
झीलों की नगरी, लेकिन झील संरक्षण पर नहीं होती कोई बात
भोपाल. झीलों के शहर में झील मुद्दा होना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं है। एक्सपर्ट कहते हैं कि झील बचेगी तो शहर बचेगा, लेकिन शहर के जनप्रतिनिधि अब तक गंभीर नहीं हुए। आमजन झीलों को बचाने कोर्ट से निर्णय करवा रहे हैं, बावजूद इसके संवेदनशीलता नहीं बढ़ रही।
कोर्ट पर भारी नेताजी
- नवाब सिद्दीक हसन तालाब किनारे 255 से ज्यादा निर्माण। इन्हें हटाने वर्ष 2021 व 2023 में दिए गए। 2024 में कार्रवाई क्षेत्रीय विधायक ने आकर रूकवा दी।
- कलियासोत 33 मीटर सीमों में 11 निर्माणों को हटाकर 15 जनवरी 2024 तक एनजीटी में जवाब देना था। लेकिन स्थानीय नेताओं के दबाव में कार्रवाई पूरी नहीं की।
- मोतिया तालाब में 700 से अधिक निर्माणों का सीधे सीवेज मिल रहा। एनजीटी ने मामले में निगम पर 121 करोड़ की पेनल्टी लगाई, सीवेज नहीं रूकी।
तालाब-डैम: प्लांट लगे तो दूर हो बिजली की कमी
शहर के 5 डेम, 10 तालाब पर हाइड्रो पॉवर प्लांट लगाए तो शहर की बिजली जरूरत पूरी की जा सकती है। प्रदेश में हाइड्रो एनर्जी स्टोरेज व जनरेशन योजना के तहत प्रोजेक्ट लगाकर 200 मेगावाट तक की बिजली तैयार की जा सकती है। कर्नाटक ने इस तरह के प्रोजेक्ट पर फोकस किया है, लेकिन राजधानी में किसी जनप्रतिनिधि ने इस पर विचार नहीं किया।
बेहाल हुए शहर के तालाब और डैम
- बड़ा तालाब किनारों पर 300 से अधिक निर्माण है। 11 नाले अब भी मिल रहे हैं।
- छोटा तालाब भी वेटलेंड के बावजूद गाद से भर गया है।
- शाहपुरा तालाब सीवेज पोंड बन गया किनारों पर चूनाभट्टी से शाहपुरा तक विकसित हुए।
- मोतिया तालाब 70 फीसदी खत्म। किनारों पर अस्पताल से अन्य निर्माण हो गए।
- नवाब सिद्धीकी हसन तालाब किनारे 255 से अधिक निर्माण अंदर बन गए। 65 फीसदी हिस्सा खत्म हो गया।
- मुंशी हुसैन खां तालाब-70 फीसदी में निर्माण हो गए।
- सारंगपानी तालाब- भेल क्षेत्र को बेहतर करने की कोशिश है। गंदा पानी मिल रहा।
शहर के तालाब-डेम
बड़ा तालाब- छोटा तालाब,
शाहपुरा तालाब
मोतिया तालाब एक
मोतिया तालाब (जहांगीराबाद)
नवाब सिद्धीकी हसन तालाब
मुंशी हुसैन खां तालाब
सारंगपानी तालाब
लहारपुर व हताईखेड़ा जलाशय
चार इमली तालाब लेंडिया तालाब गुरुबक्श की तलैया
अच्छे मियां की तलैया भदभदा डेम
कलियासोत डेम, केरवा डेम
इनका कहना है
झीलों की नगरी में झील कोई मुद्दा ही न हो तो हैरानी होती है, लेकिन भोपाल में ऐसा ही है। बीते सात दशक में लोकसभा से लेकर विधानसभा, नगरीय निकाय चुनाव हुए। दर्जनों जनप्रतिनिधि चुने गए, लेकिन एक चुनाव में भी झील संरक्षण मुद्दा नहीं बनाया गया। जबकि सात दशक में झीले बदहाल होती रही। अफसर इनके संरक्षण के नाम पर जमकर पैसा बनाते रहे। आजादी के समय शहर में 18 झील व डेम थे, लेकिन अब 14 बचे है और पेयजल इनमें से सिर्फ एक ही लिया जाता है। तीन सीढ़ी तालाबों के बीच में तो 10 से 15 मीटर चौड़ी पक्की सडक़ें बनाकर लोगों को तालाबों में जाने के लिए प्रोत्साहित किया गया।
- सुभाष सी पांडेय, पर्यावरण विद़्
Published on:
30 Mar 2024 06:12 pm
बड़ी खबरें
View Allभोपाल
मध्य प्रदेश न्यूज़
ट्रेंडिंग
