6 माह में सिर्फ 12 शव का हुआ दहन,
भिलाई. रामनगर मुक्तिधाम, सुपेला के विद्युत शवदाह गृह में अंतिम संस्कार करने से लोग कतरा रहे हैं। जिला के पहले विद्युत शवदाह गृह में पिछले 6 माह के दौरान 12 शव का अंतिम संस्कार किया गया है। औसत हर माह में सिर्फ दो का अंतिम संस्कार किया जा रहा है। वह भी पिछले कुछ माह से एक भी शव का अंतिम संस्कार नहीं हुआ है। शव लेकर आने वाले इसे अपनी परंपरा के अनुरूम नहीं मान रहे हैं। इस वजह से रामनगर मुक्तिधाम में अंतिम संस्कार लकड़ी से ही किया जा रहा है। इस वजह से जिस तरह का लाभ इसके शुरू हो जाने के बाद निगम को मिलने की उम्मीद की जा रही थी, वह नहीं मिल रहा है।
क्यों नहीं अपना रहे लोग विद्युत शवदाह को
रामनगर मुक्तिधाम में अंतिम संस्कार के लिए शव लेकर आने वालों का कहना है कि विद्युत शवदाह गृह में अंतिम संस्कार करने में वक्त अधिक लग रहा है। यहां करीब ढाई घंटे लगते हैं, एक शव को अंतिम संस्कार करने में। इसके साथ-साथ कपाल क्रिया नहीं किया जा सकता है। ऐसी मान्यता है कि अंतिम संस्कार के दौरान पंचक को समाप्त करने के लिए पांच लकड़ी चिता में डालने की क्रिया की जाती है। अगर उस समय पंचक में पचखा चल रहा है, तो ऐसा नहीं करने से और चार मौत किसी और कि हो सकती है।
48.50 लाख की लागत से हुआ तैयार
रामनगर मुक्तिधाम में विद्युत शवदाह गृह को करीब 48.50 लाख की लागत से तैयार किए हैं। इसके मेंटनेंस पर हर साल 4.35 लाख रुपए तीन साल के संचालन और रख-रखाव के नाम पर कंपनी को दिया गया है।
दावा था हर दिन 10 शवों के अंतिम संस्कार का
दावा किया जा रहा था कि विद्युत शवदाह गृह से हर डेढ़ घंटे में एक शव का अंतिम संस्कार किया जा सकेगा। मशीन ठंडी होकर दूसरे के लिए तैयार हो जाएगी। इस तरह से एक दिन में कम से कम 8 शवों का अंतिम संस्कार किया जा सकेगा। मुक्तिधाम में औसत हर दिन 8 से 10 शव आते हैं। इसके लिए इसे पर्याप्त माना जा रहा था। वहीं जब अंतिम संस्कार किया गया, तो एक शव का अंतिम संस्कार करने में ढाई घंटे लग रहे हैं।
साल में 50 लाख बचने की थी उम्मीद
रामनगर मुक्तिधाम में हर माह करीब 6,00,000 रुपए की लकड़ी जलाई जा रही है। विद्युत शवदाह गृह जब शुरू हुआ, तब उम्मीद की जा रही थी कि कम से कम 50 लाख रुपए तक का लाभ होगा। रामनगर मुक्तिधाम में एक साल के दौरान अंतिम संस्कार करने में करीब 74,00,000 रुपए की लकड़ी जलकर खाक हो जाती है। इसके शुरू होने के बाद खर्च घटकर 24,00,000 रुपए रह जाएगा। ऐसा हुआ नहीं। अभी भी सारे शवों के लिए लकड़ी का ही इस्तेमाल किया जा रहा है।