीं ज्यादा- १०५ प्रवासी ले चुके खेती का प्रशिक्षण

परदेस की ‘रोटी’ छूटी रास आ रहा बाड़मेरी ‘बाजरा’

परदेस की ‘रोटी’ छूटी रास आ रहा बाड़मेरी ‘बाजरा’



दिलीप दवे
बाड़मेर. परदेस में कमाई कर रहे प्रवासियों को कोरोना का डर इतना सता रहा है कि अब वे जब तक हालात ठीक नहीं हो जाते गांव की माटी को छोडऩा नहीं चाह रहे। यहीं कारण है कि अधिकांश प्रवासी अब खेतीबाड़ी कर आगामी दो-चार माह तक यहीं रहना चाह रहे हैं। यह स्थिति किसी गांव या ब्लॉक की नहीं लगभग पूरे जिले के सैकडों गांवों की है जहां प्रवासी मजदूर अब खेतों की ओर रुख करने लगे हैं। हालांकि बॉर्डर के गांवों में जहां बेरोजगार ज्यादा है वहां बारिश नहीं हुई है, लेकिन प्रवासी वापसी के बजाय बारिश का इंतजार करना मुनासिब समझ रहे हैं। यहीं कारण है कि जिले में आए करीब 66 हजार प्रवासियों में से दस-पन्द्रह हजार ही वापस परदेस गए हैं, बाकी अभी घर छोडऩा उचित नहीं मान रहे। एेसे में खेतीबाड़ी की ओर उनका रुझान बढ़ा है।
कोरोना संक्रमण के चलते देश में लॉकडाउन लगा तो २२ मार्च के बाद लोग जहां थे, वहीं कैद हो गए। करीब दो माह के बाद सरकार ने लॉकडाउन हटाया तो बाड़मेर जिले में प्रवासी मजदूरों व अन्य के आने का सिलसिला शुरू हो गया। सरकार आंकड़े के अनुसार ६६ हजार प्रवासी बाड़मेर आए। वहीं, हकीकत में करीब सवा लाख प्रवासी बाड़मेर जिले में आए हैं। यहां आने के बाद अनलॉकडाउन हुआ लेकिन इस दौरान जिले में कोरोना प्रकोप बढ़ गया तो देश में भी हालात सुधरते नहीं दिखे। एेसे में प्रवासी अपने गांव में स्थायी निवासी बन गए। पिछले चार माह से वे गांव में ही बैठे हैं। इस दौरान रोजी-रोटी का संकट हुआ तो मनरेगा पर लगे, लेकिन अब बारिश का दौर शुरू होते ही खेतीबाड़ी करने लगे हैं। जिले के शिव, बाड़मेर, बायतु व धोरीमन्ना में जहां बारिश का दौर शुरू हो गया है, वहां प्रवासी अपने पुश्तैनी खेतों में काम पर लग गए हैं। हालांकि बॉर्डर पर बारिश नहीं हुई है एेसे में प्रवासी अभी भी खेतों की ओर रुख नहीं कर पाए हैं। विशेषकर चौहटन, धनाऊ, सेड़वा, गडरारोड व रामसर तहसील क्षेत्र में अभी भी प्रवासी बारिश का इंतजार कर रहे हैं।
वापसी के बजाय मेह की बाट- अधिकांश प्रवासी मजदूर जब तक देश में कोरोना का असर खत्म नहीं होता तब तक घर छोडऩे के मूंड में नहीं है। यहीं कारण है कि मात्र तीस फीसदी प्रवासी अब तक वापस काम पर लौटे हैं, शेष दीपावली तक खेतीबाड़ी से ही रोजगार प्राप्त करना चाहते हैं। यहीं कारण है कि वे वापसी के बजाय मेह की बाट जोह रहे हैं।
केस संख्या एक – हड़वेचा निवासी दिनेशकुमार अहमदाबाद में सिलाई कार्य करते हैं। कोरोना संक्रमण शुरू हुआ तो परिवार सहित करीब चार माह पहले गांव आ गए। अब वे गांव में खेतीबाड़ी संभाल रहे हैं। बारिश होते ही उन्होंने पुश्तैनी खेत में काम शुरू कर दिया है। उनके अनुसार जब तक हालात ठीक नहीं होते, गांव में ही रहेंगे।
केस संख्या दो- भिंयाड़ निवासी डूंगरसिंह सूरत में कार्य करते थे। कोरोना काल में गांव आए तो खेतीबाड़ी करने व यहीं बसने का मन बना लिया। करीब बीस दिन पहले उन्होंने पुश्तैनी खेत में ट्यूबवैल खुदवाया। उनके अनुसार अब वे खेतीबाड़ी करेंगे वापस सूरत नहीं जाएंगे।
केस संख्या तीन- चौहटन, धनाऊ व सेड़वा क्षेत्र में करीब चालीस हजार प्रवासी पहुंचे। इनमें से मात्र तीस फीसदी ही वापिस गए हैं, शेष गांवों में ही रहकर खेतीबाड़ी कर रहे हैं। हालांकि बारिश नहीं होने से बुवाई नहीं हुई है, लेकिन खेती करने मन उनका बन चुका है।
केस संख्या चार- धारवी निवासी कोजराजङ्क्षसह मुम्बई में लकड़ी की कारीगरी का काम करते थे। कोरोना के बाद गांव आ गए और अब वापस जाने के बजाय खेती करने का मन बना चुके हैं। उनके अनुसार महानगर में महामारी का प्रकोप है एेसे में गांवों में सुरक्षित है और खुद का खेत होने से रोजगार की समस्या भी नहीं है।
लिया गरीब कल्याण रोजगार प्रशिक्षण- जिले में आए प्रवासी लोगों में से १०५ ने हाल ही में खेती में रोजगार के अवसर तलाशने को लेकर गरीब कल्याण रोजगार प्रशिक्षण प्राप्त किया है। एेसे में यह संभावना है कि आने वाले दिनों में ये लोग यहीं रहकर खेतीबाड़ी करेंगे।
नहीं जाना चाहते बाहर- बॉर्डर सहित जिले के गांवों में अधिकांश प्रवासी अब दिवाली तक घरों में ही रहना चाहते हैं। यहां रोजगार को लेकर वे खेतीबाड़ी कर रहे हैं। जिनके पास खेत नहीं है, वे अन्य खेतों पर मजदूरी कर रहे हैं। इससे खेती को बढ़ावा मिलेगा तो पलायन भी रुकेगा।- भोमसिंह बलाई, युवा
प्रवासी जुटे खेती में- शिव के अधिकांश गांवों में प्रवासी खेतीबाड़ी में जुटे हुए हैं। कोरोना के चलते प्रवासी गांवों में रहकर रोजगार प्राप्त कर रहे हैं। इससे उनको रोजगार मिल रहा है तो कृषि उत्पादन भी बढ़ेगा।- गेमरसिंह, पूर्व सरपंच चोचरा
कृषि उत्पादन व क्षेत्रफल में बढ़ोतरी की संभावना- हजारों की तादाद में आए प्रवासी अब गांव में रोजगार की तलाश कर रहे हैं। खेती उनके लिए बेहतर विकल्प हो सकता है। वैसे भी बाड़मेर में बागवानी, सिंचित खेती बढ़ रही है। इस पर उम्मीद है कि इस बार कृषि क्षेत्रफल प्रवासी मजदूरों के चलते बढ़ेगा तो कृषि उत्पादन में भी बढ़ोतरी होगी।- डॉ. प्रदीप पगारिया, कृषि वैज्ञानिक कृषि विज्ञान केन्द्र गुड़ामालानी
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