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32 साल पहले सौ रुपए लेकर गए थे मुंबई, आज हैं फिल्मी दुनिया की जानी-मानी हस्ती

बेमेतरा निवासी स्क्रिप्ट राइटर, डायरेक्टर, को-प्रोड्यूसर जुनैद मेमन ने पत्रिका से शेयर की अपनी यादें

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Bemetara Patrika

32 साल पहले सौ रुपए लेकर गए थे मुंबई, आज हैं फिल्मी दुनिया की जानी-मानी हस्ती

बेमेतरा . बेमेतरा जिले के एक मध्यम वर्गीय परिवार के लड़के के पिताजी को बिजनेस में अचानक भारी नुकसान हो गया। जिसके कारण गरीबी के दिन देखने पड़ रहे थे। गरीबी से तंग आकर उस लड़के ने मुंबई जाकर अपने अमीर होने का ख्वाब पूरा करने की ठानी। फिर किसी को बताए बिना ही घर से भागकर मुंबई आ गया। यहां में फुटपाथ पर कुछ दिन बीते। उस लड़के को टीवी कव्हर और चॉकलेट्स भी बेचने पड़े। फिर धीरे-धीरे फिल्म सिटी मुंबई नगरी ने उस लड़के को शोहरत, इज्जत, पैसा सबकुछ दिया और मुझे इस मुकाम पर पहुंचाया। यह किसी फिल्म की स्टोरी नहीं है, बल्कि बेमेतरा जिले के निवासी 300 से ज्यादा एड फिल्में कर चुके, स्क्रिप्ट राइटर, डायरेक्टर और को-प्रोड्यूसर फिल्म नगरी की जानी-मानी हस्ती जुनैद मेमन की है। वे अटल नगर रायपुर में फिल्म सिटी के लिए सलेक्टेड स्पॉट को देखने रायपुर आए थे। इस दौरान उन्होंने पत्रिका से खास बात की और अपने संघर्ष के दिनों की यादें भी शेयर की।

ऐसे पहुंचे फिल्म इंडस्ट्रीज में
जुनैद मेमन ने बताया कि रायपुर के सेंट पॉल स्कूल में ७ से नौवीं तक पढ़ाई की है। जुनैद ने बताया, मुझे आज भी याद है १६ मई 1987 को मैं मुंबई के लिए रवाना हुआ। उस वक्त मेरे पास 100 रुपए थे। मुंबई जाने की वजह ये थी कि उस वक्त रायपुर इतना बड़ा नहीं था, पापा का बिजनेस चौपट हो चुका था। मुंबई जाने का पर्पस सिर्फ पैसे कमाना था, न कि फिल्म इंडस्ट्रीज में जाना। शुरुआत फुटपाथी काम से की। टीवी कवर बेचा। चॉकलेट्स भी बेची। जुनैद कहते हैं फुटपाथ पर काम करते वक्त मैंने थोड़ी पढ़ाई और कर ली। 11 वीं पूरा कर चुका था। इसी बीच फिल्मों के हाई प्वाइंट- लो प्वाइंट कैसेट का काम मिला। उन दिनों ये कैसेट काफी बड़े हुआ करते थे। मैंने फिल्म वालों के लिए इसकी सप्लाई शुरू की। कैसेट सप्लाई के बाद मैं खाली टाइम वहीं बिताया करता। एडिटिंग वगैरह सीखता। स्टूडियो में कुछ न कुछ करता रहता।

बापू और नेल्सन मंडेला है आइडल पर्सन
फिल्म इंडस्ट्रीज में रहते हुए मैंने अपनी कंपनी खोल ली जिसका नाम था एक्रापॉलिस मीडिया। साल 1996 में एक था रघुवीर टीवी सीरियल बनाया लेकिन दुर्भाग्य वह ऑन एयर हुआ ही नहीं। इसके बाद वर्ष 97 से 2000 तक वी, सोनी और सहारा चैनलों के लिए काम किया। मेरा फोकस्ड प्रोडक्शन, प्लानिंग और मैनेजमेंट में थ। इस दौरान बड़े फिल्मकारों से इंटरेक्टशन होने लगा। वर्ष 2001 तक मेरी स्किल पॉलिश हो चुकी थी। मैंने अमिताभ भट्टाचार्य के साथ मिलकर नोमेड फिल्म्स कंपनी खोली। हमने 300 से ज्यादा एड फिल्में बनाई। वर्ष 2003 में 'वैसा भी होता है पार्ट-1' की स्क्रिप्ट लिखी। 2005 में 'द फिल्म' का डायरेक्शन किया। मराठी फिल्म अनोखी है घरमाजे, 2008 में माधवन के साथ तमिल फिल्म नान अवल अधु को प्रोड्यूज की। वर्ष 2013 में पंजाबी फिल्म 'जट इन मूड' 2014 में 'यार मेरा रबवरगा' को-प्रोड्यूज की। इसके अलावा ग्रीन टीवी में अहम जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। इन दिनों वेबसीरीज के लिए कहानियों का ऑफर है। जुनैद के आइडल पर्सन बापू और नेल्सन मंडेला हैं। वे इन दोनों की संघर्ष से काफी प्रेरित हुए। फिल्मकारो में आमिर खान से काफी मुतासिर हैं।