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बाड़मेर के सिणधरी चौराहे पर ये क्या हो गया, होने लगे पूरे शहर में चर्चे, पढ़िए पूरी खबर

मैं सिणधरी चौराहा हूं, 15 अगस्त 3 दिन बाद, मैं शहीद चौराहा भी हूं..

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Barmer

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बाड़मेर.

मैं सिणधरी चौराहा हूं...। दरअसल मेरा एक और नाम है शहीद चौराहा। पहले मैं ( शहीद स्मारक)सड़क के बीचोबीच हुआ करता था और एनएचएआई आई तो उसने मुझे खिसकाकर मंडी के एक कोने में कर दिया। यहां ओवरब्रिज बनाने और मेरा पूरा ख्याल रखने का वादा पूर्व सैनिकों ने लिया था, यह मुझे याद है। तीन दिन बाद १५ अगस्त है। इस पर्व पर शहीदों की याद में में बने स्मारक को सजाया जाता है। यहां पुष्प मालाएं भी चढ़ाई जाती हैं। अब मेरी हालत क्या है, वह आप जानते हैं। शहीद स्मारक के ठीक सामने कीचड़ जमा है। यहां बुधवार को भाजपा प्रदेशाध्यक्ष आए तो बीस मिनट के लिए झाडू निकाला ताकि उनको कोई तकलीफ न हो लेकिन मेरी तकलीफ से तो नगरपरिषद को कोई वास्ता नहीं।

मुझे दरअसल १५ अगस्त से तीन दिन पहले ही शर्म आने लगी है। आप लोग मेरे यहां पुष्प चढ़ाने आआेगे तो आपके महंगे जूते गंदगी में सन जाएंगे। शूट पहनकर आएंगे तो पेंट को कमर से पकड़कर ऊपर खींचना होगा। जाहिर है आप अपनी सफेदवाली गाड़़ी में आएंगे...मैली हो जाएगी तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा। अच्छा अपने साथ ज्यादा लोग मत लाना..यहां खड़े रहने को गंदगी में जगह नहीं है। एक सलाह और दूं...अपने साथ किसी तरह की शर्म लेकर ही मत आना शर्मिंदा होना पड़ जाएगा....। लोकतंत्र में सुना है लोक सुनवाई को प्राथमिकता दी जाती है तो सुनो कुछ लोक दर्द बांट रहा हूं-

मेरे पास ही एक चिकित्सक दंपती रहते हैं। उनका हाल ही में किडनी का ऑपरेशन हुआ है। तुम जो मेरी सुध नहीं लेने की जिद्द पकडे़ बैठे हो न मुझे चिंता है कि यह उनकी सेहत नहीं बिगाड़ दे। बलदेव नगर के एक बुजुर्ग मिले थे, उन्होंने बताया कि वे सुबह-सुबह रोज घूमने जाते थे, पिछले कई दिनों से घर से बाहर नहीं निकल पाए हैं, डरते हैं कि गिर गया तो क्या होगा? कल एक महिला और बच्ची यहां गिर गई थी। पीछे से बेआसरा पशु आ रहे थे, उनसे डर गई और मेरे यहां गड्ढा था ही, तुम्हारा तो आंखों का पानी जवाब दे गया है, उसका खून बह गया। वो जो मेरे पास गोलगप्पे वाला अपनी छोटी कमाई से बड़ी तीज मनाने की उम्मीद पाले बैठा था न उसके घर कई दिनों से चूल्हा जलाना मुश्किल हो गया है। सांस उनकी भी अटकी हुई रहती है जिनके बच्चे मेरे यहां से स्कूल जाते हैं और परेशान वो भी हो जाते है जिनके बुजुर्ग इस सड़क को पार करके आते हैं।

..नगरपरिषद, पीडब्ल्यूडी, एनएचएआई और तुम सब दस दिन से मिलकर सोच रहे हो और चलो मैं मान लेता हूं कि कोशिश भी कर रहे हो पर इतनी नाकामयाब कोशिश....। वैसे एक बात कहूं, मेरी पीड़ा को छोड़ो अब तो मेरे शहर की नाक कट रही है....।