5 दिसंबर 2025,

शुक्रवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

बचपन में लिखी पहली कविता, फिर 37 साल बाद बेटे ने कलम देकर कहा मां अब शुरू कीजिए साहित्य का सफर, पढि़ए सरला की कहानी

वे कहती हैं कि उनका साहित्य स्त्री विमर्श प्रधान है। खासकर महिलाओं के जीवन से जुड़ी चीजों को शब्दों में पिरोकर वे उन्हें अभिव्यक्त करती हैं।

3 min read
Google source verification

भिलाई

image

Dakshi Sahu

Feb 27, 2022

बचपन में लिखी पहली कविता, फिर 37 साल बाद बेटे ने कलम देकर कहा मां अब शुरू कीजिए साहित्य का सफर, पढि़ए सरला की कहानी

बचपन में लिखी पहली कविता, फिर 37 साल बाद बेटे ने कलम देकर कहा मां अब शुरू कीजिए साहित्य का सफर, पढि़ए सरला की कहानी,बचपन में लिखी पहली कविता, फिर 37 साल बाद बेटे ने कलम देकर कहा मां अब शुरू कीजिए साहित्य का सफर, पढि़ए सरला की कहानी,बचपन में लिखी पहली कविता, फिर 37 साल बाद बेटे ने कलम देकर कहा मां अब शुरू कीजिए साहित्य का सफर, पढि़ए सरला की कहानी

कोमल धनेसर@भिलाई. कलम, किताब और अखबार को देख बचपन बीत...लेखन और रचनात्मक सोच के संस्कार विरासत में मिले थे। 60 के दशक में बालिकाओं की शिक्षा को लोग जरूरी नहीं मानते थे, लेकिन पिताजी पं शेषनारायण शर्मा ने बीए-बीएड तक पढ़ाया। अक्सर कॉपियों के पिछले पन्ने में कुछ लिखती तो दौड़कर पिताजी को दिखाती थी। वे कुछ सुधारते,...कुछ बताते और फिर वे शब्दों के नए सृजन में लग जाती। 1967 में पहली बार कल्पना नामक एक पत्रिका में कविता प्रकाशित हुई और उनकी साहित्यिक यात्रा की शुरुआत हुई। पर यह सफर बीच में इस कदर थम गया कि दोबारा इस यात्रा की शुरुआत करने में पूरे 37 साल लग गए। साहित्य का यह सफरनामा हिन्दी, छत्तीसगढ़ी और बांग्ला साहित्य में बराबर का दखल रखने वाली दुर्ग की सरला शर्मा का है।

निबंध संग्रह कोर्स में शामिल
छत्तीसगढ़ के साहित्यकारों में उनका नाम जाना-पहचाना है और अब तो युवा भी उनकी लिखे उपयन्यास और निबंध संग्रह को पाठ्यक्रम में पढऩे लगे हैं। पंडित रविशंकर शुक्ल विवि के एमए हिन्दी के कोर्स में उनका लिखा छत्तीसगढ़ी उपन्यास माटी के मितान पाठ्यक्रम में शामिल है। जबकि कर्नाटक विवि ने उनके निबंध संग्रह को अपने स्नातक कोर्स में शामिल किया है। इन सबके बीच सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि डॉ. तीजन बाई के जीवन पर लिखी गई इकलौती किताब पंडवानी और तीजन बाई सरला शर्मा ने ही लिखी है जिस पर बॉलीवूड की निदेशकर सईदा नकुले फिल्म तैयार कर रही है।

साथ ही डॉ तीजन बाई पर पीएचडी कराने वाले कई विवि में उनकी किताब शोधार्थी उपयोग कर रहे हैं। अब वे जल्द ही उनकी संसोधित किताब भी जल्द आने वाली है। सरला का मानना है कि सोशल मीडिया के दौर में गद्य उपेक्षित हो रहा है। कविता भाव प्रधान है, लेकिन गद्य भावनाओं को एकदूसरे तक न सिर्फ पहुंचाते हैं बल्कि उनके दिलों में घर कर जाते हैं। आज के युग में कविता दीर्घजीवी नहीं है,लेकिन कहानियां, उपान्यास, संस्मरण जैसी चीजें दिमाग पर छा जाती है। वे कहती हैं कि उनका साहित्य स्त्री विमर्श प्रधान है। खासकर महिलाओं के जीवन से जुड़ी चीजों को शब्दों में पिरोकर वे उन्हें अभिव्यक्त करती हैं।

आंसुओं से भीगे पन्नों पर सजे थे शब्द
सरला बताती हैं कि शादी के बाद अच्छी पत्नी, बहू और मां की जिम्मेदारी निभाते-निभाते उनकी कलम और डायरी पुराने बक्से में कैद सी हो गई थी। पति ने साथ दिया तो बीएसपी के शिक्षा विभाग में हिन्दी की व्याख्याता बनकर नौकरी शुरू की। इसी बीच बीएसपी स्कूलों की समृद्ध लाइब्रेरी में पढऩे का तो खूब मौका मिला पर लिखने का समय नहीं मिल पाया। अक्सर उन्हें लगता जैसे डायरी के पन्ने उन्हें आवाज देते पर उनके साथ खड़ी एक आदर्श सरला कहती...नहीं अभी जिम्मेदारी पहले। इसी बीच पति के देहांत के बाद छोटे बच्चों को संभालने में जीवन लगा दिया। सरला बताती हैं कि 2003 में दोनों बेटे इंजीनियर और डॉक्टर बनने के बाद विदेश में शिफ्ट हो गए तो उनके छोटे बेटे ने उन्हें एक पेन और दो डायरी गिफ्ट की और कहा मां अब आप लिखना शुरू करो। उस वक्त लगा इतने बरसों बाद कैसे लिख पाउंगी, तब बेटे ने मुझे कमरे में भेज बाहर से दरवाजा बंद कर दिया। उस दिन आंखों से लगातार आंसू बहते जा रहे थे और पन्नों पर आंसू शब्दों में ढलकर कविता का रूप ले रहे थे।

एक साल में ही तीन किताब
सरला ने बताया कि मात्र एक साल के अंदर ही उन्होंने तीन किताबें लिखी जिसमें वर्णमाला उनकी पहली और आखिरी कविता संग्रह बनी। जबकि संस्मरण सुरता के बादल छत्तीसगढ़ी में लिखी और बुरहरी उनका निबंध संग्रह था। अब तक उनकी 4 छत्तीसगढ़ी, 5 हिन्दी और 1 बांग्ला भाषा में किताब प्रकाशित हो चुकी है। वे बताती है कि बांग्ला का ज्ञान उनके पिता से मिला, क्योंकि जांजगीर में उनके पिता बांग्ला पत्रिका शनिवारेय चिठी के संपादक थे और बचपन से ही बांग्ला किताबों को पढ़कर उन्हें बांग्ला लिखना भी आ गया।