18वीं शताब्दी का गोपीनाथ मंदिर हो रहा था जर्जर, दिगराज सिंह शाहपुरा ने कराया जीर्णोद्वार
दिगराज सिंह शाहपुरा ने पहले बिशनगढ़ के राम मंदिर एवं शाहपुरा के नृसिंह मंदिर का जीर्णोद्वार करवाया था। दिगराज सिंह अब तक 10 छोटे-बड़े मंदिरों का जीर्णोद्वार करवा चुके हैं
जयपुर। शाहपुरा स्थित गोपीनाथजी मंदिर 18वीं शताब्दी का अद्वितीय और ऐतिहासिक धार्मिक स्थल है। यह सैकड़ों वर्षों से भक्तों और श्रद्धालुओं को आकर्षित कर रहा है। यह मंदिर न केवल एक पूजा स्थल के रूप में प्रसिद्ध है, बल्कि यह शाहपुरा की सास्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा भी है। इस मंदिर की स्थापत्य कला और धार्मिक महत्व ने इसे समय के साथ और भी महत्वपूर्ण बना दिया है।
मंदिर के निर्माण के समय से ही यह आध्यात्मिकता और धार्मिक आस्था का केंद्र रहा है। इसने न केवल शाहपुरा के लोगों को, बल्कि दूर-दराज से आने वाले भक्तों को भी अपनी ओर आकर्षित किया है। यह मंदिर अपनी अद्वितीय वास्तुकला, भव्यता और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए प्रसिद्ध है।
हालांकि समय के साथ इस मंदिर की संरचना में क्षति आने लगी और इसे पुनः भव्य बनाने के लिए जीर्णोद्धार की आवश्यकता महसूस हुई। इस कार्य को समाजसेवी दिगराज सिंह शाहपुरा ने अपने कंधों पर लिया और मंदिर को फिर से उसकी पुरानी भव्यता लौटाने का संकल्प लिया।
जीर्णोद्धार का आरंभ और सोने सी चमक गोपीनाथ जी मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य पिछले वर्ष जन्माष्टमी पर शुरू हुआ। इस जीर्णोद्धार के दौरान मंदिर के विभिन्न हिस्सों की मरम्मत और पुनर्निर्माण किया गया। इस प्रक्रिया में दिगराज सिंह शाहपुरा ने मंदिर की मूल स्थापत्य शैली को बनाए रखते हुए इसे अधिक भव्य बनाने का निर्णय लिया।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि इस जीर्णोद्धार में 24 कैरेट सोने का प्रयोग किया गया, जिससे मंदिर की भव्यता बढ़ गई। इस सोने का उपयोग मंदिर के गुंबद, मुख्य द्वार और अन्य प्रमुख हिस्सों में किया गया।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व बढ़ा दिगराज सिंह शाहपुरा ने कहा कि गोपीनाथ जी मंदिर शाहपुरा की धार्मिक और सास्कृतिक धरोहर का महत्त्वपूर्ण प्रतीक है और इसका जीर्णोद्धार आने वाली पीढ़ियों के लिए इसे संरक्षित रखने का एक आवश्यक कदम है। गोपीनाथ जी मंदिर के जीर्णोद्धार के बाद शाहपुरा के लोगों में इस कार्य के प्रति श्रद्धा और सम्मान का भाव उत्पन्न हुआ है। लोगों ने दिगराज सिंह के इस महत्वपूर्ण योगदान की प्रशंसा की है। लोगों ने कहा कि इस जीर्णोद्धार से न केवल मंदिर की भव्यता में वृद्धि हुई है, बल्कि इससे शाहपुरा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी बढ़ा है।
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