READ: लिफ्ट लेकर बैठे लुटेरे, दांतली से धमका छीनी कार, चालक ने दिखाई बहादुरी, लुटेरों पर कर दिया हमला माता की मौत के बाद पिता की ओर से किए गए दुर्घटना दावे में अदालत ने रतन के पक्ष में 6 लाख 33,832 रुपए का अवार्ड पारित किया। जो बीमा कम्पनी की आेर से उसे ब्याज समेत करीब नौ लाख रुपए मिलेंगे। न्यायाधीश गुर्जर ने बुधवार को रतन के पक्ष में अवार्ड पारित किया। आदेश दिए कि रतन नाबालिग होने से उसके नाम से एफडी करवाई। बालिग होने पर एक लाख रुपए और समय-समय पर पढ़ाई और जरूरत के लिए राशि मिलती रहे।
READ: भीलवाड़ा के अर्पित की सीएस फाउंडेशन में देश में 15 वीं रैंक दादा-चाचा तैयार नहीं दरअसल माता की मौत पर दावा मांगने के बाद पिता की मौत भी हो गई। इस दौरान दुर्घटना दावा अदालत में चलता रहा। सोहनलाल की ओर से अधिवक्ता महिपालसिंह राणावत थे। सोहन की मौत के बाद रतन ही प्रार्थी था। कानूनी प्रावधान है कि दीवानी मामले में नाबालिग की ओर से वयस्क ही संरक्षक बन वाद लड़ सकता है। इस बीच अधिवक्ता राणावत ने रतन के दादा-चाचा और अन्य परिजनों से सम्पर्क साधा। उनसे रतन के बारे में पता किया और उनको केस लडऩे के लिए बात की। उनको समझाया कि केस लड़ लेंगे तो रतन का भविष्य बन जाएगा। लेकिन उनमें से कोई तैयार नहीं हुआ। उन्होंने सोहन से नाता ही तोड़ देने की बात कहीं।
अदालत ने की पहल, 4 साल लग गए ढूंढऩे में एमएसीटी कोर्ट न्यायाधीश किशन गुर्जर ने इस मामले में पहल करते हुए विधिक सेवा प्राधिकरण से सहायता ली। उसके बाद प्राधिकरण के पूर्णकालिक सचिव मोहित शर्मा ने रिटेनर अधिवक्ता मथुरालाल तेली को बच्चे का संरक्षक नियुक्त किया। लेकिन अब भी कोर्ट के सामने बड़ी समस्या रतन का पता लगाना था। इसके लिए अधिवक्ता महिपालसिंह राणावत और मथुरालाल तेली ने मेहनत की। पता चला कि चार साल से रतन किशोर गृह में अनाथ की जिंदगी जा रहा है। उसे वहां से खोज निकाल कर अदालत में पेश किया। अदालत में उसके और अधिवक्ताओं के बयान हुए।