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मोदी-गहलोत की हामी से शुरू हो सकती है यह रेलवे परियोजना

फैक्ट फाइल - खास खबर339 किलोमीटर है प्रस्तावित रेलवे लाइन31 रेलवे स्टेशन जुड़ेंगे5000 करोड़ रखा था प्रस्तावित खर्च

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मोदी-गहलोत की हामी से शुरू हो सकती है यह रेलवे परियोजना

मोदी-गहलोत की हामी से शुरू हो सकती है यह रेलवे परियोजना


रतन दवे
बाड़मेर पत्रिका.
राज्य व केन्द्र के लिए तेल व खनिज के बूते अरबों की सालाना कमाई और खरबों के निवेश की योजनाएं लिख रहे बाड़मेर की एक महती योजना महज 5000 करोड़ के लिए पटरी से उतर गई है। यह रेल परियोजना बाड़मेर-जैसलमेर-भाभर की है,जिसका सर्वे 2013 में पूरा हो गया। रेल लाइन जुड़े तो गुजरात और राजस्थान के बॉर्डर के आम आदमी ,सैनिकों, पर्यटन और तेल क्षेत्र के लिए बड़ी सुविधा बन जाए।
जैसलमेर-बाड़मेर-भाभर तक 339 किमी की इस परियोजना से राजस्थान और गुजरात के 31 नए स्टेशन जुडऩे है। 1996 में परियोजना का पहली बार प्रस्ताव लिया गया,जब तेल-गैस और आर्थिक उन्नति का कहीं आधार नहीं था। 1999 तात्कालीन सांसद ने संसद में ठोस पैरवी की और 2003 में इस रेलवे लाइन के सर्वे के लिए बजट जारी किया गया। इन्हीं दिनों विश्व की सबसे बड़ी तेल खोज मंगला बाड़मेर में आ गई। उम्मीद जगी कि तेल की खराबों की कमाई में रेल योजना सिरे चढ़ेगी। 2009 से 2013 तक सर्वे पूर्ण कर लिया गया। बाड़मेर-जैसलमेर 145 किमी के लिए 517 करोड़, बाड़मेर भाभर 193.84 किमी के लिए 798 करोड़ और थराद रोड़ बनासर तक 80.75 किमी के लिए 370 करोड़ व्यय हुए।
रेलवे ने खींच लिए हाथ
रेलवे ने सर्वे बाद इसको ऋणात्मक बताकर हाथ खींच लिए और महज 5000 करोड़ की इस परियोजना को हरीझण्डी नहीं दी। जबकि यह स्थितियां अब नहीं है। 2003 और 2022 की आर्थिक गतिविधियों, परिवहन और उन्नति में रात-दिन का फर्क आया है।
पैरवी हुई और हां भी,लेकिन काम नहीं
इस परियोजना को लेकर राज्य के मुख्यमंत्री और केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितिन गड़करी की कई मंच पर बात हुई, प्रस्ताव रखा लेकिन बात नहीं बन पाई। हर बार प्रस्ताव पर विचार पर आकर मामला अटक गया।
अब पैरवी का सही वक्त
दो दिन पहले ही केयर्न कंपनी ने 5 बिलियन डॉलर अमेरिकी डॉलर यानि 4 खरब , 12 अरब , 40 करोड़ और 15 लाख के निवेश की घोषणा की है। यह निवेश दस साल में होगा। रिफाइनरी के लिए करीब एक लाख करोड़ खर्च हो रहे है। इस दौर में 5000 करोड़ रुपए रेलवे लाइन के लिए बड़ी रकम नहीं है। बढ़ी महंगाई में 10 हजार करोड़ भी हो जाए तो कोई बड़ी बात नहीं है। इस सही वक्त में केन्द्र इस मांग को पूरी कर सकता है।


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