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आखिर किस वजह से राज्य का पहला सल्फीकुंज जंगल में हो गया तब्दील

आसना में साल वनों के बीच स्थित राज्य के पहले सल्फी कुंज में 12 हजार पौधे 2004-05 में रौपे गए थे, आज इस सल्फी कुंज में मात्र 12 पेड़ ही बचे हैं।

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राज्य का पहला सल्फीकुंज

विक्रम साहू/जगदलपुर. आसना में घने साल वनों के बीच स्थित राज्य के पहले सल्फी कुंज में 12 हजार पौधे 2004-05 में रौपे गए थे, आज इस सल्फी कुंज में मात्र 12 पेड़ ही बचे हैं।

कार्य करने वाले भी सल्फी कुंज के बारे में नही जानते
वन मंडल के देखरेख के अभाव में यह सल्फी कुंज उजड़ गया है, अपना अस्तित्व भी खो दिया है। वन मंत्री महेश गागड़ा, वन विकास निगम अध्यक्ष श्रीनिवास मद्दी व भारी भरकम वन अमले के बावजूद वन मंडल में कार्य करने वाले भी सल्फी कुंज के बारे में नही जानते हैं। जबकि सामान्य ज्ञान की पुस्तकों में भी सल्फी कुंज का जिक्र है।

पांच हेक्टेयर जमीन पर रौपे थे पौधे
आसना स्थित नर्सरी के सामने स्थित साल वनों के बीच पांच हेक्टेयर जमीन में सल्फी के पौधे रौपे गए थे। इस सल्फी कुंज का संचालन आसना आदिवासी महिला समिति को दी गई थी। बस्तर बीयर के नाम से मशहूर सल्फी आदिवासियों का प्रिय पेय पदार्थ हैं इस वजह से इस पेड़ के संरक्षण के लिए सल्फी वृक्षारोपण किया गया था। इसके अलावा आदिवासियों की आर्थिक स्थिति सुधारने का मकसद था।

पेड़ की उम्र 30 साल
सल्फी का पेड़ 30 वर्ष जीवित रहता है। एक पेड़ से 35-40 हजार रुपए की आमदनी होती है। महिलाओं को आर्थिक रूप से सुदृढ करने की योजना दम दोड़ चुकी है। 10 साल होते ही पेड़ सल्फी देना शुरू कर देते हैं। इससे आमदनी होने लग जाती है, लेकिन 14 साल होने के बाद आज यह सल्फी कुंज उजड़ा हुआ नजर आता है। आस-पास के गांव के बच्च्चे भी इस सल्फी कुंज के बारे में जानते हैं, लेकिन वनमंडल के कार्यालय में ही इस बारे में अधिकांश लोगों को पता ही नहीं है।

जानकारी लेता हूं
वन मंडल के एसडीओ बीके सिंह मौर्य ने बताया कि, सल्फी कुंज के संबंध में जानकारी लेता हूं। इसके बाद ही आगे की कार्रवाई होगी या अधिक जानकारी दे पाउंगा।