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टीले की खुदाई में निकली थी धनोप माता

भीलवाड़ा. जिले के फूलियाकलां तहसील के धनोप स्थित धनोप माता का ऐतिहासिक मंदिर प्रमुख शक्तिस्थलों में शामिल है। यहां पूरे साल भक्त व श्रृद्धालु आते हैं।

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टीले की खुदाई में निकली थी धनोप माता

टीले की खुदाई में निकली थी धनोप माता

भीलवाड़ा. जिले के फूलियाकलां तहसील के धनोप स्थित धनोप माता का ऐतिहासिक मंदिर प्रमुख शक्तिस्थलों में शामिल है। यहां पूरे साल भक्त व श्रृद्धालु आते हैं। मान्यता है कि नवरात्र में धनोप माता के दर्शन मात्र से ही श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी हो जाती है। माना जाता है कि विभिन्न बीमारियों व ऊपरी हवा से ग्रस्त लोग भी मुक्ति के लिए यहां आते हैं। भीलवाड़ा से 100 किलोमीटर धनोप माता मंदिर का निर्माण कन्नौज नरेश जयचंद ने कराया था। धनोप देवी की चमत्कारी प्रतिमा में आस्था रखने के कारण भक्तजनों ने इसके चारों ओर कई तरह निर्माण कार्य करवाए। नवरात्र में दूर-दूर से भक्त मनोकामना पूर्ति के लिए आते हैं। नवरात्र में यहां मेला लगा रहता है।


धनोप का प्राचीन किला
धनोप में प्राचीन किला अपनी विशेषता लिए ख्यात है। मध्यकालीन राजस्थानी परम्परा के प्रतिकूल यहां किले की दीवारें पत्थर के स्थान पर पक्की ईंटों से बनी है। धनोप केवल वैष्णव, शैव और शक्ति पूजा का ही केंद्र नहीं, वरन यह श्वेताम्बर जैन संम्प्रदाय की आस्था का भी केंद्र रहा है।
खुदाई में मिले सिक्के

धनोप प्रारंभ से ही प्रमुख सांस्कृतिक केन्द्र और तीर्थ रहा है। वैसे धनोप में खुदाई के दौरान अनेक प्राचीन और ऐतिहासिक वस्तुएं प्राप्त हुई है। धनोप के एक मकान के आंगन में खुदाई में तीस चांदी के सिक्के मिले थे।
मंदिर निर्माण का इतिहास

प्राचीन काल में यह नगर राजा धुंध की नगरी थी, जिसे ताम्बवती नगरी भी बोला जाता था। राजा धुन्ध जिनका किला खारी नदी के किनारे पर प्राचीन काल से बना हुआ था, वह आज भी विद्यमान है। कहा जाता है कि वे जगन्नाथपुरी में जगन्नाथजी के दर्शनार्थ गए थे। कोलकाता पहुंचे तो देवी मां ने सपने में कहा कि तुम यहीं से लौट जाओ। मैं तुम्हारे गांव में बालू रेत के टीले में दबी हुई हूं। टीले का स्थान भी बताया। लोगों का कहना है कि खुदाई करने पर 90 फीट ऊंची और 100 फीट चौड़े वर्गाकार टीले से रेत हटाते ही मां भगवती अपनी 7 बहिनों के साथ प्रकट हुईं। इनमें श्री अष्टभुजाजी, अन्नपूर्णाजी, चामुण्डाजी, महिषासुर मर्दिनी व श्री कालका जी हैं। इन पांचों मूर्तियों के दर्शन श्रृंगार होने पर होते हैं।
11वीं सदी का मंदिर

धनोप माता मंदिर लगभग 11वीं शताब्दी का है। इस मंदिर में विक्रम संवत 912 का शिलालेख है, जिस पर मंदिर के ऐतिहासिक होने की पुष्टि होती है। एक ऊंचे टीले पर बना मंदिर बेहद प्राचीन संरचना है। शीतला माता का मंदिर धनोप गांव में है, जिसकी वजह से इस मंदिर को धनोप माता मंदिर कहा जाता है।