सूत्रों की मानें तो कैन्टीन का ठेका अस्पताल प्रबंधन अपने चहेते को देता है। हालात एेसे हैं कि करीब छह साल पहले जिस व्यक्ति ने यही ठेका ढाई लाख रुपए में लिया था। उसी व्यक्ति को इस बार ठेका महज 60 हजार रुपए में दिया गया है। जबकि, इन पांच-छह सालों में मरीजों की संख्या में खासी बढ़ोतरी हुई है। एेसे में ठेके की राशि में इजाफा होना चाहिए था, लेकिन एेसा नहीं हुआ। इसके पीछे अधिकारियों और ठेकेदार की मिलीभगत बताई जाती है। आरोप है कि ठेकेदार दूसरे लोगों को निविदा भरने नहीं देता है। अगर कोई भरता है तो उसमें कमी बता निकालकर रिजेक्ट कर दिया जाता है।