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कलयुगी बेटों के सताए यह दो दिल बन गए एक धड़कन, एक जान

बेटों के सताए यह दोनों अपने घर से हजारों किमी दूर मंदिर में भीख मांगने मजबूर हुए लेकिन एक जैसा दर्द इन्हें करीब ले आया और दोनों ने शादी कर ली।

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Ajay Shrivastava

Jun 12, 2016

sadhuram-shyamabai

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जगदलपुर
. बस्तर के कारीतरई की श्यामाबाई और मध्यप्रदेश के साधुराम की कहानी किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं है। बेटों के सताए यह दोनों अपने घर से हजारों किमी दूर मंदिर में भीख मांगने मजबूर हुए लेकिन एक जैसा दर्द इन्हें करीब ले आया और दोनों ने शादी कर ली।


अब यह दोनों एक जान, एक धड़कन की तरह अंतिम सांस तक साथ रहना चाहते हैं। बूढ़ापे में एक-दूसरे का सहारा बने यह दंपत्ति इन दिनों आड़ावाल के वृद्धाश्रम में शरण लिए हुए हैं। लेकिन भले ही बेटों ने इनके साथ कुछ भी किया हो लेकिन आज भी वे उन्हें याद करते हैं और दिल से हमेशा उनके लिए दुआ ही निकलती है।


76 साल के साधूराम मूलत: डबरा मध्यप्रदेश के हैं। उनके दो बेटे हैं तपस्वी और रवि। तपस्वी के पास चौपहिया वाहन है और रवि कुली का काम करता है। वे पत्नी के साथ रवि के पास रहते थे।


पत्नी की मौत के बाद उन्होंने अपनी पास रखी जिंदगीभर की कमाई रवि को दे दी। रकम खत्म होते ही रवि ने साथ रखने से मना कर दिया। बड़ा बेटा तपस्वी ने भी दुत्कार किया।


खून पसीना बहाकर और पेट काटकर जिन बेटों को 10वीं-12वीं तक पढ़ाया, उस पिता को 55 की उम्र में विवश होकर घर के बाहर निकलना पड़ा। भगवान का नाम लेकर वे बस और ट्रेन से सफर करते हुए जम्मू पहुंच गए वहां मंदिरों में भीख मांगकर दिन बिताने लगे।


इसी मंदिर में एक महिला श्यामबाई भी कतार में बैठकर उनके साथ भीख मांगती थी, जो बस्तर ब्लॉक के कारीतरई की निवासी है। बचपन में माता-पिता की मौत हो जाने से इसकी शादी पामगढ़ में एक बूढ़े से करा दी गई। कुछ दिन बाद पति की मौत हो गई। अपनों के दिए इस दर्द से छुटकारा पाने के लिए वह भी दुखी मन से घर से निकलकर भटकते हुए जम्मू पहुंच गई थी।


हम रख सकते हैं एक दूसरे का ख्याल

साधूराम ने बताया कि जम्मू में मंदिर परिसर की साफ-सफाई कर बैठ जाते थे तो हमें श्रद्धालु खाने के अलावा रुपया भी देते थे। मेरे पास में ही यह (श्याम बाई की ओर इशारा दिखाते हुए) बैठती थी। इसे भी सफाई बहुत पसंद है।


इस दौरान हम दोनों अपना सुख-दुख बांट लेते थे। कभी वह मेरी तो कभी मैं उसकी छोटी-मोटी मदद कर देता था। इधर बेटों और रिश्तेदारों ने तो हमें भूला ही दिया था। जिंदगी के इस पड़ाव में लगा कि क्यों न हम साथ-साथ चले और फिर हमने शादी कर ली।


अपनों की याद में आए बस्तर पर वे तो...

60 साल की श्याम बाई ने बताया कि पांच- छह साल तक साथ-साथ रहने के बाद मुझे मायके की याद आई तो हम दोनों भीख मांगते हुए कारीतरई पहुंचे। यहां रिश्ते में बेटे ने अपने घर पनाह दी और हम दोनों का ध्यान रखने लगा।


हमने उस पर विश्वास करते हुए भीख मांगकर जमा किए 28 हजार रुपए उसे दे दिए। करीब सात माह तक उसने हमारी देखभाल की और एक दिन घर से बाहर निकाल दिया। असहाय दम्पती की जिंदगी फिर एक बार सड़क पर आ गई।


इस बीच जागरुक लोगों की मदद से उन्होंने तहसीलदार बस्तर को पत्र लिखकर पीड़ा को बताया और शेष जीवन वृद्धाश्रम में बिताने की इच्छा जताई। तहसीलदार आनंद नेताम ने बस्तर चौकी प्रभारी विकासचंद्र राय की मदद से श्याम बाई के रिश्ते में बेटे को बुलाकर 8 हजार रुपए दम्पती को दिलवाया और दोनों को लेकर धरमपुरा वृद्धाश्रम आ गए।


इस वृद्धाश्रम में सिर्फ महिलाएं हैं, लेकिन श्याम बाई और साधूराम ने अंतिम सांस तक साथ साथ रहने की कसम खाते हुए अलग रहने से इनकार कर दिया। इसके बाद दोनों को आड़ावाल में सुरेन्द्र चालकी द्वारा संचालित वृद्धाश्रम में भेजा गया, जहां वे खुशी से जीवन बीता रहे हैं। उनका कहना है कि अब यहीं से हमारी अर्थी उठेगी।

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