आजादी के 70 सालों में भी पहाड़ी ग्रामों में नहीं बनी सड़कें, पाटी, बोकराटा के दुर्गम क्षेत्रों में नहीं है आवागमन के साधन
बड़वानी. जिले का सबसे पिछड़ा इलाका पाटी क्षेत्र के कई पहाड़ी वनग्राम आजादी के 70 साल बाद भी सड़कों से वंचित है। पहुंच मार्ग विहिन इन ग्रामों में बच्चों को नहीं बल्कि बीमार, वृद्धों को झूले में डालकर पहुंच मार्ग तक लाया जाता है, जिसके बाद स्वास्थ्य केंद्रों तक ये बीमार जा पाते है। क्षेत्र के कई ग्राम ऐसे भी है जहां वर्षों पहले सड़कें बनी तो जरूर, लेकिन रखरखाव के अभाव में जर्जर हाल में पहुंच गई है। आज भी इन क्षेत्रों में कई किमी दूर तक पैदल चलने पर ही मंजिल मिल पाती है। जिम्मेदार विभाग नियमों का हवाला देकर काम नहीं कर पाने की असमर्थता जता रहे हैं।
वनबंधु योजना में शामिल किया गया है
आदिवासी बाहुल्य इलाका और अति पिछड़ा क्षेत्र होने के कारण प्रदेश में एकमात्र ब्लॉक पाटी को केंद्र की महत्वपूर्ण वनबंधु योजना में शामिल किया गया है। योजना के तहत पाटी ब्लॉक में आदिवासियों को रोजगार , शिक्षा, स्वास्थ्य के क्षेत्र में करोड़ों रुपए के काम किए जा रहे हैं। इन सबके बावजूद यहां सड़कों की सुध लेने वाला कोई नहीं है। ब्लॉक के कई पहाड़ी और वन ग्राम तो ऐसे है जहां आज तक कभी सड़क बनी ही नहीं। इसमें भादल, कोटबांधनी, धजारा, तुअरखेड़ा, करई ग्राम शामिल है। इन ग्रामों से आज भी लोगों को आने जाने के लिए या तो पैदल या फिर बैलगाड़ी, घोड़ागाड़ी का सहारा लेना पड़ रहा है। इन ग्रामों को देखकर ऐसा लगता ही नहीं कि आजादी के बाद ये किसी विकासशील देश के गांव है।
9 साल में भी नहीं बना सात किमी मार्ग
पाटी क्षेत्र के ग्राम ग्राम पिपरकुंड से शिवनी तक 9 किमी का रोड सात साल में भी नहीं बन पाया है। ग्रामीण एक गांव से दूसरे गांव में जाने के लिए इसी मार्ग का उपयोग करते है। इस मार्ग पर पैदल चलना भी मुश्किल है। ग्रामीणों का कहना है कि उक्त सड़क निर्माण का कार्य 2008 में प्रारंभ हुआ था, लेकिन वन विभाग से अनुमति नही मिलने के कारण काम रोक दिया गया। इसके बाद 2016 में अनुमति के बाद भी सड़क निर्माण का काम अधूरा पड़ा हुआ है। ग्रामीणों ने बताया कि सड़क निर्माण शुरू होने के पूर्व सड़क अच्छी हालत में थी, लेकिन निर्माण कंपनी के ठेकेदार ने सड़क खोद दी, जिसके बाद मार्ग की हालत बद से बदतर हो गई।
झोली में डालकर ले जाते है स्वास्थ्य केन्द्र तक
शिवनी गांव में किसी के घर पर गंभीर बीमारी से पीडि़त मरीज हो या फिर किसी के यहां प्रसूता हो, दोनों ही स्थिति में ग्रामीणों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। गांव के लोग मरीज को झोली में डालकर स्वास्थ्य केन्द्र तक ले जाते है। वहीं गांव की इस 7 किमी सड़क की बदतर हालत के कारण चार पहिया वाहन तो दूर दो पहिया वाहन भी ठीक से नही चल पाता है। गांव के पांडू व लाखा का कहना है कि पहले खेत की फसलों और जरुरत का सामान ट्रेक्टर से ले जाते थे। लेकिन अब हालात यह हो गए है कि पैदल चलना भी मुश्किल है।
योजनाओं का लाभ पहुंचाने में भी आती परेशानी
पहुंच मार्ग विहिन गांवों में शासन की योजनाओं को पहुंचाने में भी सरकारी अमले को परेशानी उठाना पड़ रही है। पाटी ब्लॉक के दुर्गम क्षेत्रों में कलेक्टर की पहल पर सघन टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है। यहां 130 ग्रीन कमांडो (एएनएम) पहुंच मार्ग विहिन गांवों में पहुंचकर टीकाकरण करती हैं। इसमें ग्रीन कमांडों को चार से पांच घंटे 8 से 12 किमी तक पैदल सफर करना पड़ रहा है। वहीं, पाटी क्षेत्र के शिवनी में 17 नवंबर की शाम हुए मर्डर केस में भी आरोपितों को पकडऩे के लिए पुलिस को 26 किमी दूर तक पैदल आना-जाना पड़ा था।
नियम आ रहे आड़े
ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क निर्माण के लिए दो सरकारी एजेंसी प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना और ग्रामीण यांत्रिकी सेवा (आरईएस) कार्य कर रही है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के महाप्रबंधक एसपीएस सांवले ने बताया कि उनके पास 250 परिवार वाले ग्रामों को सड़क से जोडऩे की योजना थी, जिसमें 93 गांवों को सड़कों से जोड़ा गया। अब कोई नई योजना नहीं है। वहीं, आरईएस के अधिकारियों का कहना है कि मनरेगा के अलावा कोई मद नहीं आता सड़कों के लिए। मजदूरी और मशीन में 60/40 के रेशो में इन ग्रामों में सड़क बनाना मुश्किल है। वन ग्राम होने से वन विभाग की परमिशन भी मिलना मुश्किल होती है। जिसके कारण रोड निर्माण नहीं हो पाते।
मशीनों के बिना संभव नहीं
मनरेगा के अलावा कोई मद नहीं है, उसमें 60 प्रतिशत मजदूर और 40 प्रतिशत मशीनों से काम कराना अनिवार्य है। पहाड़ी क्षेत्रों में ये संभव नहीं है। घाट कटिंग का काम मशीनों से ही संभव है, जिसके कारण काम नहीं हो पा रहे हैं।
-मांगीलाल डावर, ईई आरईएस