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नदियों में बनाए कुएं, एेसे ही चला तो नहीं मिलेगी बजरी

अवैध खनन माफियाओं ने नदियों में मशीनों से खोदकर कुएं बना दिए है

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Illegal gravel mining in bhilwara

Illegal gravel mining in bhilwara

भीलवाड़ा।

यहां की नदियों से दिन-रात बजरी निकालकर भीलवाड़ा ही नहीं दिल्ली, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश सहित राजस्थान के कई जिलों में भेजी जा रही है। अवैध खनन माफियाओं ने नदियों में मशीनों से खोदकर कुएं बना दिए है। इसी तरह बजरी का अवैध कारोबार चलता रहा तो आने वाले कुछ सालों में यहां की नदियां बजरी देना ही बंद कर देगी।

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इन नदियों के पेटे से जरूरत से ज्यादा दोहन हो रहा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि 15 से 20 साल बाद बजरी मिलना बंद हो सकता है। बजरी के अवैध दोहन पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को भी बेपरवाह बताया है। हालात भी चिंताजनक है क्योंकि राजस्थान से बजरी बाहर जा रही है लेकिन कोई पालना नहीं हो रही है।

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राजस्थान पत्रिका ने जिले में बजरी के अवैध कारोबार को देखते हुए नदियों की हालात पर पड़ताल की। इसे विशेषज्ञों ने गंभीर स्थिति बताई है। खनन विशेषज्ञों का कहना है कि जिले में बनास, खारी, कोठारी, मानसी, मेनाली नदी में प्रमुखतया बजरी का दोहन किया जाता है। इनमें से एक भी नदी बारहमासी नहीं है। इन नदियों में अब दो से तीन साल में एक बार पानी आता है। एेसे में बजरी बनना ही कम हो गया है।


अभी नहीं सोचा तो फिर आएगी समस्या
जिले की नदियों में बजरी दोहन लगातार बढ़ रहा है। जिले की मांग के अलावा बाहर बजरी जा रही है। बजरी दोहन से नदियों के आसपास के कुएं, तालाब आदि रिचार्ज नहीं हो रहे हैं। यही वजह है कि खेतों के कुओं का जलस्तर भी कम हो रहा है। इसका असर सिंचाई पर होगा। एेसे में किसानों के लिए भी समस्या खड़ी हो सकती है। स्थिति यह है कि जगह-जगह एनिकट बनने से नदियों में पानी की आवक बंद हो गई है।


हर साल 60 करोड़ की आय

जिले में बजरी का दोहन इतना हो रहा है कि सरकार को केवल 60 करोड़ रुपए सालाना आय इससे हो रही है। अभी ६ हजार हैक्टेयर में बजरी के लिए अस्थाई रूप से परमिट व दो माईनिंग लीज दे रखी है। इसके अलावा करीब तीन हजार हेक्टेयर में अवैध बजरी का दोहन हो रहा है। इसे रोकने के लिए खनिज विभाग के पास कोई साधन तक नहीं है। अभी हाइकोर्ट ने एसटीपी पर रोक लगा रखी है, फिर भी रवन्ना जारी कर अवैध बजरी का दोहन हो रहा है।


जिले में बड़ा विकल्प लेकिन चर्चा नहीं
जिले के खनिज अधिकारियों के अनुसार, वर्ष 2013 में भी बजरी का संकट आया था। उस समय चर्चा हुई थी कि हिंदुस्तान जिंक आगूंचा से जो वेस्ट मिट्टी (ओवर बर्डन) निकल रही है जो पहाड़ बन चुकी है। इसकी जांच कर यदि संभव हो तो इसे भी बजरी के रूप में काम में लिया जा सकता है। इसके अलावा कुछ लोगों ने फ्लाई एेश को भी काम में लिया था। हालांकि इसका उपयोग अभी कम होता है।


जरुरत से ज्यादा हो रहा है बजरी दोहन
यह बात सही है कि बजरी का दोहन जरुरत से ज्यादा हो रहा है। यही हाल रहा तो आने वाले १५ से २० सालों में बजरी का संकट हो सकता है। अभी कई राज्यों में क्रेशर डस्ट को भी काम में ले रहे है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इसी वजह से रोक लगाई है। हम इसकी पालना कराने का प्रयास कर रहे हैं।
अविनाश कुलदीप, अधीक्षण खनि अभियंता