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‘पत्रिका मास्टर-की’…निश्चय पक्का तो सफलता निश्चित

- पत्रिका मास्टर- की

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Do not consider exam as an additional burden

Do not consider exam as an additional burden

बाड़मेर. यदि आपका निश्चय पक्का और लक्ष्य के लिए तत्पर है, तो कोई भी नहीं रोक सकता है। जिंदगी के बहुत सारे पहलु है उसमें एक परीक्षा भी होती है। कक्षा 10 और 12 के विद्यार्थी जो परीक्षा देते है वो पिछली परीक्षाओं से अलग नहीं होतीं, उन्हीं परीक्षाओं का आगे का एक कदम मात्र है। विद्यार्थी अपनी जो दिनचर्या पूरे वर्ष भर थी उसमें कोई विशेष परिवर्तन नहीं करें, परीक्षा को कोइ अतिरिक्त बोझ ना समझें।

प्रतिदिन समय पर उठें और समय पर सोयें,उठाते ही हल्का व्यायाम करना आवश्यक है। इसके बाद कठिन लगने वाले विषयों और अध्यायों को पढऩा चाहिए। समय पर अल्पाहार और पानी पीते रहना चाहिए। अधिकांश पढाई कुसी और टेबल पर करनी चाहिए।

साथ-साथ में कलम और कागज पर मुख्य शब्द लिखते रहे। जब पढ़ते-पढ़ते मन ऊब जाएं तो पहले के बनाएं नोट्स पढऩे चाहिए। किसी प्रश्न को समझने में दिक्कत होती है तो शिक्षक, मित्र और अभिभावक से मार्गदर्शन ले लेना चाहिए।

कोइ मित्र भी मार्गदर्शन चाहता है तो प्रतिस्पर्धा को छोड़कर उसकी मदद करनी चाहिए। इससे एक खुशी और आत्मसंतुष्टि मिलेगी जो और अच्छे के लिए प्रेरित करेगी।

सकारात्मक सोच रखें

हमेशा सकारात्मक सोचे, हमेशा यही सोचें कि अपने जो पढ़ा है प्रश्न उसी में से ही आएंगे,अपने बनाएं नोट्स की बार-बार पुनरावृति करते रहना चाहिए।

परीक्षा के एक दिन पूर्व रात को स्वयं परीक्षा प्रवेश-पत्र, परिचय-पत्र, पेन, पहनने के कपड़े-जूते और आवश्यक सामग्री व्यवस्थित कर लें। परीक्षा के समय से उचित दूरी के हिसाब से समय से पूर्व घर से निकालें, नियत समय से कम से कम 1 घंटा पूर्व परीक्षा केंद्र पर पहुंच जाएं, परीक्षा कक्ष में किसी प्रकार की हड़बड़ी ना दिखाएं।

मनोबल ऊंचा रहेगा तो सब कुछ ठीक

सभी पेपर्स का सामान महत्व रहता है, इसलिए एक पेपर के अच्छे होने या बिगडऩे से प्रभावित ना होकर अपनी आगे के पेपर की तैयारी करते रहें। जिस विद्यार्थी की आत्मशक्ति और मनोबल बहुत ऊंचा होता है, वे किसी भी परिस्थिति में अपने लक्ष्यों को पा लेने में सक्षम होते हैं।

परीक्षा के दिनों में भोजन और स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देते रहना चाहिए। अभिभावकों को भी विद्यार्थियों का हौसला बढ़ाते रहना चाहिए। परीक्षा के इन दिनों में बच्चों के आसपास ही रहें।

उन्हें पढ़ाएं, उनसे सुनें, समझाएं, अच्छा पौष्टिक खाना और प्यार दुलार दें। जिंदगी में कभी भी किसी से तुलना ना करें, आपका जीवन और आपकी कार्यशैली किसी से प्रभावित हो सकती है लेकिन किसी की हूबहू नहीं हो सकती। इसलिए अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश करते रहें।

- डॉ. आदर्श किशोर, सहायक आचार्य, राजकीय पीजी महाविद्यालय, बाड़मेर


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