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मासूमों पर क्रूरता कब तक: शिक्षकों के प्रति आपराधिक मामले दर्ज होना चिंता और चिंतन का विषय

बाड़मेर जिले में पिछले एक माह में निजी विद्यालयों में अध्ययरत मासूमों की बेरहमी से पिटाई के तीन मामले विभिन्न थानों में दर्ज हुए हैं।

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School responsibility, no student should be beaten

School responsibility, no student should be beaten

सोम पारीक

बाड़मेर. बाड़मेर जिले में पिछले एक माह में निजी विद्यालयों में अध्ययरत मासूमों की बेरहमी से पिटाई के तीन मामले विभिन्न थानों में दर्ज हुए हैं। जिस सामाजिक व्यवस्था में गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय, बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय जैसे भाव हों वहां शिक्षकों के प्रति आपराधिक मामले दर्ज होना चिंता और चिंतन का विषय है।

विद्यालय शिक्षा के मंदिर हैं और वहां बच्चों को संस्कारित नागरिक के रूप में तैयार किया जाता है। बच्चा अपने घर के बाद सर्वाधिक समय विद्यालय में ही व्यतीत करता है। ऐसे में आवश्यक है कि उसे विद्यालय में भी उतना ही प्यार-दुलार मिले जो घर में मिलता है।

उसे विद्यालय के नाम से भयभीत नहीं होना पड़े। वहां शिक्षण व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि बच्चा विद्यालय जाने को लालायित रहे। स्कूल के नाम पर उसमें ऊष्मा व ऊर्जा का संचार हो।

बाल मनोविज्ञान के जानकार कहते हैं कि प्राथमिक कक्षाओं में ही बालक के मन में शिक्षा के प्रति सर्वाधिक भाव जागृत होते हैं। यदि उन्हें वहां अनुकूल माहौल मिले तो वे तेजी से सीखते हैं और अधिकाधिक ग्रहण करते हैं। यदि दुर्भाग्यवश बाल्यावस्था में ही किसी का विद्यालयी शिक्षा का अनुभव अच्छा नहीं हो तो उम्रभर यह पीड़ा उसे सालती है।

जिले में सरकारी विद्यालयों के साथ ही निजी स्कूल भी शिक्षण व्यवस्था की रीढ़ हैं। थार में शिक्षा के विकास व विस्तार में इनकी भी महत्वपूर्ण भूमिका है। अधिकांश विद्यालयों पर शिक्षक एक-एक विद्यार्थी पर पूरा ध्यान देते हैं और शायद यही इस समस्या की जड़ है।

अभिभावक चाहते हैं कि उनके बच्चों की पढ़ाई पर पूरा ध्यान दिया जाए। निजी विद्यालयों के प्रबंधक सदैव बेहतरीन परिणाम पर जोर देते हैं पर जैसे हाथ की सभी अंगुलियां बराबर नहीं होती वैसे ही सभी बालक भी एक से नहीं होते। कुछ बच्चे धीमी गति से सीखते हैं, कुछ को शिक्षण का तरीका रास नहीं आता।

बालक खेलकूद और मस्ती भी चाहते हैं। कई बार कुछ कारणों से बच्चे नियमित विद्यालय नहीं आ पाते या गृह कार्य में पिछड़ जाते हैं। पर अनुशासन के नाम पर बच्चों की बेरहमी से पिटाई को किसी भी सूरत में सहीं नहीं ठहराया जा सकता।

क्या अनुशासन बनाए रखने का एक मात्र माध्यम डंडा,भय या पिटाई ही है। शिक्षण के लिए जरूरी पाठ्यक्रमों में बाल मनोविज्ञान और शिक्षण की विभिन्न विधियों पर दर्जनों पाठ होते हैं। प्रत्येक प्रशिक्षित शिक्षक को यह सब विस्तार से पढ़ाया जाता है।

कई बार अभिभावक भी भावावेश में शिक्षकों को बच्चे की पिटाई की छूट देने की बात कहते हैं पर अंतोत्गत्वा यह जिम्मेदारी विद्यालय की ही है कि किसी भी बालक की बेरहमी से पिटाई नहीं हो।

क्योंकि यह सिर्फ एक बच्चे की बात नहीं होती। सैकड़ों बच्चे ऐसे दृश्य देखते है और ऐसी किसी भी घटना का संदेश अच्छा नहीं जाता। अंत में निदा फाजली का एक शेर-

बच्चों के नन्हे हाथों को चांद -सितारे छूने दो,

चार किताबें पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जाएंगे।


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