इसके बाद पूरे शहर में उसका जुलूस निकाला जाता है। मित्र मंडली तरुण समाज समिति ने करीब पांच दशक पहले होली पर यह अनूठी परम्परा शुरू की थी। इस कार्यक्रम के पीछे मंशा यह थी कि होली की मस्ती और स्वांग बृज में रचे-बसे रहें।
शुरुआत के दो-तीन साल महामूर्खाधिराज को गधे पर बिठाकर शहर भर से निकाला जाता था। इसके बाद अब महामूर्खाधिराज बनी शख्सियत को ट्रॉली में बिठाकर शहरभर में निकाला जाता है। समय के साथ कुछ परिवर्तन भी इसमें किए जा रहे हैं। महामूर्खाधिराज शहर के गणमान्य नागरिक को बनाया जाता है, जिसे वह सहर्ष ही स्वीकार करता है। मूर्खाधिराज बने व्यक्ति को बड़ी टोपी पहनाई जाती है।
बृज की होली देश के साथ-साथ विदेशों में भी लोकप्रिय है। इसलिए इस उत्सव में भाग लेने के लिए विदेशों से भी श्रद्धालु आते हैं। लोग इस त्योहार के आने का बेसब्री से इंतजार करते हैं। लट्ठमार होली के साथ-साथ ब्रज की संस्कृति भी भक्तों का मन मोह लेती है। बृज में होली उत्सव के दौरान गीत और पद गायन की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। बसंत पंचमी से ही बृज में होली के कार्यक्रम शुरू हो जाते हैं। इस वर्ष भी बसंत पंचमी के साथ ही बृज में होली की शुरुआत हो गई है और ये सिलसिला लगातार 40 दिनों तक जारी रहेगा।