पड़ोसी को पटाखे चलाते देख जो खुशी होती थी, उसकी याद आज भी रोशन है। पड़ोसी को खुश देखकर खुद भी खुश हो जाते थे। मुझे शुरू में 156 रुपए वेतन मिलता था, जिसमें घर भी भेजते थे और अपना खर्च चलाते थे। एक रुपए का ढाई लीटर दूध मिलता था। बरफी, पेड़े ही मिठाइयां थीं। एक बार दिवाली की रात एक किसान की गाय बीमार हो गई। मुझे बच्चों के लिए मिठाई लानी थी, लेकिन पहले मैंने गाय को ठीक किया। यह दिवाली से ज्यादा सुखद था।