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प्रदेश में टोल सड़कों में हुआ 15 हजार करोड़ का घोटाला

- मध्यप्रदेश सड़क विकास निगम के अफसरों का कारनामा- 2010 से अफसर-नेता और ठेकेदारों के गठजोड़ से हो रहा था करोड़ों का हेर-फेर- ठेकेदारों को कर्ज देने वाले बैंक अफसर भी गड़बड़झाले में शामिल

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Bad roads of main roads of city

Bad roads of main roads of city

हरीश दिवेकर

प्रदेश में शिवराज सरकार में बिल्ट एंड ऑपरेट (बीओटी) मॉडल पर बनी 6 हजार किमी की 104 टोल सड़कों में 15 हजार करोड़ से ज्यादा का गड़बड़झाला हुआ है।

यह खेल 2010 से मध्यप्रदेश सड़क विकास निगम के अफसरों, ठेकेदार और विभागीय मंत्री के गठजोड़ से चल रहा है। बीओटी मॉडल का अनुबंध इस तरह तैयार किया कि इसमें सड़क बनाने वाली कंपनियां मालामाल हो जाएं।

इसमें कंपनियों को सड़क बनाने के लिए सरकार की गारंटी पर बैंकों से हजारों करोड़ रुपए का कर्ज भी दिलाया गया।

ये कंपनियां सड़क बनाने के बाद टोल वसूलती रही, लेकिन तय शर्तों के अनुरुप न तो सरकार को प्रीमियम जमा कराया और न ही बैंकों का कर्ज वापस किया।

बारिश ने खोली पोल

प्रदेश में अतिवृष्टि से बर्बाद हुई सड़कों को सुधारने के लिए कमलनाथ सरकार ने इन कंपनियों को बुलाया तो उन्होंने टोल में घाटा होने की बात कहकर दोबारा सड़क बनाने से दो टूक इंकार कर दिया। सरकार ने इन कंपनियों का अनुबंध निरस्त करने के लिए फाईलें खंगाली तो यह तथ्य सामने आया कि इन्होंने बैंकों का हजारों करोड़ों रुपए का कर्ज चुकाया ही नहीं है। अनुबंध की शर्त के अनुसार अगर इनका ठेका निरस्त होता है तो यह पूरा कर्ज सरकार के माथे आ जाएगा। अब इस मामले को मुख्यमंत्री कमलनाथ के सामने रखा जाएगा।

फायनेंस विभाग को किया गुमराह
दरअसल एमपीआरडीसी के अफसरों ने वित्त विभाग से कहा था कि बीओटी मॉडल पर सड़कें बनाने पर सरकार को एक रुपया भी खर्च नहीं करना होगा।

साथ ही सरकार को प्रीमियम वाली सड़कों से हर साल करोड़ों रुपए की कमाई होगी।

इस पर पिछली शिवराज सरकार ने सहमति दे दी थी।

इन सड़कों का ठेका देने का निर्णय मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में बने एमपीआरडीसी संचालक मंडल के माध्यम से कराया गया।

मुख्यमंत्री के अध्यक्ष होने के कारण संचालक मंडल के निर्णय पर न तो वित्त विभाग कुछ आपत्ति कर पाया और न ही अन्य विभाग।

करीब 9 साल तक अफसर-नेता और ठेकेदारों का यह खेल उजागर नहीं हो पाया।

कमलनाथ सरकार की प्रारंभिक जांच में यह तथ्य सामने आया है कि कंपनियों ने ठेका लेने के बाद न तो सरकार को प्र्रीमियम दिया है और न ही बैंक का कर्ज चुकाया है। अनुबंध की शर्तों के तहत कंपनियों के डिफाल्टर होने पर कर्ज चुकान की जिम्मेदारी सरकार पर आ जाएगी।

ऐसे में उसे 15 हजार करोड़ का फटका लग सकता है।

कई कंपनियां हुई बैंक डिफाल्टर
प्रदेश भर में बीओटी मॉडल पर बनी 104 सड़कों के लिए कंपनियों ने सरकार की गारंटी पर बैंकों से 12 हजार करोड़ का कर्ज लिया था।

इनमें से कई कंपनियां बैंक डिफाल्टर हो चुकी हैं।

इसके चलते यह कर्ज ब्याज राशि मिलाकर 15 हजार करोड़ से ज्यादा का हो गया है।

सड़कों का यह गड़बड़झाला सामने आने के बाद सरकार इन कंपनियों का अनुबंध समाप्त भी नहीं कर पा रही हैं।

वजह है कि अनुबंध निरस्त होते ही सारा कर्ज सरकार को चुकाना होगा।

ऐसे में एमपीआरडीसी कानूनी सलाह ले रहा है। इसके बाद ही कदम उठाए जाएंगे।

मलय श्रीवास्तव, प्रमुख सचिव लोक निर्माण विभाग एवं एमडी एमपीआरडीसी