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झरिया के भरोसे झीरम के आदिवासी, लेकिन अभी और भी हैं दिक्कतें, पढ़े ये खास खबर

झीरम घाटी में जब देश का सबसे बड़ा हमला हुआ तो झीरम अंतर्राष्ट्रीय पहचान बन गया। शासन ने भी घटना जख्म को दूर करने विकास कार्य करवाना शुरू किया

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झरिया के भरोसे झीरम के आदिवासी

झरिया के भरोसे झीरम के आदिवासी, लेकिन अभी और भी हैं दिक्कतें, पढ़े ये खास खबर

शेख तैय्यब ताहिर/जगदलपुर. पांच साल पहले झीरम घाटी में जब देश का सबसे बड़ा माओवादी हमला हुआ तो झीरम नाम घटना का अंतर्राष्ट्रीय पहचान बन गया। शासन ने भी इसके बाद घटना जख्म को दूर करने के लिए तुरंत यहां विकास कार्य करवाना शुरू किया और चमचमाती चौड़ी सड़क व सोलर स्ट्रीट लाइट लगा दी ताकि यहां से गुजरने वालों को उस घटना का एहसास भी न हो सके। लेकिन शासन यहां से दो किमी दूर लगे झीरम गांव में बिजली व पानी के लिए प्रयास करना तक भूल गया। आलम यह है कि शाम होते ही गांव वालों के जीवन में अंधेरा छा जाता है। वहीं पानी के लिए पूरे झीरम गांव के ग्रामीणों का एक मात्र सहारा झरिया है।

झीरम घटना के पांच साल होने के बाद यहां से लगे इलाकों में कितना परिवर्तन आया है, इसे देखने पत्रिका रिपोर्टर यहां झीरम गांव पहुंचे। यह गांव झीरम में हुए घटनास्थल से बमुश्किल 2 किमी होगा। लेकिन चमचमाते एनएच की सड़क से सटे दोनों ओर गांव कुछ और ही हालात बयां कर रहे थे। यहां ग्रामीणों से बिजली व पानी को लेकर सवाल पूछने पर जवाब मिलता है सोलर प्लेट खराब है और पानी के लिए दो किमी दूर झरिया है जो पूरे झीरम गांव का एक मात्र सहारा है। साथ ही उनका कहना है कि सरकार का तो पता नहीं लेकिन झरिया ने उन्हें अभी तक धोखा नहीं दिया है।

नहीं आता कोई साहब
गांव वाले अपनी शिकायत बता ही रहे थे कि गांव के बुजुर्ग पहुंचे और उन्होंने कहा कि झीरम घटना के बाद गांव में रोज अधिकारी व नेता पहुंचते थे। लेकिन दिन बीतता गया और उनकी आमद भी कम होती गई। आज आलम यह है कि पिछले तीन साल में कोई अधिकारी यहां नहीं पहुंचा है। उन्होंने गरीबी, बुढ़ापा और वाहन न होने का हवाला देते हुए कहा कि एेसी स्थिति में हम अपनी परेशानी कैसे जिम्मेदार तक पहुंचाएं समझ नहीं आता।

नहीं जाता स्कूल, बड़ा होकर बनूंगा किसान
गांव से लौटने की तैयारी चल ही रही थी कि सड़क से कुछ ही दूरी पर गांव के बच्चे खेलते नजर आए। उनकी तरफ आगे बढ़ते ही वे घबरा गए। लेकिन कुछ देर के बाद उनसे अच्छी दोस्ती हो गई। पूछने पर बच्चे ने बताया कि वह स्कूल नहीं जाता। इतना ही नहीं वहां खेलने वाले और उस गांव के भी कोई बच्चे स्कूल नहीं जाते। वहीं बड़ा होकर क्या बनने की ख्वाहिश है पूछने पर कहा कि पिताजी किसान है उसी जमीन पर खेती करूंगा।

सोलर प्लेट खराब, घरों में अंधेरा
गांव में घूमने पर घरों के उपर सोलर पैनल तो नजर आता है लेकिन घर में बिजली नहीं आती। यह प्लेटें तीन साल पहले ही खराब हो गईं थी। उनका कहना है कि लगाने के बाद न तो कोई इसे देखने आया और न ही कोई मरम्मत वाला। अब यह केवल दिखाने भर के काम का है। हालांकि गांव वालों को आज भी उम्मीद है कि शासन उनकी सुध लेगा और गांव में कोई पहुंचकर इन सोलर प्लेटों को बनाएगा और उनके जीवन में भी उजाला आएगा।