राजकुमार मीना
बस्सी. उपखंड क्षेत्र के ग्राम पंचायत दूधली के मॉडल तालाब पर काम कर रही दर्जनों मनरेगा मजदूर भीषण गर्मी व तपती धूप में कार्य कर रही है। कार्यस्थल पर ना टैंट और ना ही दवाइयां उपलब्ध थी। पेड़ की छाया में ही विश्राम करना पड़ता है। राजस्थान पत्रिका की टीम सोमवार सुबह 11.22 बजे जब ग्राम पंचायत दूधली की मॉडल तलाई पर पहुंची भीषण गर्मी व तेजधूप में कार्य रही रही महिला श्रमिकों ने पत्रिका टीम को बताया कि जितना काम करते है, उतनी मजदूरी नहीं मिल रही है…।
मनरेगा में जितनी मजदूरी मिलती है, उससे ज्यादा पैसे तो बेलदारी व अन्य कार्यों में ही मेहनताना मिल जाता है। मनरेगा मजदूर मिट्टी खोदकर टैंट की छाया नहीं होने से जगह-जगह तलाई की पाळ पर पेड़ों की छांव में कोई पानी पी रही थी तो कोई खाना खा रही थी। महिला मजदूरों ने बताया कि छाया के लिए टैंट तो नहीं लगाया जा रहा है, वे पेड़ों की छांव में ही बैठकर खाना खाती है। सरकार ने इस अप्रेल से मनरेगा मजदूरों की मजदूरी की दरों को 266 रुपए से बढ़ाकर 281 रुपए प्रतिदिन कर दी है। इस बार मजदूर व मेटों की मजदूरी की दर 281 रुपए बराबर कर दी है। जबकि मनरेगा मजदूरों का कहना था कि कभी दो सौ तो कभी इससे कम मजदूरी मिल रही है। (कासं.)
दवाइयों के खाली पत्ते, ओआरएस भी नहीं था
जब मेट रेखा मीना व मजदूरों से दवाइयों के बारे में पूछा तो कई मजदूर तो कह रही थी कि साहब दवाई मिलती है, तो कई ने कोई जवाब ही नहीं दिया। लेकिन जब मेट रेखा मीना से बात की तो उन्होंने पहले तो कहा कि यहां दवाइयों की कोई कमी नहीं है, लेकिन जब उनसे कहा कि दवाइयां दिखाओ तो सही। इस पर मेट ने एक पॉलीथिन दिखाई तो दवाइयों के तीन-चार खाली पत्ते ही थे, जिनमें एक भी टेबलेट नहीं थी और एक ट्यूब थी, जिसमें कुछ दवाई थी। जब मेट से ओआरएस घोल व प्राइमरी दवाइयों के लिए कहा तो मेट ने कहा कि आज ही खत्म हुई है, घर पड़ी है, कल लेकर आएगी।
टैंट का लाने-ले जाने झंझट
मेट का कहना था कि यहां पेड़ों की छांव खूब है। टैंट की आवश्यकता ही नहीं है। टैंट का लाने व ले जाने का झंझट है। जबकि गाइड लाइन यह है कि गर्मी के मौसम में मनरेगा की साइड पर टैंट लगाना जरूरी है। ताकि मजदूर उसमें विश्राम कर सकें। समय कम करना चाहिए दूधली की मॉडल तलाई पर काम रही महिला मजदूरों ने बताया कि वे सुबह 6 बजे काम करने आ जाती है। सुबह दस बजे बाद ही तेजधूपपड़ जाती है। सरकार को भीषण गर्मी में समय कम करना चाहिए, ताकि मजदूरों को गर्मी में परेशानी का सामना नहीं करना पड़े।
नजदीक काम स्वीकृत हो तलाई पर काम कर रही सुजानपुरा की देवाना की ढाणी महिला मजदूर कौशल्या देवी ने बताया कि वे तीन किलोमीटर दूर से यहां काम करने आती है। वे किराए से टैम्पो लेकर आती है। उनकी ढाणी के पास ही काम स्वीकृत होना चाहिए, ताकि उनको इतना दूर नहीं आना पड़े। मांगी देवी ने बताया कि उनको पहले ही दौ सौ रुपए के आसपास मजदूरी मिलती है, जिसमें से भी किराया भाड़ा का खर्च अलग हो जाता है। (कासं.)
इनका कहना है… – पंचायत समिति की ओर से टैंट, छाया, पानी व दवाइयां उपलब्ध कराने के आदेश हैं। ये सारी सुविधाएं उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी ग्राम पंचायत की है। टैंट की आवश्यकता कम पड़ती है। आंधी चलती है तो फटने का डर रहता है। मुकेश कुमार बड़जात्या, विकास अधिकारी, बस्सी
मजदूरों की जुबानी…
– तलाई में मिट्टी कड़क है, फावड़ी से बहुत मुश्किल से खुदती है। भीषण गर्मी में मिट्टी को खोदकर तलाई की पाळ पर पहुंचाना बड़ा मुश्किल हो जाता है। बीना देवी, मजदूर –
भीषण गर्मी में जितनी मेहनत से मिट्टी की खुदाई करती है, उसके अनुसार मजदूरी नहीं मिलती है।
– छोटा देवी, मजदूर दूधली
– छाया-पानी की तो कोई परेशानी नहीं है, लेकिन मजदूरी कम मिल रही है। सुबह वे बिना खाना खाए आती है और कड़ी मेहनत करती है, उतनी मजदूरी नहीं मिल रही है।
– पुष्पा देवी प्रजापत, मजदूर
– इन दिनों गर्मी अधिक पड़ रही है। मिट्टी खुदाई के काम में भी दिक्कत आ रही है, यहां पर कड़क मिट्टी है। पानी भी दूर से लाना पड़ता है।
– झमकू देवी, मजदूर –
नजदीक काम स्वीकृत होना चाहिए। यहां से उनका घर तीन किलोमीटर दूर है। टैम्पों किराए से लेकर आना पड़ता है। पहले ही कम मजदूरी आती है, यदि उनके घर से नजदीक काम हो तो गर्मी में इतना दूर नहीं आना पड़े।
– मांगी देवी, मजदूर देवाना की ढाणी – मनरेगा में भीषण गर्मी में काम करना पड़ रहा है। सुबह का समय तो ठीक है, लेकिन दोपहर को छुट्टी 12 बजे की बजाय साढ़े 10- 11 बजे होनी चाहिए। दस बजे बाद काम करना मुश्किल हो जाता है।
– ऊषा देवी, मजदूर