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बॉर्डर पर आज भी कई घर महिलाओं के दम पर चलते हैं

चूल्हे चौके के बाद कसीदाकारी करके चलाती हैं घर1971 में अपना सबकुछ छोड़ आए शरणार्थी परिवारो के हर घर की यही कहानीहजारों महिलाएं जुड़ी हैं इस कारोबार सेकई गरीब परिवारो का यही एकमात्र सहारा,पूरा परिवार जुटता हैं तब चलता है घर

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बॉर्डर पर आज भी कई घर महिलाओं के दम पर चलते हैं

बॉर्डर पर आज भी कई घर महिलाओं के दम पर चलते हैं


गडरारोड़,
देश की अंतिम सरहदी गांवों में आज भी कई घर महिलाओं के बलबूते चलते हैं।
दिनभर कसीदाकारी करके पहले दो जून रोटी की व्यवस्था करती हैं, फिर सबको खाना पकाकर खिलाती हैं।
जिन परिवारों पर कमाने वाले का साया उठ चुका है। ऐसी कई विधवा महिलाएं अपने बच्चों को कसीदाकारी करके पालन पोषण कर रही हैं। बुजुर्ग सास ससुर,छोटे छोटे बच्चों वाले ऐसे कई परिवार बॉर्डर पर मिल जाएंगे जिन्हें यह स्वावलंबी महिलाएं अपने दम पर सहारा दे रही हैं।
परिवार की बालिकाएं भी थोड़ी समझ आने पर कसीदाकारी से जुड़ने को मजबूर हो जाती हैं। अधिकांश बालिकाओं को स्कूल इसी वजह से छोड़नी पड़ती हैं।
यह इतिहास हैं अबतक का...
1971 भारत-पाक युद्ध के दौरान हजारों पाक-विस्थापित परिवार बाड़मेर जिले के सरहदी गांवों में आकर बस गए। और इन्ही परिवारों के साथ कसीदाकारी की बेजोड़ कला भी भारत आ गई। इन मेघवाल महिलाओं की बदौलत 1975 के आसपास गडरारोड़ में कसीदाकारी का कार्य प्रारंभ हुआ। जो समय के साथ निरन्तर आगे बढ़ता गया।
पूरा परिवार जुटता हैं तब दो जून भोजन की व्यवस्था हो पाती हैं।
पाकिस्तान से आया यह हुनर:-
देश के विभाजन के साथ पाकिस्तान में बॉर्डर पर हिन्दू मेघवाल महिलाओं द्वारा हाथों से विशेष डिजाइन से कांचली,कुर्ति बनाए जाने लगे जो वहां बहुत पसंद किए जाने लगे।सीमांत क्षेत्र की महिलाओं द्वारा बेजोड़ कशीदाकारी से तैयार बेडशीट, कुशन,टेबल क्लॉथ,राली, सोफा कवर देश के प्रमुख पर्यटन स्थलों सहित विदेशों में भी प्रमुखता से खरीदे जाते हैं।
इनकी बेजोड़ कशीदाकारी हर किसी को पसंद आती हैं। शानदार डिजाइन से तैयार यह उत्पाद सबसे अलग नजर आते हैं। महिलाओं के हाथों से यह बारीकी से तैयार किये जाते हैं।जिनमें उनकी मेहनत के साथ पीढ़ी दर पीढ़ी का हुनर बोलता है।
यह कहना है मजदूरों का:-
वर्जन (01)
मेरी 12 वर्ष की आयु में शादी पाकिस्तान में हुई। 1971 में पति के साथ भारत आ गए। यहां कोई रोजगार नही मिलने पर बचपन के हुनर कशीदाकारी शुरू की। पिछले 50 वर्षों से इस काम में ही जुड़ी हुई हूं। मजदूरी के रूप में मात्र 80 रुपये ही मिल रहे हैं।क्या करें जो मिल रहे हैं उसी में सन्तोष करना पड़ता हैं।
- धाई देवी
65 वर्षीय महिला
वर्जन (02)
"सुबह से शाम तक कसीदाकारी करके 80 से 100 रुपये मिलते हैं। कई लोग रोजगार बढाने के वादे करके जाते हैं। वापिस कोई नहीं आता हैं।हमारे पास अन्य कोई रोजगार नही है ऐसे में सरकार को सुध लेनी चाहिए।
- सुंदर देवी और स्वरूपी देवी
कसीदाकारी से जुड़ी मजदूर
सरकार ने नही दिया संबल:-
1971 से लेकर अबतक किसी भी सरकार ने इस कला को संबल नही दिया। खादी ग्रामोद्योग, स्वयंसेवी संस्थाए देखने कई बार पहूँची, आश्वासन देकर चले गए।आज तक इस कला में जुड़ी महिलाओं कोई सहायता, सहयोग यहां तक अनुदान राशि का ऋण तक नही दिया गया। देश में योजनाएं कई बार बनाई जाती हैं लेकिन उसका लाभ गरीब परिवारों तक नही पहुंच पाता है। स्थानीय बैंकों का भी अपेक्षित सहयोग नहीं मिलता।
- हरीश राठी
हैंडीक्राफ्ट व्यवसायी

*लोकडाउन के अनलॉक होने पर घरों में दे रहे रोजगार*
लोकडाउन के बाद मजदूरों के समक्ष रोजगार का भारी संकट उत्पन्न हो गया। अभी अनलॉक के बाद मजदूरों को घरों में ही कच्चा माल उपलब्ध करवाया जा रहा है।जिससे वे घर पर ही तैयार कर रोजगार प्राप्त कर सके।
- हीरालाल महेश्वरी
हैंडीक्राफ्ट व्यवसायी गडरारोड़
!! एक्सपर्ट व्यू !!
"बाड़मेर जिले में कशीदाकारी से लगभग दो लाख मजदूर जुड़े हुए हैं! एक हजार व्यापारी जुड़े हैं!
प्रदेश में बाड़मेर, जैसलमेर,जोधपुर, जयपुर, उदयपुर सहित देश के प्रमुख महानगरों में बड़े बड़े शो रूम खुले हुए हैं!
लोकडाउन्न से सौ करोड़ से अधिक का नुकसान पहुंचा है और हजार करोड़ से अधिक विदेशों में अटके हुए हैं!
हम भी सरकार से इस रोजगार को खादी ग्रामोद्योग, मनरेगा से जोड़ने की मांग करते हैं! जिससे घरेलू गरीब परिवारों को इसका लाभ मिल सके!"
- लेखराज महेश्वरी
पूर्व चेयरमैन एवं कमेटी सदस्य
एक्सपोर्ट प्रमोशन कॉंसिल फ़ॉर हैंडीक्राफ्ट नई दिल्ली (भारत)


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