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पानी तो बाद की बात….पहले पूरा स्टाफ तो लगाओ..कहें तो किससे ?

गर्मियों शुरू होते ही सीमावर्ती क्षेत्र के लोगों को पानी की किल्लत खड़ी होने की फिक्र सताने लग जाती है। अप्रेल से जुलाई तक चार महीने संकट के दिन है।

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सहायक अभियंता कार्यालय गडरारोड में 16 ट्यूबवैल चलते थे, जिससे समूचे सीमावर्ती क्षेत्र के सैकड़ों गांवों में टैंकरों सहित पाइपलाइन से जल आपूर्ति होती थी। साथ ही सीमा पर तैनात बीएसएफ,सेना के जवानों को टैंकरों के माध्यम से पानी पहुंचता था। लेकिन पिछले कई सालों से सरकार ने स्थायी लाइनमैन की भर्ती ही नहीं की है। ऐसे में ये ट्यूबवेल संचालित हों तो कैसे? लाइनमैन एक-एक करके सेवनिवृत्त होते रहे हैं। नई भर्ती नहीं निकलने से जिम्मेदार कर्मचारी की उपलब्ध नहीं है। गडरारोड कस्बे में 16 में से महज 6 टयूबवैल ही चालू स्थिति में है। शेष सभी खराब पड़े हैं। इसे ठीक करने के लिए पर्याप्त कार्मिक ही नहीं है।

यह हो रहा असर

कर्मिको की कमी के कारण कभी किसी मोहल्ले में पानी की पूरी आपूर्ति नहीं हो पाती तो कभी वॉल्व नहीं बदलने से किसी मोहल्ले में अनियमित रूप से जलापूर्ति की जाती है। कस्बे में कई जगह अकसर पानी लीकेज होता रहता है, तो वहीं कई घरों में अवैध रूप से किए गए कनेक्शनों के चलते पानी पहुंचता ही नहीं है।

सहायक अभियंता कार्यालय में अधिकारी नहीं

कोई उपभोक्ता समस्या को लेकर विभागीय अधिकारियों के पास पहुंचे वहां अधिकारियों की सीट खाली है। विभागीय अधिकारियों की कमी से अधिकारी बैठकों व अन्य कार्य में व्यस्त रहते है। लोगों को ऐसे में बैरंग लौटना पड़ता है।