19 दिसंबर 2025,

शुक्रवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

चिकित्सा व्यवस्था का हाल: कागजों में ट्रोमा यूनिट ‘जिंदा’, हकीकत में मरणासन

बस्सी में आगरा रोड, चौमूं में जयपुर-सीकर हाईवे और शाहपुरा में जयपुर-दिल्ली हाईवे गुजर रहा है, जहां आए दिन सड़क हादसों में लोग घायल हो रहे हैं। घायलों को संबंधित ट्रोमा इकाइयों में पहुंचाया जाता है, लेकिन मरहम-पट्टी के बाद जयपुर रेफर किया जा रहा है।

3 min read
Google source verification

बस्सी

image

Vinod Sharma

Jul 11, 2024

trauma center in Jaipur rural

गोल्ड आवर में घायलों को नहीं मिल पा रही चिकित्सा, हाईवे पर आए दिन हो रहे हादसे

सरकार ने जयपुर ग्रामीण जिले के चौमूं, शाहपुरा और बस्सी में उपजिला अस्पताल खोल दिए, लेकिन ट्रोमा इकाई को विकसित नहीं किया। नतीजतन, चिकित्सा संसाधनों एवं विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी के कारण हादसों में घायल गंभीर मरीजों को गोल्ड आवर में उपचार नहीं मिल रहा है। स्थिति यह है कि हर माह औसतम 100 से अधिक दुर्घटनाएं होती हैं। इनमें हुए घायलों को उप जिला चिकित्सालयों में लाया जाता है तो सीधे प्राथमिक उपचार के बाद जयपुर रैफर कर दिया जाता है। चौमूं में तो ट्रोमा इकाई महज एक छोटे से कमरे में है, जिसमें दो-तीन स्ट्रेक्चर भी मुश्किल से आती हैं।

आए दिन सड़क हादसों में लोग घायल हो रहे
जयपुर ग्रामीण जिले में सुविधायुक्त ट्रोमा सेंटर की कमी खल रही है। बस्सी में आगरा रोड, चौमूं में जयपुर-सीकर हाईवे और शाहपुरा में जयपुर-दिल्ली हाईवे गुजर रहा है, जहां आए दिन सड़क हादसों में लोग घायल हो रहे हैं। घायलों को संबंधित ट्रोमा इकाइयों में पहुंचाया जाता है, लेकिन मरहम-पट्टी के बाद जयपुर रेफर किया जा रहा है। इकाई में विशेषज्ञ चिकित्सक होना तो दूर सामान्य चिकित्सक भी स्थायी रूप से नियुक्त नहीं है। अस्पताल में नियुक्त चिकित्सकों एवं नर्सिंगकर्मियों को रोटेशन के तहत उपचार के लिए लगाया जा रहा है। चौमूं के उपजिला अस्पताल में सालों पहले ट्रोमा सेंटर की सौगात मिली थी, लेकिन सुविधाओं में विस्तार नहीं किया। अस्पताल परिसर में संचालित ट्रोमा दो छोटे कमरों में संचालित है। विशेषज्ञ चिकित्सक के अलावा संसाधन भी नहीं है। इमरजेंसी के दौरान अस्पताल से कॉल पर चिकित्सक बुलाया जाता है। ऐसे में कई बार चिकित्सक के आने में देरी होने पर मरीज की जान पर बन आती है।

शाहपुरा में हर माह 40 रैफर
शाहपुरा उपजिला अस्पताल में प्रतिमाह औसतन करीब 40 क्रिटिकल केसों को सुविधाओं के अभाव में जयपुर रैफर किया जा रहा है। स्थिति यह है कि ट्रोमा सेंटर में एक्सरे, ईसीजी, जांच, मेडिसिन आदि की सुविधा उपलब्ध है, लेकिन यह महज सुबह 8 बजे से शाम 8 बजे तक ही रहती है। संसाधनों एवं विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी से गंभीर रूप से घायल व बीमार लोगों को जयपुर रैफर कर दिया जाता है।

यह होनी चाहिए ट्रोमा सेंटर की फेसिलिटी
हादसों में गंभीर रूप से घायल हेडइंजरी, फ्रैक्चर और आग में झुलसे हुए मरीजों को तत्काल इलाज मुहिया कराने के लिए ट्रोमा सेंटर की जरूरत है। इसमें एक ही छत के नीचे आर्थोपेडिक, न्यूरोसर्जरी, बर्न, कार्डियक और प्लास्टिक सर्जरी जैसे एक्सपर्ट डॉक्टर और डायग्नोसिस फेसिलिटी की सुविधा होती है, लेकिन तीनों ही जगहों पर इनकी कमी खल रही है।

ट्रोमा सिस्टम की तरह होगा काम
एसएमएस ट्रोमा सेंटर, जयपुर के सहायक आचार्य (ट्रोमा सर्जरी) डॉ. दिनेश गौरा का कहना है कि अधिकांश दुर्घटना उपनगरीय इलाको में होती हैं। ऐसे में लेवल-1 ट्रोमा सेंटर पहुंचने में कई बार गोल्डन आवर निकल जाता है। ऐसे में क्रैश की जगह से लेकर सम्पूर्ण इलाज तक एक ‘‘ट्रोमा सिस्टम’’ की तरह काम हो। उन्होंने बताया कि प्री-हॉस्पिटल केयर सुदृढ़ हो, विभिन्न लेवल के ट्रोमा सेंटर में समन्वय, संसाधन उपलब्धता एवं ट्रोमा बेस्ड ट्रेनिंग्स तथा अधिक दुर्घटना केस वाले क्षेत्र आइडेंटिफाई करके संबंधित चिकित्सा केंद्र में अधिक फोकस करने की जरूरत है। इससे हादसों में मौत के आंकड़ों में काफ़ी कमी लाई सकती है।

सर्जन एवं न्यूरो सर्जन की कमी
चौमूं के ट्रोमा सेंटर में ज्यादा तो सर्जन एवं न्यूरो सर्जन की कमी खल रही है। बड़ी बात यह है कि वर्तमान में एक्स-रे की सुविधा तक नहीं है। विशेषज्ञ चिकित्सकों एवं संसाधनों के अभाव में गंभीर घायलों को प्राथमिक उपचार के बाद यहां से रैफर कर दिया जाता है। हल्की सिर की चोट व हड्डियों में फ्रैक्चर एवं घायल मरीजों सहित तकरीबन प्रतिमाह 30 से अधिक घायलों को रैफर किया जा रहा है। यहीं स्थिति बस्सी उपजिला अस्पताल के ट्रोमा की है। यहां से प्रतिमाह 40 से अधिक घायलों को रैफर किया जा रहा है।

इनका कहना है….
ट्रोमा सेंटर में सर्जन एवं चिकित्सा संसाधनों की कमी खल रही है। ट्रोमा में अलग से विशेषज्ञ की नियुक्ति नहीं है। अस्पताल में लगे चिकित्सकों को ही नियुक्त कर रखा है। उपलब्ध संसाधनों के आधार पर बेहतर चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराने के प्रयास कर रहे हैं।
-डॉ.सुरेश जांगिड़, चिकित्सा प्रभारी, उपजिला अस्पताल चौमूं