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800 साल से राजस्थान में बना ये तालाब आमजन की प्यास बुझा रहा, वर्षा जल संरक्षण का नायाब उदाहरण

बरसाती पानी का संरक्षण कैसे किया जाए इसका उदाहरण पेश करते हैं डंडाली के बाशिंदे। यहां आठ सौ साल पुराना सिरलाई तालाब आज भी न केवल गांव की प्यास बुझा रहा है वरन इसमें पानी की आवक जारी रहे इसलिए वर्तमान में भी ग्रामीण नई नाडिया खुदवा उसमें पानी सहेजते हैं जिससे कि पूरे साल गांव की प्याय बुझ सके। 46 हेक्टेयर में फैला डंडाली गांव का सिरलाई तालाब जल संरक्षण का अनुकरणीय उदाहरण है।

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डंडाली. बरसाती पानी का संरक्षण कैसे किया जाए इसका उदाहरण पेश करते हैं डंडाली के बाशिंदे। यहां आठ सौ साल पुराना सिरलाई तालाब आज भी न केवल गांव की प्यास बुझा रहा है वरन इसमें पानी की आवक जारी रहे इसलिए वर्तमान में भी ग्रामीण नई नाडिया खुदवा उसमें पानी सहेजते हैं जिससे कि पूरे साल गांव की प्याय बुझ सके। 46 हेक्टेयर में फैला डंडाली गां का सिरलाई तालाब जल संरक्षण का अनुकरणीय उदाहरण है।

यह वर्षा जल संग्रहण को लेकर पंचायत की अलग-अलग ढाणियों, चरागाहों में कुल इकतीस नाडी, तालाब है, जिनका उपयोग पेयजल एवं पशुओं के लिए किया जाता है। डंडाली सरपंच गुलाबसिंह महेचा व ग्रामीणों ने बताया कि मुख्य जल स्रोत सिरलाई तालाब का निर्माण आठ सौ वर्ष पहले सिरला राजपुरोहित ने जन सहयोग से करवाया था। गांव के पास गोयला पहाड़ी श्रृंखला से बरसाती पानी बह कर मैदान में आता है तथा इसे संग्रहण कर उपयोग करने के लिए समुदाय ने इकतीस नाडियों का निर्माण किया तथा प्रबंधन व्यवस्था बनाई जिसके कारण यह आज भी उपयोगी है। इस गांव में बीस पुराने जल स्रोत हैं तथा ग्यारह नए बनाए गए हैं। पानी की जरूरत और आवक को ध्यान में रखते हुए नए तालाब बनाए हैं।

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उपयोगकर्ता इनके प्रबंधन की व्यवस्था करते हैं। साल 2021 में ही इस ग्राम पंचायत में पांच नए तालाब बनाए गए। सीएसआर और जनसहयोग के माध्यम से डेढ़ करोड़ का अनुदान इकट्ठा कर पांच नए और तीन पुराने तालाबों पर विकास कार्य किए गए।सिरलाई तालाब का पानी गांव के लोग पीने के लिए उपयोग में लेते हैं। इसलिए इस तालाब का विशेष ध्यान रखा जाता है। ग्राम पंचायत ने इस तालाब का सीमाज्ञान करवाकर पूरे आगोर क्षेत्र की तारबंदी करवाई जिससे तालाब के आगोर क्षेत्र की सुरक्षा और जल की स्वच्छता दोनों को एक साथ सुनिश्चित की जा सके। तारबंदी के बाद पंचायत ने तारबंदी के किनारे-किनारे खाई की खुदाई भी कराई जिससे कि बाहर का गंदा तालाब के अंदर न घुसे।

सौंदर्यकरण व पौधरोपण
तालाब में आवागमन के लिए दो गेट लगाए गए है। तालाब पर एक सुंदर घाट भी बना हुआ है जिसके आस- पास पौधरोपण किया गया है। इस तालाब का भराव क्षेत्र लगभग चार हैक्टेयर है जबकि आगोर का कुल क्षेत्रफल छियालीस हैक्टेयर है। हर साल तीन सौ रुपए प्रति घर के हिसाब से जनसहयोग इकट्ठा कर तालाब के मरम्मत का काम किया जाता है।

बांध बनाने की सोच
बरसाती पानी के संरक्षण को लेकर गांव की सोच केवल इस तालाब के प्रबंधन तक सीमित नहीं है। गांव वाले गोयणा पहाड़ से आने वाले पानी को पहाड़ पर ही रोकना चाहते हैं। गोयणा पहाड़ नौ हजार बीघा जमीन पर फैला हुआ है। वहां से हर साल लाखों गैलन लीटर पानी बहकर बेकार चला जाता है। वो इस पहाड़ पर एक छोटा बांध बनवाना चाहते हैं। पंचायत का मानना है कि इस बांध के माध्यम से आस-पास के बीस गांवों को पानी की पूर्ति की जा सकती है। इस परियोजना के लिए पंचायत ने राज्य सरकार को भी प्रस्ताव भिजवाया है।

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बना हुआ जल सहेली समूह
इन तालाबों के रखरखाव के लिए महिलाओं का जल सहेली समूह बना हुआ है। जो सक्रियता के साथ तालाबों के संरक्षण में अपना योगदान देता है। पिछले तीन सालों में जल सहेली समूह ने तालाबों के विकास से जुड़े सत्ताईस प्रस्ताव पंचायत में दिए जिनमें से ज्यादातर स्वीकृत हुए।


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