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दुनिया का पहला सोलर गांव है बाचा, जहां किसी भी घर में चूल्हे पर नहीं बनता खाना

locationबेतुलPublished: Jun 05, 2019 07:19:38 pm

Submitted by:

Pawan Tiwari

इस गांव में खाना बनाने के लिए न लकड़ी जलता है और न ही एलपीजी गैस

solar village

बैतूल. पर्यावरण दिवस के दिन मध्यप्रदेश के बैतूल जिले स्थित बाचा गांव से हम सभी लोगों को सीख लेने की जरूरत है। यह गांव दुनिया का पहला सोलर गांव है, जहां किसी भी घर में चूल्हे पर खाना नहीं बनता है। गांव के लोग अब जलावन लाने के लिए जंगल नहीं जाते हैं। यहां हर घर में इंडक्शन पर खाना बनता है। जिसके लिए लोग बिजली का प्रयोग नहीं करते।
दुनिया का पहला सोलर गांव होने का दावा आईआईटी मुंबई, ओएनजीसी और विद्या भारतीय शिक्षण संस्थान कर रहे हैं। इस गांव में न लकड़ी का चूल्हा जलता है और न ही कोई एलपीजी गैस का प्रयोग करता है। सबके घर में इंडक्शन है, जिस पर लोग खाना बनाते हैं। साथ ही सौर उर्जा से ही अपने गांव को रोशन रखते हैं।
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रौशन है गांव
बैतूल जिले के घोड़ाडोंगरी ब्लॉक में स्थित बाचा गांव की पहचान पूरे इलाके में एक खास वजह है। पर्यावरण दिवस के मौके पर इस गांव की चर्चा पूरे देश में हो रही है। क्योंकि यह गांव भारत के अन्य गांवों से अलग है। यहां बल्ब जलते हैं, पंखा चलता है, टीवी चलता है लेकिन ये सब बिजली से नहीं सौर उर्जा से होता है। आईआईटी मुंबई ने इस गांव को सोलर विलेज बनाया है।
2017 में शुरू हुआ था काम

आईआईटी मुंबई ने इस गांव का चुनाव दो साल पहले किया था। उसके बाद से इस गांव को सोलर विलेज बनाने का काम शुरू हुआ। दिसंबर 2018 में सभी घरों में सौर उर्जा प्लेट, बैटरी और चूल्हा लगाने का काम पूरा हो गया।
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80 हजार रुपये प्रति यूनिट हुए हैं खर्च
एक घर में सोलर यूनिट और चूल्हे लगाने में अस्सी हजार रुपये की लगात आई है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि अगर ज्यादा ऑर्डर आएं तो लागत कम हो सकती है। इस चूल्हे से पांच सदस्यीय परिवार में एक दिन में तीन बार खाना बनाया जा सकता है। बाचा गांव में सभी चूल्हे नि:शुल्क लगाए गए हैं। सौर उर्जा से चलित चूल्हे की सोलर प्लेट से 800 वोल्ट बिजली बनती है। इसमें लगी बैटरी में तीन यूनिट बिजली स्टोर रहती है।
क्या कहा ग्रामीणों ने
बाचा गांव के ग्रामीणों ने कहा कि अब हमें जंगल लकड़ी के लिए नहीं जाना पड़ता है। न ही आग बुझाने के लिए समय बिताना पड़ता है। बर्तन और दीवारें अब काली नहीं होती हैं। भोजन भी समय पर पकाया जाता है। इससे समय की बचत होती है।
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इस गांव में 74 घर है। सभी घरों में सोलर यूनिट है। गांव आदिवासी बाहुल्य है। सौर उर्जा होने की वजह से गांव के लोग अब जंगल नहीं जाते, इसलिए जंगल कटने से बच गया। साथ ही गांव प्रदुषण मुक्त हो गया।
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