इस कारण कम लागत में रेडीमेड गारमेंट्स उपभोक्ता तक पहुंच रहा है। भीलवाड़ा में हर माह 18 लाख से अधिक पीस बन रहे हैं। यह सब स्थानीय उद्यमियों की मेहनत का फल है। 50 करोड़ रुपए मासिक टर्नओवर वाला रेडीमेड गारमेंट्स उद्योग को सरकार का समर्थन व सहयोग मिले तो यह तेजी से आगे बढ़ सकता है। भीलवाड़ा में सौ से अधिक इकाइयों में 90 प्रतिशत से अधिक काम जॉब पर हो रहा है। यहां देश की बड़ी कम्पनी का रेडीमेड गारमेंट्स का उत्पादन हो रहा है। कम्पनी की के एक-दो प्रतिनिधि यहां बैठ डिजाइन व पैटर्न तैयार कराते हैं। कपड़े की सिलाई ग्राहक की मांग के अनुसार कराते हैं। भीलवाड़ा में सबसे सस्ता रेडीमेड गारमेंट्स बनने का मुख्य कारण यहां कपड़े का उत्पादन होना है। डेनिम का कपड़ा भी यही बन रहा है। ऐसे में सस्ता कपड़ा खरीद ऊंचे दाम पर बड़ी कम्पनी बाजार में बेच रही है। उद्यमियों की माने तो राजस्थान में डबल इंजन सरकार रेडीमेड गारमेंट्स को बढ़ावे के लिए मदद करे तो बड़ा हब बन सकता है। भीलवाड़ा में जमीन,पानी व कुशल श्रमिक की समस्या है। बिजली महंगी है। पानी की समस्या है। कुशल श्रमिक नहीं मिलते हैं। अगर इन पर सरकार ध्यान दे तो भीलवाड़ा का टर्न ओवर प्रतिमाह 50 करोड़ से बढ़कर पांच साल में 250 करोड़ रुपए हो सकता है। भीलवाड़ा के रेडीमेड गारमेंट्स की विदेशों में भी मांग है। यहां से पेंट व शर्ट निर्यात हो रहा है। भीलवाड़ा की इन 100 इकाइयों में साढ़े पांच हजार से अधिक श्रमिक काम करते हैं। हर फैक्ट्री के बाहर भर्ती चालू का बोर्ड लगा रहता है। कुशल कारीगर का अभाव है।
प्रकाश शर्मा, अध्यक्ष, गारमेंट्स मैन्युफैक्चर्स सोसायटी भीलवाड़ा