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पर्चियों पर भिड़ गई कांग्रेस और बीजेपी, एक-दूसरे की खूब बखिया उधेड़ी

Congress and BJP clash - एमपी की राजनीति में सोमवार को 'पर्ची वॉर' चला। कांग्रेस और बीजेपी में पर्चियों पर खूब घमासान हुआ।

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फेसबुक पोस्ट पर बवाल (image social - X हैंडल)

फेसबुक पोस्ट पर बवाल (image social - X हैंडल)

Congress and BJP clash - एमपी की राजनीति में सोमवार को 'पर्ची वॉर' चला। कांग्रेस और बीजेपी में पर्चियों पर खूब घमासान हुआ। पीसीसी चीफ जीतू पटवारी ने ओबीसी आरक्षण पर सीएम मोहन यादव के उस बयान पर तीखा कमेंट किया कि जिसमें उन्होंने कांग्रेस से कहा था कि एक पर्ची पर चार लाइन लिखने से कोई कानून बनता है क्या? पटवारी की सीएम पर टिप्पणी पर बीजेपी ने भी तुरंत प्रतिक्रिया दी। पार्टी के प्रदेश मीडिया प्रभारी आशीष अग्रवाल ने कांग्रेस की पर्चियों का पूरा सिलसिला ही गिना डाला।

मध्यप्रदेश में इन दिनों अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27 प्रतिशत आरक्षण पर सत्ताधारी बीजेपी और कांग्रेस में लड़ाई छिड़ी हुई है। सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को हुई सुनवाई के बाद कांग्रेस ने शनिवार को प्रेस कान्फ्रेंस बुलाकर इस मुद्दे पर प्रदेशभर में आंदोलन-प्रदर्शन करने का ऐलान किया जिसके जवाब में सीएम डॉ. मोहन यादव ने भी बड़ा ऐलान करते हुए विधानसभा में नया बिल लाने की घोषणा की।

सीएम ने ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने की प्रतिबद्धता जताई। उन्होंने कांग्रेस पर बगैर सर्वे, बगैर तैयारी, ओबीसी आरक्षण देने की बात करके भ्रम फैलाने का आरोप लगाया था। सीएम ने कहा कि कांग्रेस ने केवल चार लाइन का कागज लेकर आरक्षण देने की बात करके भ्रम फैलाया।

सोमवार को सीएम के इस बयान का कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी ने प्रतिवाद किया। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार ने तब आधिकारिक रूप से कानून बनवाकर इसे पास करवाया था।

क्या बोले कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी-

जो खुद पर्ची से आए, वे कहते हैं एक पर्ची पर चार लाइन लिखने से कानून बनता है क्या ?
बिल पर बिल लाने की बात करना मुख्यमंत्री की अपरिपक्वता को दर्शाता है।

इसपर बीजेपी के प्रदेश मीडिया प्रभारी आशीष अग्रवाल ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने अपने एक्स हेंडल पर लिखा-

पर्ची की राजनीति कांग्रेस की विरासत रही है -

पर्ची तो तब थी,
जब जनता के जनादेश को दरकिनार कर सत्ता की कुर्सियाँ बाँटी गईं।

पर्ची तो तब थी,
जब 10 जनपथ से देश की दिशा तय होती थी, और प्रधानमंत्री सिर्फ मोहर भर बनते थे।

पर्ची तो तब थी,
जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इंदिरा गांधी और संजय गांधी ने एक पर्ची पर लिखा — "अब आपातकाल लगेगा!"

पर्ची तो तब थी,
जब सोनिया गांधी अचानक राजनीति में प्रकट हुईं और पूरी कांग्रेस उनके सामने नतमस्तक हो गई।

पर्ची तो तब थी,
जब सत्ता में नहीं रहने वाले भी पर्ची से मंत्री बन जाते थे।

जो खुद "पर्ची संस्कृति" के जनक हैं,

उन्हें कैसे पता होगा कि,
भाजपा जनता के जनादेश और लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चलती है -
ना कि बंद कमरों में लिखी गई पर्चियों से।