
भोपाल। केदारनाथ त्रासदी एक ऐसी घटना जिसने लाखों लोगों का जीवन ही बदल कर रख दिया। हम सभी के दिलों को डराती और दुखाती ये घटना आज से 06 वर्ष पहले यानि 2013 में 16 जून को हुई थी। इस दौरान MP का एक ऐसा युवक भी वहां मौजूद था, जो सारी त्रासदी से लड़ता हुआ पैदल कई किलोमीटर तक चलने के बाद अपनी जान बचा सका।
इस घटना से जुड़ी कई बातें सामने आईं, लेकिन वहां की उस समय की स्थिति जब वो सैलाब आया तो क्या हुआ। बहुत कम ही सुनने को मिली। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस त्रासदी के संकेत लगातार मिल रहे थे, वहां जाने वाले वालों को, लेकिन शायद इन संकेतों को समझने में भूल हुई। और हमने हजारों अपनों को खो दिया।
वहीं घटना के बाद क्षेत्र की ग्राउंड रिपोर्टिंग से लेकर कई अन्य कार्य भी किए गए। लेकिन असल में उस घटना वाले दिन जो हुआ उसका काफी कम ही सामने आया। यानि उस समय वहां पहाड़ों पर हुआ क्या था ये हम में से किसी ने प्रत्यक्ष रूप (An Eyewitness of Badri-kedar flood story2013) से नहीं देखा।
केदारनाथ की ये त्रासदी केवल केदारनाथ में हुई हो ऐसा नहीं है, ये कोहराम केदारनाथ से लेकर बद्रीनाथ (Eyewitness of Badri-kedar flood story2013) तक मचा था। इसी के चलते हम आज एक ऐसे युवक से मिलवा रहे हैं जो इस घटना का उस समय प्रत्यक्षदर्शी तो रहा, लेकिन आज तक किसी के सामने इस तरह नहीं आया।
वहीं इससे पहले हम यह भी बता दें कि पहाड़ों में ऋषिकेश से बद्रीनाथ के रास्ते पर बीच नदी में एक मंदिर पड़ता हैं, जिसका नाम है धारी देवी (Dhari Devi)।
इनके बारे में मान्यता है कि उत्तरांचल के सभी तीर्थों को इन्हीं ने धारण कर रखा है। ऐसे में यदि धारी देवी मंदिर पर किसी भी प्रकार का बदलाव किया जाता है, तो इसका सीधा असर बद्री केदार पर पड़ता है।
खास बातें:
- त्रासदी से ठीक पहले बद्रीनाथ में आई थी एक बड़े विस्फोट की आवाज।
- डर के मारे लोगों ने आपस में बातचीत तक कर दी थी बंद।
- मौसम लगातार कर रहा था चेतावनी के इशारे।
- रास्ते की चट्टानें तक दे रहीं थीं चेतावनी।
- कई ग्लेशियर टूटे।
- सड़कें किलोमीटरों तक बह गईं।
दरअसल वर्ष 2013 में केदारनाथ बद्रीनाथ में एक साथ आई आपदा हिमालय के इतिहास में सबसे भयानक त्रासदी मानी जाती है। खास बात ये है कि अधिकांश लोग इसे केदारनाथ त्रासदी के रूप में ही जानते हैं, लेकिन उस दिन बद्रीनाथ के हाल भी ठीक नहीं थे।
रास्ते कट चुके थे सड़कें बह चुकी थी और लोग केवल इंतजार कर रहे थे कैसे भी वहां से निकल जाने का..., जबकि इस सब के बीच व घटना से ठीक पहले बद्रीनाथ के लोगों ने एक धमाका (An Eyewitness of Badri-kedar flood story2013) सुना था, जिसके बारे में शायद ही आपने सुना होंगे।
इसके अलावा मौसम खुद ब खुद कई प्रकार की अपनी शक्ति के तहत इशारे भी कर रहा था, लेकिन जहां लोग मौसम के इशारे को नहीं समझ पाए वहीं कुछ घटनाएं इस दौरान ऐसी भी रहीं जो सबके बीच आज तक दबी रहीं हैं।
कुल मिलाकर केदारनाथ में स्थिति ज्यादा भयावह तो थी लेकिन बद्रीनाथ के हाल भी अच्छे नहीं थे। इसलिए कई लोग इसे बद्री केदार त्रासदी के नाम से भी जानते हैं।
लेकिन आज हम बद्री-केदार त्रासदी की वह सच बताने जा रहे हैं, जो आपने आज से पहले न सुना होगा और न ही जानकारी आप तक आयी होगी।
एक ऐसी अनसुनी कहानी (Eyewitness of Badri-kedar flood story2013) जिसने पूरे देश को भयानक दर्द तो दिया और जो अब तक आपने सामने ही नहीं आई।
इस जानकारी को हमारे साथ साझा करने वाले त्रासदी के प्रत्यक्षदर्शी अमित सिंह उस दौरान बद्रीनाथ में ही थे, और वे पैदल ही कई रास्तों को पार करते हुए अपनी जान बचाकर वहां से वापस आ सके।
अमित सिंह ने मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से ही बीपीएड व एमएड किया है। वर्तमान में वे कहीं ओर रहते हैं और आज भी हर साल उसी समय की तरह बद्रीनाथ की बाइक से यात्रा करते हैं।
ये बोले प्रत्यक्षदर्शी अमित सिंह: मौसम साफ दे रहा था चेतावनी...
अमित सिंह के अनुसार अब वे 6 वर्षों से हर साल कम से कम दो बार बद्रीनाथ की यात्रा बाइक से करते हैं।
उनके अनुसार बाइक से 2013 में उनकी ये पहली यात्रा थी, जिसमें उनके एक दोस्त भी साथ थे।
वे बताते हैं कि हम निकले तो केदारनाथ के दर्शन के लिए थे, लेकिन रास्ते में मौसम के गड़बड़ हालातों के चलते हम केदारनाथ (Eyewitness of Badri-kedar flood story2013) न जाकर बद्रीनाथ को चले गए।
उनके अनुसार मैं और मेरा दोस्त 14 जून 2013 को सुबह सुबह मेरठ से बाइक द्वारा केदार नाथ को निकले थे, तब यहां का मौसम ठीक था साथ ही धूप भी थी।
जिसके बाद हम शाम को करीब 5.30 बजे रुद्रप्रयाग पहुंचे, और वहीं रूम लेकर रात काटी। लेकिन एक खास बात हमने गौर की वो ये थी कि रुद्रप्रयाग में शाम से ही बादलो से अजीब से गड़गड़ाहट (Eyewitness of Badri-kedar flood story2013) आ रही थी, जो हमने पहले कभी नहीं सुनी थी।
यहां 13 जून से ही पानी गिर रहा था, जो हल्का था। लेकिन जब 14 को शाम हम वहां पहुंचे, तो उस समय तक काफी पानी गिर चुका था। दरअसल 14 शाम से पूरी रात यानि 15 सुबह तक यहां तेज पानी गिरा था।
चुकिं ये हमारी पहली बाइक से यात्रा थी तो हमने सोचा कि हम आगे की यात्रा अब बस से ही करेंगे। जिसके चलते 15 जून की सुबह ही करीब 8 बजे बस स्टेंड पर पहुंच गए। लेकिन यहां तीन घंटे तक कोई बस ही नहीं आई।
ऐसे में हमारा विचार बदला और हमने सोचा पहले बाइक से बद्रीनाथ धाम के ही दर्शन (Eyewitness of Badri-kedar flood story2013) कर लिए जाएं और हम बाइक से कर्णप्रयाग (#Badri-Kedar trasdi 2013) को चल दिए।
रुद्रप्रयाग से आगे कर्णप्रयाग तक पहुंचते पहुंचते बारिश फिर शुरू हो गई और उसके आगे गोचर तक तो इतनी मोटी बूंदों में पानी गिरने लगा कि हमें बरसाती तक लेनी पड़ी।
वहीं जोशीमठ पहुंचते पहुंचते तापमान में काफी गिरावट (#Badri-Kedar trasdi 2013)आ गई, और तापमान करीब 17 डिग्री तक पर आ गया। यहां हमने खाना खाया और आगे बढ़ने लगे।
यहां चमोली प्रशासन ने पर्यटकों की भीड़ को देखते हुए करीब 100 गाड़ियां रोक दी थीं। अब चुकिं जोशीमठ से बद्रीनाथ जाने के दो रास्ते हैं। एक उपर शहर से और दूसरा नरसिंह मंदिर से...
ऐसे में हमें नरसिंह मंदिर वाला रास्ता खाली दिखा तो हमने अपनी मोटरसाइकिल वहीं मोड़ (Eyewitness of Badri-kedar flood story2013) ली।
हम जब जोशीमठ से आगे बढ़े तो बारिश हो रही थी। फिर हम नरसिंह मंदिर पार करते हुए आगे को चल दिए। वहीं गोंविद घाट और जोशीमठ के बीच में सड़क पर एक चट्टान पड़ी थी, जो तकरीबन 8बाय10 फीट की रही होगी।
जिसके चलते दोनों ओर का ट्रैफिक 6-6 किलोमीटर तक के जाम में फंस (#Badri-Kedar flood 2013) गया। चुंकि हम बाइक पर थे तो धीरे धीरे पतली सी जो जगह बची थी वहां से आगे निकल गए, और सीधे पाण्डूकेश्वर जा पहुंचे।
कंचनजंगा ग्लेशियर से सड़क पर आ रहा था पानी
हां यहां एक बात बता दूं की जब चट्टान रास्ते पर पड़ी थी उस समय गोविंद घाट पर करीब 50 से 80 हजार लोग वहां मौजूद थे। दरअसल इस समय गोविंद घाट से हेमकुंड साहिब की यात्रा पीक पर थी। यहां से आगे निकलते ही पांडुकेश्वर में हमें कुछ लोगों ने बताया कि कुछ ग्लेशियर टूट (#Badri-Kedar trasdi 2013) गए हैं,
और ये जो सड़क पर पानी आ रहा है ये वहां किसी कंचनजंगा ग्लेशियर से आ रहा है। अब उत्सुकता के चलते हम कंचनजंगा ग्लेशियर तक जा पहुंचे तो वहां मैंने देखा की उसमें पानी करीब 3 फीट उपर तक था, जिससे पानी सड़क पर आ रहा था।
यहां से आगे हम बहुत मुश्किल से पानी क्रास करते हुए निकले। इसके बाद हम करीब 6.30 बजे बद्रीनाथ पहुंचे। जहां हमने करनाल धर्मशाला में एक कमरा हम दोनों के लिए किराए पर ले लिया।
मौसम करता रहा खतरे का इशारा ( माहौल में अजीब सी बैचेनी)...
इस पूरी यात्रा में खास बात ये रही कि एक ओर जहां हमें रुद्र प्रयाग में बादलों के गडगडाने की अजीब सी आवाजें सुनाई दीं, वहीं इसके बाद बीच सड़क में गिरी एक शिला (Eyewitness of Badri-kedar flood story2013) मिली।
लेकिन हम फिर भी मौसम के इस इशारे को नहीं समझ पाए। इसके बाद जब बद्रीनाथ पहुंचे तो वहां भी अजीब सा ही पानी गिर(#Badri-Kedar trasdi 2013) रहा था, ऐसा पानी मैंने अपने जीवन में कभी पड़ते नहीं देखा।
इसके बाद करनाल धर्मशाला में कमरा किराए से लिया फिर 15 जून को सुबह 7.59 बजे बद्रीविशाल के दर्शन किए। वहां से बाहर आने पर देखा कि यहां के माहौल में अजीब सी बैचेनी थी। लोगों में भी और उस पूरे क्षेत्र में...
फिर खाना खाकर हम शाम को ही सो गए। इस दौरान पानी पड़ता रहा। इसके बाद 16 जून को करीब 11 बजे जब पानी बंद सा हो गया तो हमने रुकने के लिए कोई और जगह ढ़ूंढने की सोची इसके बाद एक दूसरी धर्मशाला में शिफ्ट हो गए।
इसके बाद दोबारा दर्शन करने गए फिर खाना खाकर जल्दी सो (Eyewitness of Badri-kedar flood story2013) गए, हमारे बैग भी गीले हो गए थे। लेकिन 16 की रात को एक बड़ा सा धमाका(Eyewitness of Badri-kedar flood 2013) हुआ जिससे हमारी नींद खुल गई। ऐसा लगा मानो कहीं भूकंप आ गया। बाहर जा के देखा तो पानी पड़ रहा था, लेकिन लाइट चली गई।
बाद में मालूम चला कि बद्रीनाथ में जिस पावर प्लांट से लाइट आती है, वहां एक ग्लेशियर से धारा (#Badri-Kedar trasdi 2013)आती है और एक बहुत बड़ा होद है जिससे पाइप से पानी टर्बाइन में जाता है और फिर उससे लाइट बनती है, दरअसल उस होद मे एक बडी चट्टान गिर गई थी ये उसी की आवाज थी।
ऐसे सामने आई घटना...
हम सो गए सुुबह 17 जून को 8 - 9 बजे जगे तो उस समय लोगों में भगदड़ मची हुुई थी, और इस समय बारिश भी बंद हो गई थी। और 10-11 बजे धूप भी निकल आई थी। प्रशासन ने घोषणा कि यहां रहने वालों से किराया नहीं लिया जाए।
उसने केवल इतना कहा कि यहां कुछ घटना (Eyewitness of Badri-kedar flood story2013) हो गई है, लेकिन क्या घटना घटी है इसकी सच्चाई छुपा (#Badri-Kedar flood 2013) ली गई। केवल इतना कहा गया कि नीचे कुछ रास्ते टूट गए हैं, जो हम जल्द ही सुधार देंगे। इसके बाद अलाउंसमेंट हुआ कि गेस्ट हाउस में खाने की व्यवस्था की गई है।
लेकिन लोगों का अंदाजा लगाया जाना मुश्किल था। लोगों को ज्यादा घटना का अंदाजा (#Badri-Kedar trasdi 2013)नहीं था, लाइट नहीं थी मोबाइल भी काम नहीं कर रहे थे। शाम को 7 बजे कुछ लोकल लोगों ने कुछ जुगाड़ (#Badri-Kedar trasdi 2013) करके टीवी चालू कर दिया। एक ही चैनल कार्य कर रहा था, जिससे केदारनाथ की घटना की सूचना फैल गई, जिससे लोग सहम गए।
घटना का सूनते ही लोगों को आया हार्ट अटैक...
यह मेरे सामने की बात है कि कुछ लोगों को जैसे ही केदारनाथ की घटना का पता चला कि वहां कुछ हजार लोगों की मौत हो गई है ये सुनते ही एक महिला को मेरे आंखों के सामने हार्ट अटैक (Eyewitness of Badri-kedar flood2013) पड़ गया, जो खत्म भी हो गईं। बाद में पता चला करीब 3 से 4 लोगों को सूचना मिलने पर हार्ट अटैक आया था।
अब समझें पूरी घटना...
अब लोगों ने समझ लिया था कि बड़ी आपदा आ गई है, और रास्ते भी बंद हैं। ऐसे में लोकल लड़के आगे जा जाकर बाहर निकलने के रास्ते देखने की कोशिश कर रहे थे।
लोकल लोग लगातार पता कर रहे थे कि कहां क्या स्थिति है तो मालूम चला कि बद्रीनाथ से कुछ किलोमीटर दूर स्थित कंचनजंगा ग्लेशियर (Eyewitness of Badri-kedarTrasdi2013) जिसपर हमने पहले पानी देखा था वो पूरी तरह से बह गया है।
यहां करीब 19 से 20 मीटर कर्व चौडाई में खाई बन गई थी, जिसे पाटना प्रशासन के लिए बहुत मुश्किल था। अब लोग समझ गए थे कि उनका खाना खत्म हो जाएगा तो हर कोई लंगरों में जाने लगा।
यानि उन लंगरों में जहां मैंने कभी 4 लोग नहीं देखे थे वहां अब सैंकड़ों की संख्या में लोग आने लगे। इसके अलावा लोगों में इतना डर फैल गया था कि वे आपस में बात करने से तक कतराने लगे थे। इस दौरान किसी को भी ये जानकारी नहीं थी कि यहां के लोगों को कैसे शिफ्ट करना है।
राहुल गांधी का प्लेन...
इसके बाद 18 जून को बद्रीनाथ के उपर से राहुल गांधी का हैलीकॉपटर वहां की स्थिति देखकर गुजर गया। इसके बाद 19 जून से यहां से लोगों को निकालने के लिए एक छोटे चौपर की व्यवस्था शुरू की गई। जो एक बार में 4 से 5 लोगों को ही ले जा सकता था।
वहीं लोग इसे आता देखकर बदहवास से उसकी ओर दौड़ने लगे। तब यहां गडवाल राइफ्लस ने एक मेडिकल कैम्प लगाया और बेरिगेड्स भी लगाए। इसके बाद बच्चों व बुजुर्गों को पहले भेजने की व्यवस्था की गई। उस समय यहां करीब 20 हजार लोग रहे होंगे।
चौपर के आने से लोग मंदिर को भूलकर सारा दिन हेलीपेड पर ही गुजारने लगे। जैसे ही हैलिकॉपटर आता लोग ताली बजाते और डांस करते। वहीं कुछ लोग वहां मदद के लिए भेजे गए सामान के लिए लड़ते झगड़ते भी...
इस दौरान सबसे पहले भिखारी यहां से निकाले गए, फिर बुजुर्गों को निकाला गया। जबकि हमें कई बार लाइन से ही बाहर कर दिया गया। इसी दौरान मेरे साथ गया मेरा मित्र भी कुछ जुगाड़ लगाकर हैलीकॉपटर से निकल गया।
दुस्साहसी कदम उठाने के लिए अकेलेपन ने किया मजबूर
ऐसी ही स्थिति में 9 दिन बीत गए। अब मैं भी अकेलेपन से बोर होने लगा, लोग बहुत थे लेकिन मेरे साथ कोई नहीं था। यानि मेरा दोस्त तक जा चुका था तो मुझे अंदर से अकेलापन महसूस होने लगा।
हमारी यात्रा के 9 दिन बाद यानि 23 को मुझे लगा यहां भीड़ कम नहीं हो रही है। इस बीच एक दिन के लिए हैलीकॉपटर की सेवा भी बंद रही।
जिसके बाद एमआई हैलीकॉपटर की सेवा शुरू की गई। जिसमें आते तो ज्यादा लोग थे, लेकिन इसकी उड़ाने बहुत कम थीं। यह एक दिन में करीब 150 से 200 लोगों को ही निकाल रहा था।
तो मैंने अपने लिए निर्णय लिया ओर पैदल वापस आने की सोची। कुछ लोकल लोगों से जानकारी मिली कि वहां के कुछ कुली व्यापारियों का सामन लेकर पैदल जोशीमठ तक जाते हैं। बस मेरी भी हिम्मत बन गई।
हर तरफ मौत ही मौत का सफर
ये लोग कच्ची पंगडंडियों से सामान ले जाते थे। उन्हें इसका अनुभव था पर मुझे नहीं तो मैं भी उनके पीछे हो लिया। हेलीपेड के पास से निकले। इस दौरान कई दुर्गम पहाड़ियों पर चढ़ाई की। कई जगह तो थीं जहां से गिरने का मतलब केवल मौत था।
कई बार ऐसा भी आया कि अब मरे और तब मरे। लेकिन कहते हैं न जीने की इच्छा सब करा देती है, वहीं मेरे साथ भी हुआ। जैसे तैसे पार करते हुए 24 जून को सुबह 4 बजे के चले शाम 4 बजे के आसपास लांबागढ़ पहुंचे, जो केवल 12 से 15 किलोमीटर की दूरी पर था।
वहीं इससे पहले मैं अपनी बाइक बद्रीनाथ में ही नीलकंठ गेस्ट हाउस में छोड़ आया था। जो मैं करीब 4 माह बाद अक्टूबर में वहां से वापस लाया।
हाइड्रोपावर प्लांट भी बह गया
इस पूरी त्रासदी में लांंबागढ़ में बना जेपी ग्रुप का हाइड्रोपावर प्लांट भी बह गया था। यहां कई जगह लोगों के आधे तो किसी के पूरे घर बहे हुए थे। वहीं मुझे बाद में मालूम चला कि कई और लोग भी मुझे देखकर वहां से निकले। दरअसल लांबागढ़ में वहां के लोगों ने भंडारा लगा रखा था, हमने वहीं खाना खाया और पैरों में छाले पड़ जाने के कारण उस रात वहीं रूक गए।
इसके बाद 25 जून को वहां से चले और दोपहर 11 बजे गोविंदघाट पहुंचे, वहां भी किसी संत ने लंगर लगाया था। यहां हमें बताया गया कि आगे कुछ घटना हो गई है तो आप यहीं रूक जाएं।
इसी समय यहां 3-4 लोग और आ गए। जो मेरे पास आकर बैठ गए। इनमें एक 60-65 साल के बुजुर्ग सरदार जी भी थे। उन्होंने बताया कि वे पेशे से ड्राइवर हैं और मुझे देखकर ही इस रास्ते से निकले हैं।
लोगों की तारीफ ने बढ़ाई हिम्मत
इस पर मैंने उनसे पूछा कि रास्ते में एक 20-25 फीट की चट्टान भी पड़ी थी, जिसे क्लाइंब करके उतरना था, आपने वो कैसे पार की तो उन्होंने ये बताया कि हमने सरदार जी की पाग यानि पगड़ी को चट्टान में बांध कर उसकी मदद से धीरे धीरे उतरे।
ये जानकर मुझ में उत्साह के साथ उर्जा का संचार होने लगा। ऐसे ही कई ओर लोग भी मुझे मिले, जिन्हें न तो मैं जानता था और न ही वो मुझे। पर उनके मिलने व मुझे धन्यवाद देने से मुझे बहुत अच्छा महसूस हुआ। इनमें से कुछ ने आशीर्वाद दिया तो कुछ ने नाम पता भी पूछा। पता करने पर मालूम चला कि यहां मुख्य रूप से दो रास्ते पूरी तरह से टूट गए हैं।
एक गोविंद घाट के पहले व दूसरा गोविंदघाट से बद्रीनाथ के बीच में... एक तो पहली जगह वह थी जो हमने पार कर ली थी, लेकिन दूसरी वहीं जगह थी जहां हमें सड़क पर आते समय चट्टान मिली थी।
उस चट्टान ने इतना गहरा गढ्डा कर दिया था जिसके संबंध में वहां काम कर रहे लोगों का कहना था इसे ठीक करने में करीब 3 दिन लगेंगे। क्योकिं कोई भी पत्थर वहां ठहर नहीं पा रहा है।
हमने आस पास देखा तो वहां हमें एक 7 फिट उंची चट्टान दिखी, जिसे पार करने का मतलब था जोशीमठ पहुंच जाना। फिर हम वो चट्टान चढे और जब उतरने लगे तो वहां तीखी जगहों पर आईटीबीपी के जवान खड़े दिखे जो लोगों को उतरने में सहारा दे रहे थे।
जब पहली बार निकले आंसू (मरते मरते बचा, जवान ने दिया सहारा )...
इसी गीली चट्टान से उतरते समय अचानक मेरा पैर फिसल गया, तो मेरी एक आईटीबीपी के एक जवान ने जान बचाई उनका नाम तो याद नहीं लेकिन कुछ नेगी करके उनका नाम था।
उन्होंने मेरे पैर फिसलते ही मेरी बाह पकड़ ली और मेरी जान बच गई। बस यह पहला पल था कि जब आंखों से आंसू बह निकले।
दरअसल में इतनी चढ़ाइयां चढ़ते हुए आया था, पैरों में छाले पड़ गए थे पर मैंने हिम्मत नहीं हारी थी, लेकिन जैसे ही पैर फिसला और जवान ने मुझे सहारा दिया ठीक उसी समय दर्द दिल से आंखों के रास्ते आंसू के रूप में बाहर आ गया।
वहां से जवान मुझे अपने मेडिकल कैम्प ले गया जहां डॉक्टर ने मुझे पानी पिलाया और कुड बिस्किट खाने को दिए। वहां से हमें ट्रक के द्वारा आगे भेजा गया। यहां हमें पता चला की हनुमान चट्टी के पास करीब 7 किलोमीटर की पूरी सड़क बह गई है।
वहीं जैसे ही ट्रक में बैठे ऐसा लगा मानो किसी अंधेरी गुफा से बाहर आ गए हों। जोशीमठ में प्रशासन ने प्राइवेट टैक्सियों को आदेश दिए थ कि रिशीकेष तक यात्रियों को फ्री ले जाओं , आपके डीजल की व्यवस्था हम करेंगे और हर चक्कर एक निश्चित पैसा भी देने का वादा किया था। यहां हमें रिशीकेष बताकर टैक्सी में चढ़ाकर चमौली भेज दिया गया।
ये रही सरकार की व्यवस्था...
हां हमें सरकार की ओर से 2 हजार रुपए भी दिए गए थे। चमौली में रहने से लेकर खाने तक की सरकार ने व्यवस्था कर रखी थी। इसके बाद मैने वहां से आखरी बस पकड़ी जो रिशीकेष जा रही थी।
चमौली से रिशीकेष तक का सफर भी खास यादगार है। यहां हर जगह चाहे कर्णप्रयाग हो या रुद्रप्रयाग या पीपल कोटी हर जगह लोगों के समुह खड़े मिले जो जोशीमठ से आने वालों को पानी, बिस्किट, चाय यहां तक की टूथपेस्ट तक दे रहे थे।
सुबह 11 बजे चमोली से चलकर हम शाम करीब 5.30 बजे ऋषिकेश पहुंचे।
यहां भी बस के आते ही करी 100 लोगों ने बस को घेर लिया इन सबके हाथ में कुछ फोटो थे जो उनके अपनों के थे, लेकिन अब तक वापस नहीं आए थे। मैंने पूरी कोशिश की पहचानने की लेकिन कोई भी फोटो पहचाना ही नहीं गया कुल मिलाकर मैं यहां साइलेंट सा हो गया।
आज भी हर साल दो बार जाता हूं
इसके बाद जब घर पहुंचा तो घर के सभी खुश हुए पर मेरी आंखें आंसुओं से नम थी। लेकिन जीवन की इस घटना के बाद जिंदगी के प्रति नजरिया ही बदल गया। मैं तब से आज तक हर साल बाइक से ही बद्रीनाथ जाता हूं साल में कम से कम दो बार...
अब कि बार वहां जाने पर मैंने महसूस किया कि अब नई आई सरकारों ने वहां की सुविधा में तो इजाफा किया ही है। साथ ही काफी कुछ नया और उन्नत भी कर दिया है।
MP से गए लोग भी आज तक हैं लापता...
केदारनाथ में त्रासदी के बाद क्या कुछ हुआ कितने लोगों ने जाने गवांईं या उन्हें कैसे निकाला गया और बाकि भी बहुत कुछ अधिकांश सामने आ ही चुका है।
लेकिन खास बात ये है कि इस त्रासदी में कई मध्यप्रदेश के लोग भी गायब हुए, जिनमें से कई के नहीं मिलने के चलते आज तक उनके मृत्यु प्रमाण पत्र तक नहीं बने हैं। ऐसे में उनके परिजन आज भी सरकारी कार्यालयों की खाक छानने को मजबूर बने हुए हैं।
Updated on:
16 Jun 2019 09:19 pm
Published on:
16 Jun 2018 07:34 am
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