भू-माफियाओं की करतूत कब्जे तक ही सीमित नहीं है। वह प्रॉपर्टी के फर्जी दस्तावेज तैयार कर दूसरे व्यक्ति को बेच देते हैं या बैंक से लोन लेते हैं। जब दूसरा व्यक्ति प्रॉपर्टी पर हक जमाने पहुंचता है, तब धोधाधड़ी का खुलासा होता है। इनके निशाने पर अधिकतर वह लोग होते हैं, जो शहर से बाहर रह रहे हैं। जालसाजी के लिए फर्जी तरीके से तैयार की गई पावर ऑफ अटार्नी का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है।
निशातपुरा, छोला, भानपुर, अवधपुरी, रातीबड़, ऐशबाग, अशोका गार्डन, अयोध्या नगर, गांधी नगर से सबसे अधिक शिकायत पुलिस के पास पहुंचती हैं। यहां कई लोगों ने जमीन, प्लॉट खरीदकर छोड़ रखा है।
भू-माफिया की पुलिस-प्रशासन में गहरी पैठ है। अधिकतर भू-माफिया पुलिस, प्रशासन की धौंस दिखाकर ही जमीन मालिक को धमकाते हैं। पैठ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता कि शिकायत के बाद भी एफआइआर करने में पुलिस तमाम तरह की कानूनी दलील देकर टाल मटोल करती है।
शहर में प्रॉपर्टी के फर्जी दस्तावेज तैयार कराकर भू-माफिया को उपलब्ध कराने वाला एक बड़ा रैकेट सक्रिय है। जो अलग-अलग इलाकों में घूम फिर कर खाली जमीन, मकान के फर्जी दस्तावेज तैयार कर भू-माफिया को उपलब्ध कराता है। इसके बदले यह रैकेट भू-माफिया से मोटी रकम वसूलता है। रैकेट का दखल रजिस्ट्री आफिस तक है। फर्जी रजीस्ट्री तक गिरोह करा देता है।
अगर आप नए प्लॉट, भवन, मकान की रजिस्ट्री कराने जा रहे हैं तो पंजीयन की साइट पर रेरा संबंधी विकल्प से बिल्डर की स्थिति पता करें। जैसे- उसका रजिस्ट्रेशन है या नहीं, प्रोजेक्ट कब तक पूरा होगा? जमीन कितनी है, कितने में काम चल रहा है, प्रोजेक्ट की पूरी जानकारी वहां मिल जाएगी? इसी वेबसाइट पर दूसरी विंडो में जमीन किसके नाम पर दर्ज है, इसकी भी जानकारी खसरा नंबर से कर सकते हैं। इससे काफी हद तक फर्जीवाड़े से बचा जा सकता है। इसके अलावा आरसीएमएस में भी ये सुविधा दी गई है, लेकिन पंजीयन की वेबसाइट से जानकारी लेना आसान है।