scriptसातों बेटियों ने पिता की अर्थी को दिया कांधा | Seven daughters gave the shoulder to father's father | Patrika News

सातों बेटियों ने पिता की अर्थी को दिया कांधा

locationबाड़मेरPublished: Nov 29, 2020 12:21:21 pm

Submitted by:

Ratan Singh Dave

– हेमसिंह महाबार के निधन बाद अनूठी मिसाल- पिता की अंतिम यात्रा में शामिल हुई बेटियां- रेगिस्तानी क्षेत्र में इस तरह के उदाहरण बहुत कम

सातों बेटियों ने पिता की अर्थी को दिया कांधा

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सातों बेटियों ने पिता की अर्थी को दिया कांधा
बाड़मेर पत्रिका.
सीमांत बाड़मेर जिला जहां से शिक्षा के अभाव और रूढ़ीवादिता की कहानियां अब खत्म होने लगी है और बेटियां ऐसे उदाहरण पेश कर रही है जिससे समाज में बेटे-बेटी के भेदभाव की स्थितियां खत्म हो रही है। सीमांत जिला 1000 बेटों पर 992 बेटों के आंकड़े तक पहुंचकर भ्रूणहत्या के अभिशाप को धो रहा है तो समाज में बेटे-बेटी के बराबर होने की मिसाल पेश कर रहा है इसी समय में अब बेटियां अपने पिता के अंतिम संस्कार में अर्थी को कांधा देकर भी यह भावना सामने ला रही है कि बेटे-बेटी में कोई फर्क नहीं। महाबार गांव के पूर्व सरपंच, राजपुराहित समाज के मौजिज व्यक्ति और पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत के राजनीतिक मित्र हेमसिंह राजपुरोहित की अर्थी को रविवार को उनकी सातोंं बेटियों ने कांधा दिया तो समाज में एक नई और प्रेरणादायक सोच सामने आई। राजपुरोहित समाज के अखिल भारत स्तरीय आसोतरा मंदिर ट्रस्ट के आजीवन सदस्य हेमङ्क्षसह राजपुरोहित समाज के भारत स्तर के समाजसेवियों में माने जाते है। उनका निधन शनिवार को हो गया। हेमसिंह के सात बेटियां है। पिता के निधन के बाद रविवार को गांव में अंतिम संस्कार हुआ तो सातों बेटियां अर्थी को कांधा देने पहुंची और उन्होंने यहां पिता को मुखाग्रि दी। उनकी चिता के सात फेरे लगाकर अंतिम विदाई दी। सातों बेटियों मगूकंवर, छगनकंवर, तीजोंकंवर, पूरीकंवर, सारी कंवर, धापूकंवर, धाईकंवर ने पिता को अंतिम विदाई दी।
यह है यहां रिवाज
रूढीवादी रिवाज के मुताबिक बेटियां यहां श्मशान तक नहीं जाती है। बेटियों और बहूओं को घर में ही रहकर परिजन के निधन पर बैठना होता है। इलाके में यह पहला मौका था कि बेटियों ने अपने पिता की अंतिम यात्रा में घर से बाहर आई और कहा कि वे भी पिता के अंतिम संस्कार में शामिल होगी। यहां मौजूद लोगों ने इस पर कोई ऐतराज करने की बजाय इसको सराहा और बेटियों को पिता की अंतिम यात्रा में न केवल शामिल किया उनके हाथ से ही अंतिम संस्कार व अन्य रीति रिवाज संपन्न करवाए।
मिसाल बना है पहले भी समाज
राजपुरोहित समाज ने इससे पहले आसोतरा मंदिर में संकल्प लिया कि समाज में नशावृत्ति पर प्रबंध लगाया जाएगा। सामाजिक कार्यक्रम में नशा नहीं लिया जाएगा। समाज की इस प्रेरणा से समाज में नशावृत्ति पर बड़े स्तर पर असर नजर आया है। अधिकांश लोग अब नशावृत्ति से परहेज करने लगे है। इसी तरह समाज में शिक्षा और संस्कार को लेकर भी लगातार प्रयास किए जाने लगे है। सामाजिक परिवर्तनों की पहल में समाज ट्रस्ट के साथ ही समाज के अगुवा लोगों की भूमिका सामने आ रही है।
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