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न खुलकर रो पा रहे .. न रोक पा रहे..आंसूओं की परीक्षा

सड़क दुर्घटना के एक हादसे ने देश के एक परिवार के साथ ऐसी अनहोनी की है कि पत्थर दिल भी रो पड़े। लेकिन इस परिवार की मजबूरी देखिए कि परिवार के तीन सदस्य न तो खुलकर रो पा रहे है और न ही आंसू रोक पा रहे है।

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न खुलकर रो पा रहे .. न रोक पा रहे..आंसूओं की परीक्षा

न खुलकर रो पा रहे .. न रोक पा रहे..आंसूओं की परीक्षा

बाड़मेर.
सड़क दुर्घटना के एक हादसे ने देश के एक परिवार के साथ ऐसी अनहोनी की है कि पत्थर दिल भी रो पड़े। लेकिन इस परिवार की मजबूरी देखिए कि परिवार के तीन सदस्य न तो खुलकर रो पा रहे है और न ही आंसू रोक पा रहे है। पति मानवेन्द्रसिंह दुर्घटना में ऐसा घायल हुए कि जिसने जीवन के हर संघर्ष में जिस पत्नी को पल-पल साथ रखा न तो उसके अंतिम दर्शन कर पाए और न ही अंतिम विदाई में शामिल। बेटी हर्षिनी मां की मौत पर दिल खोलकर रो नहीं पा रही है क्योंकि उसे अपने पिता के साथ अस्पताल में बैठकर उनको हिम्मत बंधानी है। पिता बेटी को देखकर आंसू रोके हुए है कि कितना बड़ा कलेजा करके मेरी बेटी मेरी सेवा को आई है। बेटा मां को खो चुका है और उसके पिता और ***** दोनों उसके सिर पर हाथ रखकर दुलार करने को नहीं है।
मानवेन्द्रसिंह : घायल शरीर,पत्थर किया दिल...
पूर्व सांसद मानवेन्द्रसिंह की पत्नी की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई। खुद की पसलियां टूटने से दिल्ली दाखिल कर दिया। करीब 24 घंटेे बाद उनको यह खबर मिली की उनकी पत्नी नहीं रही। मानवेन्द्र इस खबर के बाद खुलकर नहीं रो पाए, कारण उनकी पसलियां टूटी थी और फेफड़ों में चोट। मन से भरपूर रो रहे इस शख्स की आंखों के आंसू बहना चाहे लेकिन बहे कैसे? उसने भरे मन से कहा कि चित्रा को अंतिम विदाई दे दो। अब उनके पास बेटी हर्षिनी बैठी है। बेटी को देखकर तो इस पिता की आंखों का सैलाब फफकना चाहता है लेकिन वह अब भी खुलकर कैसे रोएं..बेटी की हिम्मत है वो..।
हर्षिनीसिंह : मां को खाया,पिता की फिक्र
पेरिस से दिल्ली लौटी तो बताया कि पापा के एक्सीडेंट हुआ है। पापा के पास पहुंची उनके ठीक देखा लेकिन उसको जब पता चला कि मां नहीं रही, हर्षिनी पर पहाड़ टूट गया। पापा को छोड़कर मां के अंतिम दर्शन करने जोधपुर पहुंची। अब उसके सामने फिर पापा थे, जो दिल्ली अस्पताल में है। मां को खो चुकी यह बेटी अपने पिता के पास पहुंच गई। अपने आंसूओं को रोककर वह पिता की सेवा में है। पिता-पुत्री दोनों जानते है कि उन्होंने क्या खोया हैै,लेकिन दोनों खुलकर रो भी नहीं पा रहे, आंसू बहना चाहते है, बहुत कुछ कहना भी चाहते है लेकिन कैसे कहें?
हमीरसिंह : मुखाग्रि देने के बाद फिर भर्ती
मानवेन्द्रसिंह का बेटा, जो एक्सीडेंट में साथ था। उसको फ्रेक्चर हुआ है। दिल्ली उसको भी पिता के साथ इलाज को ले गए। हाथ के फ्रेक्चर का आपरेशन करना था लेकिन मां को मुखाग्नि देने के लिए परिवार ने उसको साथ लिया। वह अब वापिस दिल्ली आया और उसके भी हाथ का ऑपरेशन हुआ है। दिल्ली के पारस अस्पताल के 301 नंबर रूम में पिता है और 303 नंबर में हमीरसिंह। ***** हर्षिनी कभी भाई तो कभी पिता के पास पहुंचकर संभाल रही है। हमीरसिंह भी इस घटना में अभी तक पिता के कंधे पर सिर रखकर रो पाया है न ***** के सामने।


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