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सिमटती जा रही मिट्टी के दीप बनाने की कला, पहले थे 50 अब 5 परिवार ही बना रहे दीपक

-दीपक की लौ हो रही मंद-चायनीज विकल्प से फैल रहा प्रदूषण

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सिमटती जा रही मिट्टी के दीप बनाने की कला, पहले थे 50 अब 5 परिवार ही बना रहे दीपक

Pollution spreading from Chinese alternative

बाड़मेर. बाजार में चायनीज रोशनी (Chinese lights) के विकल्पों ने मिट्टी के दीपक (Clay lamp) की लौ को मंद कर दिया है। साल दर साल मिट्टी के दीपक (Clay lamp) कम होते जा रहे हैं। जबकि पर्यावरण संरक्षण (Environment protection) में मिट्टी के दीपक का ही योगदान होता है। अन्य विकल्प से प्रदूषण ही अधिक हो रहा है।

दीपावली पर हर घर को रोशन करने वाले कुम्हार की कला अब मिटती जा रही है। अधिकांश लोग चाइनीज विकल्प की तरफ दौड़ रहे हंै। जिसके चलते कुम्हार परिवार अपने पुश्तैनी काम को छोडऩे पर मजबूर हो रहे हैं।

आज से करीब दस साल पहले 50 से अधिक परिवार मिट्टी के दीपक बनाने का काम करते थे। लेकिन बाजार में मिट्टी के दीपक की मांग कम होने के साथ ही यह संख्या सिमट कर अब 5 से 7 परिवार तक आ गई है।

मेहनत ज्यादा, आमदनी नहीं

पूर्व में दीपावली (Deepawali) से महीनों पहले दीपक बनाने का कार्य शुरू होता था। फिर भी मांग पूरी नहीं हो पाती थी। लेकिन बदले समय ने कुम्हार परिवारों के इस काम के बंद जैसे हालात हो गए हैं। अब मेहनत अधिक लगती है और आमदनी कम होती है।

पीराराम, बलदेवनगर

तालाब से मिट्टी लाने के साथ पकाने तक का सफर

मिट्टी को तालाबों से खोद कर लाना पड़ता है। फिर उसे बारीक करना पड़ता है। मिट्टी को छानकर भिगोया जाता है। फिर उसे अच्छे से गोंदा जाता है। गोंदी हुई मिट्टी को चाक पर चढ़ाया जाता है। चाक को घुमाया जाता है मिट्टी को दीपक का आकार मिलता है। फिर दीपक को सुखाया जाता है। सुखोने के बाद भट्टी में पकता है। तब जाकर तैयार होता है दीपक।
मुकनाराम, बलदेवनगर

होलसेल में अधिक फायदा

दीपावली पर होलसेल में दीपक बेचने वालों की कमाई अच्छी होती है। पहले कुम्हार परिवार स्वयं बेचते थे लेकिन अब मांग कम होने के साथ ही रूचि भी घट गई। जिसके चलते दीपक बनाकर होलसेल व्यापारी को बेच देते हंै। इससे बनाने वालों को नाममात्र का फायदा होता है।

नखताराम, बलदेवनगर


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