
Special report on the example of Barmer workers
बाड़मेर.मजदूर के श्रम की बूंदें थार के रेगिस्तान में अनमोल मोती बन रही हैं। मजदूरों के बेटे आइएएस अफसर बनकर कमाल कर रहे हैं तो किसी मजदूर ने दिन-रात मेहनत कर संतान को डॉक्टर बना दिया। कुछ मजदूर यहां एेसे भी हैं जिन्होंने इतनी मेहनत की कि कभी सौ रुपए मुश्किल से कमाते थे और आज करोड़ों के मालिक हैं। कमाल यह भी है कि यहां मजदूर अंगे्रजी भी बोलते हैं और आयकर भी चुकाते है। मेहनतकशों की मिसाल पर विशेष रिपोर्ट-
खुद मजदूरी की, संतान को बनाया अफसर
पिता किसान, बेटा आइएएस
जिले के सीमावर्ती जैसिंधर गांव के मदनसिंह ईन्दा का पिछले साल आइएएस में चयन हुआ। मदनसिंह के पिता मूलसिंह सामान्य किसान हैं और खेत में मजदूरी करते हुए बेटे की शिक्षा में पूरा साथ दिया। मदनङ्क्षसह कहते है कि उनके पिता सामान्य मजदूर किसान हंै और उनका आइएएस बनना इससे और गौरवपूर्ण हो जाता है।
मजदूर पिता, एक आइएएस, एक आइआरएस
गंगाला गांव के आइएएस जोगाराम जांगिड़ और उनके छोटे भाई आइआरएस शंकर जांगिड़ हैं। पिता अर्जुनराम सामान्य मजदूर रहे। बेटों की इस सफलता ने मजदूर पिता के नाम को रोशन कर दिया।
पिता खेतीहर, बेटों ने छुआ आसमान
धोरीमन्ना कस्बे के कृष्ण विश्नोई का हाल ही में सिविल सेवा में चयन हुआ है। सामान्य खेतीहर किसान के इस लाडले ने 176 वीं रैंक हासिल की है। अभी चीन मामलों में भारत सरकार के सलाहकार हैं और इससे पहले विदेश मंत्रालय में कार्यरत रहे हैं। सामान्य खेतीहर किसान के इस बेटे ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पढाई की और वो भी चालीस लाख छात्रवृत्ति पर।
दोनों बेटों को बनाया डॉक्टर
पचपदरा के कालूराम भील भवन निर्माण मजदूर रहे हैं। उन्होंने अपने दो बेटों जीआर भील और बंशीलाल के लिए अलग सपना देखा और पढ़ाई पर ध्यान दिया। इनके दोनों ही लड़के चिकित्सक हैं। जीआर भील बताते हैं कि पिता की मजदूरी का संघर्ष उन्हें हौसला देता रहा।
यह भी कमाल है न...
आयकर चुकाते हैं मजदूर- भारतीय खाद्य निगम(एफसीआई) में 1991 में कार्यरत मजदूरों को स्थायी कर दिया गया था। उस समय 24 मजदूर स्थायी हुए थे। इसमें से बारह से अधिक मजदूर आज भी कार्यरत है। इन मजदूरों को तनख्वाह के अलावा इन्सेटिव मिलता है। यह राशि मासिक एक लाख के करीब हो जाती है। इस कारण तीन से चार लाख रुपए आयकर चुकाते हैं।
अंग्रेजी बोलते हैं मजदूर- यहां कार्य कर रही तेल कंपनियों में मजदूरों का स्कील डवलपमेंट करवाया जाता है। राजमिस्त्री नाम से चल रहे इस प्रशिक्षण में मजदूरों को तकनीक के साथ अंग्रेजी सिखाई जाती है। तेल कंपनियों के अन्यत्र चल रहे कार्याें में भी इनको नियोजित किया जाता है।
दुबई में 40 साल से बाड़मेर के मजदूर- बाड़मेर के मजदूरों ने अपने कौशल का प्रदर्शन सात समंदर पार तक भी किया है। यहां मजदूरी नहीं मिलने पर करीब चार दशक से बाड़मेर से हजारों मजदूर दुबई पहुंच गए हैं। विश्ेाषकर लकड़ी के कारीगर। यहां काम करने वाले इन लोगों में से कइयों ने खुद को सक्षम बनाकर नाम कमाया है।
मजदूर से बन गए मालिक
1 भिंयाड़ के नवलकिशोर गोदारा ने नमक की थैलियां उठाकर जिंदगी की शुरूआत की थी। वे मजदूरी के सहारे साउथ अफीक्रा पहुंचे। वहां मजदूरी के साथ अपनी व्यापारिक कुशलता से आगे बढ़े और अब कांगो में उनका कास्मेटिक का बड़ा कार्य है। क्षेत्र के करीब ढाई सौ युवक अभी उनके साथ मेहनत- मजदूरी से जुडे़ हैं।
2. रॉयकालोनी के गिरधारीलाल जांगिड़ फर्नीचर की मजदूरी करने दुबई गए थे। उन्होंने वहां कार्य करते हुए खुद का मुकाम हासिल किया और व्यापारी बने। वहां से बाड़मेर लौटकर आए और यहां मॉल बना दिए हैं। साथ ही यहां खजूर की खेती करने वाले सफल किसान बने हैं।
3. कभी रोड़ रोलर पर मजदूरी करने वाले तनसिंह चौहान अब शहर के डबल ए क्लास ठेकेदार हैं। साक्षर तनसिंह ने मजदूरी के साथ ही अपने व्यावसायिक कौशल के चलते खुद का मुकाम हासिल किया है।
4. कोळू गांव के पृथ्वीराजसिंह दुबई में ऊंट चराने गए थे। वहां उन्होंने पाइप वक्र्स का कार्य शुरू कर दिया और अब आस पास के कई देशों में कार्य करते हुए मजदूर से मालिक बन गए है।
बाड़मेर के मजदूर करते हैं कमाल
हैण्डीक्राफ्ट
- सीमावर्ती क्षेत्र के मजदूरों का बड़ा कमाल है यहां का हैण्डीक्राफ्ट। पाकिस्तान के सिंध से आई इस कला को यहां की हजारों महिलाएं अपनाए हुए हैं। करोड़ों के हैण्डीक्राफ्ट उत्पाद विदेश तक जाते हैं। जो वहां पहली पसंद बने हुए हैं। ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान की अध्यक्ष रूमादेवी बताती हैं कि फ्र ांस, रूस और कई देशों में इन उत्पादों की मॉडलिंग भी अब प्रारंभ हो गई है।
नक्काशी
- बाड़मेर की नक्काशी भी यहां के मजदूरों का बेमिसाल कार्य है। जैसलमेर के पत्थर पर महीन नक्काशी देखकर प्रोत्साहित हुए यहां के सुथार कारीगरों ने इसको अपना लिया और रोहिड़े की लकड़ी पर इस कारीगरी को उतार लिया। फिर क्या था फर्नीचर बनने लगा तो पहली पसंद बन गया। कामदार कंपनी के नरेश जांगिड़ बताते हैं कि बाड़मेर की यह नक्काशी कई देशों में पहुंच गई है, जहां उत्पाद भेजते हैं। देशभर में भी इसको पसंद किया जाता है।
बाड़मेरी प्रिंट
- बाड़मेरी प्रिंट की चद्दर और अन्य उत्पाद भी देशभर में पहुंच रहे हैं। यहां बेडशीट, पिल्लो कवर और अन्य उत्पाद पर प्राकृतिक रंगों से होने वाली छपाई पिछले चार दशक से जारी है। इसका मार्केट पूरे देश में है। बाड़मेरी प्रिंट के नाम से पहचान रखने वाली अजरख व अन्य उत्पाद बनाने में हजारों मजदूर कार्यरत हैं।
मजदूरी से मंत्री तक
प्रदेश के पंचायतीराज मंत्री रहे अमीनखां का जीवन भी मजदूरी से शुरू हुआ। अमीनखां बताते हैं कि वे अकाल राहत कार्य पर मजदूरी करते थे। इसके बाद वे सार्वजनिक जीवन में आए और शिव के विधायक बने। पिछली प्रदेश सरकार में वे पंचायती राज मंत्री रहे। अमीन इस बात को दोहराते हैं कि लोकतंत्र में एक मजदूर को प्रदेश का मंत्री बनने का अवसर मिला।
Published on:
01 May 2018 09:04 am
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