स्नेहा और आस्था का मानना है कि इस महामारी में हम सभी को एकदूसरे का सहारा बनकर चलना है। भले ही हम किसी को नहीं जानते, पर उनके दर्द और तकलीफ को महसूस कर सकते हैं। सोशल मीडिया पर उनका नंबर वायरल होने के बाद लोग उनसे जब संपर्क करते हैं, तो उनकी बेबसी देख मन द्रवित हो जाता है, तब लगता है कि अगर उनकी छोटी सी मदद से किसी की जान बच जाए तो उनके लिए इससे बढ़कर नेक कार्य दूसरा नहीं होगा। वही नेहा के पिता हेमंत नाइक भी लोगों की कोविड से जंग जीतने मदद कर रहे हैं।
नेहा का मानना है कि लोगों की मदद के लिए केवल घर से बाहर निकलकर काम करना जरूरी नहीं। मन में कुछ करने का इरादा हो तो घर बैठे भी मदद पहुंचाई जा सकती है। दोनों बहनों ने बताया कि अप्रैल के शुरुआती दिनों में कोरोना की दूसरी लहर से लोगों की मौते हो रही थी। तब उनका मन भी काफी विचलित हुआ, मन में विचार आया कि ऐसा कुछ करें, जिससे लोगों को मदद मिल सके। तभी उनके एक सीनियर जो प्लाज्मा और ब्लड डोनेशन के लिए काम करते हैं, उनके संपर्क में आकर उन्होंने सोशल मीडिया पर हेल्पलाइन शुरू की। जिसके बाद मदद के लिए कई फोन आने लगे। वे बताती हैं कि जब प्लाज्मा और ब्लड के लिए फोन आता है, तब वे ब्लड बैंक और कई ब्लड डोनर से संपर्क करती हैं और उन्हें प्ल्जामा डोनेट करने प्रेरित करती हैं, ताकि वे दूसरों की जिंदगी बचा सकें।
स्नेहा और आस्था ने बताया कि कोविड से ठीक होने के बाद भी लोग प्लाज्मा डोनेट करने से डरते है, जबकि डॉक्टर्स खुद कोविड मरीजों को ठीक होने के बाद प्लाज्मा डोनेट करने की बात कहते हैं। वे बताती हैं कि सब कुछ जानने के बाद भी लोग मुश्किल से ब्लड डोनेट करने तैयार हो रहे हैं। जबकि उनकी टीम प्लाज्मा डोनर को घर से डोनेशन सेंटर तक आने और वापस घर तक पहुंचाने की सारी सुविधा दे रही हैं।