
Aravalli faces a 'legal' crisis: A battle erupts over the height of its protective shield.
राजस्थान की लाइफलाइन कही जाने वाली अरावली पर्वतमाला की पहचान और अस्तित्व पर अब तक का सबसे बड़ा संकट मंडरा रहा है। सुप्रीम कोर्ट की ओर से अरावली की नई गणना में '100 मीटर से कम ऊंचाई' वाली पहाड़ियों को अरावली से बाहर रखने के निर्णय ने पर्यावरणविदों की नींद उड़ा दी है। भीलवाड़ा में 'जन चेतना जन अधिकार संस्था' ने इस निर्णय को राजस्थान के लिए 'डेथ वारंट' बताते हुए राष्ट्रपति के नाम जिला कलक्टर को ज्ञापन सौंपा है। संस्था का साफ कहना है कि अरावली को टुकड़ों में बांटने का मतलब मरुस्थल को जयपुर-दिल्ली तक आमंत्रण देना है।
संस्था के सचिव एडवोकेट ईश्वर खोईवाल ने बताया कि अरावली की शृंंखला में सैकड़ों ऐसी छोटी पहाड़ियां हैं जिनकी ऊंचाई 100 मीटर से कम है। कोर्ट के इस तकनीकी निर्णय के बाद ये पहाड़ियां 'अरावली संरक्षण' के दायरे से बाहर हो जाएंगी। इसका सीधा फायदा खनन माफिया और भू-माफिया उठाएंगे। वैज्ञानिक रूप से ये छोटी पहाड़ियां ही रेगिस्तान की धूल भरी आंधी को रोकने में 'फिल्टर' का काम करती हैं। जन चेतना जन अधिकार संस्था अध्यक्ष महेश सोनी का कहना है कि "अरावली केवल पत्थरों का ढेर नहीं, हमारा सुरक्षा कवच है। अगर 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को बलि चढ़ाया गया, तो थार का मरुस्थल हमारी उपजाऊ जमीनों को निगल जाएगा।"
संस्था ने चेतावनी दी है कि यदि इस फैसले पर पुनर्विचार नहीं हुआ तो भविष्य की पीढ़ियां बूंद-बूंद पानी को तरसेंगी।
ज्ञापन में मांग की गई है कि प्रदेश में इस निर्णय को लागू करने से पहले पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (इआइए) कराया जाए। साथ ही, अवैध निर्माण पर रोक लगाने के लिए सामाजिक संगठनों की एक विशेष निगरानी समिति गठित हो। इस दौरान दुर्गेश शर्मा, रामगोपाल पुरोहित, मधु जाजू, सुमित्रा कांटिया, रेखा हिरण, आशीष राजस्थला, अविचल व्यास, संजय मेवाड़ा, कश्मीर शेख, खुर्शीद मंसूरी, राजू डीडवानिया, संजय हिरन, रामदयाल बलाई, प्रकाश पीतलिया, विनोद सुथार, लाजपत आचार्य, राकेश दाधीच, अरविंद सिंह उपस्थित थे।
Published on:
25 Dec 2025 09:58 am
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