
भोपाल। बंगाली दुर्गा उत्सव की शुरुआत मंगलवार से होगी। इस दौरान जगतजननी अपने मायके में परिवार के साथ भगवान कार्तिकेय, भगवान गणेश, मां सरस्वती के साथ आएगी। इस बार मां का आगमन नाव से हो रहा है, और अश्व से मां का गमन होगा। शहर की कालीबाडि़यों में मां दुर्गा की आकर्षक झांकियां सजाई जाएगी, दशहरे पर सिंदूर खेला के साथ माता की विदाई होगी।
बंगाली दुर्गा पूजा की तैयारियां शहर की कालीबाडि़यों में शुरू हो गई है। षष्ठी मंगलवार को पहले बेल के नीचे मां का आगमन होगा, इसके बाद मुख्य आसन पर मां की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। टीटी नगर कालीबाड़ी के सलिल चटर्जी ने बताया कि दुर्गा पूजा महोत्सव के अंतर्गत धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
मंगलवार को शाम को राजधानी के ही बंगाली कलाकारों द्वारा म्युजिकल कार्यक्रमों की प्रस्तुति दी जाएगी, इसी प्रकार सप्तमी से नवमी तक तीन दिन कोलकाता के विशेष कलाकारों द्वारा कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाएंगे।
पिपलानी, हबीबगंज में भी आयोजन :
इधर पिपलानी, हबीबगंज कालीबाड़ी में भी विशेष धार्मिक आयोजन किए जाएंगे। यहां भी आकर्षक झांकी सजाकर मां की स्थापना की जाएगी। यहां धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होगा, और विधि विधान के साथ विशेष पूजा अर्चना की जाएगी। कालीबाडि़यों में बंगाली दुर्गा पूजा की विशेष तैयारियां की जा रही है।
बंगाली रीति से मां की आराधना :
संधि पूजा अष्टमी पर शाम को होगी। दुर्गा महोत्सव के अंतर्गत षष्ठी से नवमी तक प्रतिदिन बंगाली रीति रिवाज से मां की पूजा अर्चना की जाएगी, इसी प्रकार दशहरे पर सिंदूर खेला का विशेष आयोजन होगा। इस बार न्यू मार्केट कालीबाड़ी में नाव की आकर्षक झांकी सजाई जाएगी। वहीं राजधानी में अनेक तीर्थ स्थलों की तर्ज पर आकर्षक झांकियां सजाई गई है, साथ ही जगह-जगह चलित झांकियां भी सजाई गई हैं। ये झांकियां लोगों के खास आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। बच्चों से लेकर बड़े तक सभी को ये पसंद आ रही हैं।
इधर,101 मीटर लंबी चुनरी यात्रा निकाली :-
नवरात्र के मौके पर रविवार को भोपाल के यादवपुरा से काली मंदिर तक 101 मीटर लंबी चुनरी यात्रा निकाली गई। वंदे मातरम समिति की ओर से निकाली गई इस चुनरी यात्रा में बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए।
नवरात्रि का 5वां दिन यानि देवी स्कंदमाता ...
'मातृशक्ति की मुरली पर तेजस्विता की तान हैं नवरात्र। नवदुर्गा के रूपों में माता का मान हैं नवरात्र।
एकम से नवमी तक साधना के सोपान हैं नवरात्र।
बेटियों की सुरक्षा-संरक्षण का संज्ञान हैं नवरात्र।'
पांचवें नवरात्र में नवदुर्गा का स्वरूप है स्कंदमाता। स्कंद का अर्थ है 'कार्तिकेयÓ और माता का आशय है 'मां पार्वतीÓ अर्थात दुर्गा। तात्पर्य यह है कि स्कंद यानी 'कार्तिकेय से संतान का बोध होता है और स्कंदमाता से जननी 'मां पार्वती काÓ।
शास्त्रीय अर्थात परंपरागत अर्थ में तो नवदुर्गा के स्कंदमाता रूप को सभी जानते हैं और यह भी सबको ज्ञात है कि प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में भगवान स्कंद अर्थात कुमार कार्तिकेय ही देवताओं के सेनापति बने थे, किंतु वर्तमान अर्थ यह है कि मां के द्वारा किया गया पालन-पोषण और दिया गया संस्कार ही संतान को सुख-सुकून सामथ्र्य प्रदान करता है। मां की दुआ-संतान के लिए रक्षाकवच भी होती है, प्रगति का पर्याय भी और उज्ज्वल भविष्य का आधार भी। अत:, संतान को अपनी मां का सदैव सम्मान करना चाहिए और उसकी सेवा करना चाहिए।
वृद्धामाता को 'सीनियर सिटीजन' समझकर संतान उन्हें वृद्धाश्रम में भर्ती नहीं कराए अपितु अपने आवास में ही मां की देखभाल करे, ठीक वैसे ही जैसे मां पार्वती (दुर्गा) ने स्कंद (कार्तिकेय) की देखभाल की थी। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि नवदुर्गा का पंचम रूप तो है स्कंदमाता, लेकिन देवी रक्तदंतिका के कार्य भी इन्हें करने पड़े, जिसकी वजह से ये कहलाईं भक्तों की त्राता। सरलता की दृष्टि से यह कि स्कंदमाता है 'आकार'। किंतु दुष्टों को दंडित करने के लिए देवी रक्तदंतिका है 'ओंकारÓ। स्कंदमाता के रूप में मां दुर्गा अपनी संतान यानी भक्तों की रक्षा करती है, लेकिन देवी रक्तदंतिका होकर उन दैत्यों को जो अहंकारी तथा अभिमानी थे (जिन्हें 'वैप्रचित दैत्य' कहा जाता था) अपने दांतों से काटकर नष्ट कर देती है। आशय यह है कि अहिंसक मां भी अपनी संतान की रक्षा के लिए जब कोई उपाय नहीं सूझेगा तो क्रुद्ध होकर शत्रु को दांतों से काट लेगी।
वर्तमान अर्थ यह है कि अहंकार नहीं करना चाहिए। अहंकार पतन का कारक और प्रतिष्ठा का मारक है। इस संदर्भ में काव्य पंक्तियां (दोहा) भी है- 'अहंकार' मत कीजिए, अहं, नाश का नाम। समझ सकें तो समझ लें, रावण का परिणाम।
Published on:
25 Sept 2017 11:54 am
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