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क्षतिग्रस्त नहरों के सहारे कैसे होगी फसलों की पिलाई

जर्जर व क्षतिग्रस्त नहरों के सहारे सिंचाई विभाग बांधों में भरे पानी को किसान के खेतों तक पहुंचाने में विफल रहा है। नहरों की सफाई नहीं होने से टेल क्षेत्र के किसान पानी नहीं पहुंचने को लेकर परेशान नजर आते हैं

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भीलवाड़ा।

जिले के बांधों से सिंचाई के लिए नहरों में पानी छोड़ा जा रहा है लेकिन सिंचाई विभाग की लापरवाही के चलते पानी अपनी मंजिल तक पहुंचने में कामयाब नहीं हो रहा। रखरखाव के अभाव में नहरें टूट चुकी है। इनसे पानी व्यर्थ बह रहा है। जर्जर व क्षतिग्रस्त नहरों के सहारे सिंचाई विभाग बांधों में भरे पानी को किसान के खेतों तक पहुंचाने में विफल रहा है। नहरों की सफाई नहीं होने से टेल क्षेत्र के किसान पानी नहीं पहुंचने को लेकर परेशान नजर आते हैं। सिंचाई अधिकारियों व जल उपभोक्ता संगम के सदस्यों की नियमित मॉनिटरिंग के अभाव में क्षतिग्रस्त नहरों के सहारे पानी व्यर्थ बह जाता है।
जिले के अधिकांश बांधों की नहरों की हालत खस्ता है। कई जगह नहरों के नामोनिशान ही बचे हैं। जगह-जगह नहरें कचरे से भरी पड़ी है। सिंचाई विभाग नहरों के रखरखाव व मरम्मत के लिए बजट का अभाव बताकर इतिश्री कर लेता है।
नाहर सागर, उम्मेद सागर, अरवड़ बांध की मात्र २५ फीसदी ही नहरें पक्की बनी हुई है। इनकी दीवारें भी कई जगहों से क्षतिग्रस्त है। शेष ७५ फीसदी कच्ची नहरों का नामोनिशान नहीं है। वर्ष १९५५ से पूर्व बने बांधों की नहरों से सात दर्जन गांवों के १५ हजार हैक्टेयर खेतों की सिंचाई होती है। बीते 20 वर्षों में विभाग ने इन बांधों की सुध नहीं ली। लोग नहरों के पत्थर उखाड़ ले गए। कहीं पर कच्ची नहरों को पाटकर खेत बना लिए। 5 वर्ष पूर्व भी मरम्मत किए बिना ही नहरों में पानी छोड़ा गया तब काश्तकारों ने तब नहरों को बंद करवा दिया था।
गोवटा बांध सिंचाई परियोजना मे होडा, बल्दरखा, खाचरोल, मुकुनपुरिया, बीड़ का खेड़ा, कल्याणपुरा, सराणा पंचायतों के १७०० हैक्टेयर भूमि पर सिंचाई होती है। गौरतलब है कि गोवटा बांध सिंचाई परियोजना से होड़ा, बल्दरखा, खाचरोल, मुकुनपुरिया, बीड़ की खेड़ा, कल्याणपुरा व सराणा पंचायतों की 1700 हैक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है।
दुर्दशा का दंश झेल रही नहरें
हुरड़ा क्षेत्र के हजारों किसानों की जीवनदायिनी रूपी सरेरी बांध की नहरें बदहाल है। वर्ष 1957 में बने बांध की भराव क्षमता 23 फीट, सिंचित क्षमता 15568 एकड़ एवं फैलाव क्षमता 7.5 किमी है। जो क्षेत्रफल की दृष्टि से जिले में दूसरा बड़ा बांध है। इसकी मुख्य दांई एवं बांयी नहरों से दर्जनों गांवों में सिंचाई जल पहुंचता है। दांई नहर दो किमी पक्की एवं आगे एक किलोमीटर कहीं पक्की तो कहीं कच्ची है। उसके आगे पांच-छह किमी कच्ची है। जो दो किमी पक्की है उसमें से एक किमी 25-30 वर्षों पूर्व सीमेन्ट व चूने में बनी है जो लगातार पानी चलते रहने से अपनी उम्र खो चुकी है।
नहीं हुई सफाई
राजगढ पंचायत के निकट बने कुण्डिया बांध में पानी राह भटक ताह है। जेतपुरा बांध की अब तक नहरों की साफ -सफाई नहीं हुई। बांध की नहरों के हालत बहुत दयनीय है।
नागदी बांध
जहाजपुर क्षेत्र में नागदी बांध की सात किलोमीटर लम्बी नहर से 1692 हैक्टर भूमि सिंचित होती है।
मोरी क्षतिग्रस्त, नहरें छाडऩे से पहले ही आठ फीट खाली
लाडपुरा क्षेत्र के डामटी बांध की एक साइड की मोरी क्षतिग्रस्त होने से पानी व्यर्थ बह रहा है। सिंचाई के लिए पानी छोडऩे से पहले ही 33.5 फीट के मुकाबले बांध में केवल 25 फीट पानी रह गया है। मोरी बंद नहीं होने से पानी की निकासी हो रही है जिसे भारी मात्रा में पानी यूं ही बह कर निकल रहा है। जिसे बांध खाली होता जा रहा है। साढ़े तेतीस फीट भराव के इस बांध पर इस वर्ष अच्छी बरसात के बाद लबालब होकर चादर चलने लगी थी लेकिन बरसात रुकने व मोरी को दुरुस्त नहीं कराने से करीब पांच आठ पानी खाली हो चुका है व लगातार निकलना जारी है। इससे लगता है कि इस बार भी किसानों को सिंचाई के लिए पूरा पानी मिलना मुश्किल लग रहा है। किसानों का कहना है कि बांध के जीर्णोद्धार में लाखों रुपए खर्च करने के बावजूद मोरी को दुरुस्त नहीं किया गया।
मोरी की मरम्मत की जाएगी
जल संसाधन विभाग के सहायक अभियंता मधु नैनावटी का कहना है कि मोरी में अवरोध लगाकर पानी के रिसाव को रोकने का प्रयास किया है। इससे पानी काफी कम भी हुआ है। फिर भी पानी बह रहा है जिसका पता नहीं चल रहा है कि पानी कैसे निकल रहा है। इस बार सिंचाई के बाद मोरी की मरम्मत कराकर इसे ठीक किया जाएगा।