स्टेलेक्टाइट व स्टेलेग्माइट की संरचनाओं के साथ ही जैवविविधता से भरपूर है कांगेर घाटी नेशनल पार्क।
अजय श्रीवास्तव/जगदलपुर. शहर से पंद्रह किमी की दूरी पर स्थित कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान मेें कोटमसर, कैलाश, दंडक गुफा के अलावा कई नई गुफाओं की श्रृंखला ग्रामीण खोज रहे हैं। हाल ही में कोटमसर गुफा से सटी एक अन्य गुफा होने की जानकारी वनग्राम के लोगों ने विभाग को दी है। इस नए गुफा में भी चूने के पत्थरों से बनी स्टेलेक्टाइट (छत से लटकती आकृतियां) व स्टेलेग्माइट (जमीन से ऊपर की ओर उभरी आकृतियां) देखते ही बनती हैं। यहां इन संरचनाओं की संख्या इतनी सघन हैं कि दूर से देखने पर ये शार्क मछली के दातों के समान नजर आती हैं। कोटमसर की इन भूमिगत गुफाओं का कार्यकाल करोड़ों साल पहले से जोड़ा जा रहा है। उस दौरान पृथ्वी पर डायनासोर पाए जाते थे।
शौकीन दुर्गम चढ़ाई पार कर पहुंच सकते हैं यहां
इन अद्भुत संरचनाओं के अलावा यहां कीट- पतंगे व सरीसर्प की प्रजातियां भी पाई गई हैं। इस नई गुफा में पहुंचने के लिए कोई मार्ग अभी बनाया नहीं गया है। रोमांच के शौकीन दुर्गम चढ़ाई पार कर यहां पहुंच सकते हैं। डा. दत्ता ने बताया कि यहां जो सर्प दिखाई दिया है वह ऐरो हेडेड ट्रिंकल स्नैक है। इस प्रजाति को डा. पी महापात्र व उन्होंने इस रेंज में खोजा है।
देव स्थान की भी है मान्यता
नई गुफा को लेकर ग्रामीण उत्साहित तो जरुर हैं पर वे एेसी संरचनाओं को आम पर्यटकों से दूर ही रखना चाहते हैं। वे इन गुफाओं को देवी- देवताओं का वास होने की मान्यता पाले हुए हैं।
शोधार्थियों की जिज्ञासा
पीजी कालेज में जूलाजी के प्राध्यापक डॉ. सुशील दत्ता का कहना है कि कंागेर वैली जैव विविधता का अनुपम संसार है। यहां गुफाओं के अलावा उसके भीतर पाए जाने वाले जीवित प्राणी शोधार्थियों के लिए जिज्ञासा का केद्र हैँ। ग्रामीणों की मान्यता का सम्मान करते हुए इनका संरक्षण जरुरी है।
वी. श्रीनिवास राव, सीसीएफ