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Corruption News : मध्यप्रदेश में खुले घूम रहे घूसखोर

मध्यप्रदेश में घूस कौन ले रहा है, यह तो सब जानते हैं मगर घूसखोरों को डर बिल्कुल नहीं है। वे छुट्टे घुम रहे हैं। न तो उनकी गिरफ्तारी होती है और न ही उनकी नौकरी ही जाती है। वे मस्ती से काम करते रहते हैं। उनका विभाग उनके साथ है। और हो भी क्यों नहीं, रिश्वतखोरी सबकी राजी मर्जी से जो हो रही है। कुछ मामलों में तो लगेगा कि पूरे कुएं में ही भांग घुल गई है।

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Unlimited Bribe in MP

- न गिरफ्तारी का भय, न जांच होने का खतरा
- सरकार के नियम और एजेंसी की अलिखित सहमति से रिश्वतखोर मस्त

विजय चौधरी, भोपाल.

'सड़क पर एक्सीडेंट का खतरा होता है, तो क्या सड़क पर चलना बंद कर दें?' नि:संदेह आपका जवाब होगा, 'नहीं, यह अतार्किक है।' मगर, मध्यप्रदेश में घूस को काबू करने वाले संगठनों को जवाब होगा, 'हां, सड़क पर नहीं चलना चाहिए।' आपको यह कुछ पहेली जैसा लग रहा होगा, तो आइए इसे सुलझा लेते हैं। दरअसल, प्रदेश में घूसखोरों को गिरफ्तार नहीं किया जाता है। कारण है कि वर्षों पहले घूस के एक आरोपी की हिरासत में मौत हो गई थी।

दरअसल हुआ यों था कि वर्ष 2003 में लोकायुक्त पुलिस की हिरासत में एक वाणिज्यकर अधिकारी की मौत हो गई थी। आरोप लगा कि हिरासत में अधिकारी को प्रताडि़त किया गया। वर्ष 2013 में कोर्ट ने चार पुलिसवालों को दोषी मानकर सजा दी। इसके बाद से ही लोकायुक्त पुलिस अधिकांश मामलों में आरोपियों को मौके पर ही सहमति पत्र लेेकर रिहा कर देती है।

ताज्जुब तो यह है कि भ्रष्टाचार निवारण कानून में घूसखोर को जमानत देने का कायदा ही नहीं है। मगर, CRPC की धारा—41 की व्याख्या के आधार पर गिरफ्तार नहीं किया जाता है। लोकायुक्त पुलिस के एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने सात वर्ष से कम की सजा में मौके पर ही जमानत देने का निर्णय किया है। इसी आधार पर घूसखोर का छोड़ा जा रहा है।

हैरानी : जब चाहा, सीआरपीसी को भूल गए
यह भी हैरान करने वाली बात है कि कुछ घूसखोरों को लोकायुक्त पुलिस ने गिरफ्तार किया है। ऐसे मामलो में सीआरपीसी की धारा को भूल जाते हैं और भ्रष्टाचार निवारण कानून को आधार बनाते हैं। एक अधिकारी ने बताया, 'ये ऐसे घूसखोर हैं, जो या तो जांच में मदद नहीं करते हैं या इनके पास घूस के अथाह खजाने का अंदेशा होता है।'

IMAGE CREDIT: patrika

तुलना : दूसरे राज्यों में तत्काल गिरफ्तारी
राजस्थान, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में रिश्वतखोरों को जमानत नहीं दी जाती है। गिरफ्तारी के बाद उन्हें विशेष कोर्ट में पेश किया जाता है, वहीं से रिमांड, जेल या रिहाई का फैसला होता है।

अनुमति : रिश्वतखोरों को एक खुशी यह भी
इसी माह सरकार ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा 17ए को लागू कर दिया है। इसके बाद तहत भ्रष्ट अधिकारियों, कर्मचारियों पर कार्रवाई के लिए मुख्यमंत्री से लेकर प्रशासनिक विभाग की अनुमति तक अनिवार्य कर दी गई है। भ्रष्टों के लिए यह दोहरी खुशी जैसा है। एक तो वे गिरफ्तार नहीं किए जा रहे और दूसरा जिस विभागाधिकारी की छत्रछाया में वह भ्रष्टाचार कर रहा है, स्वाभाविक रूप से वह कार्रवाई की अनुमति नहीं देगा। ऐसे में वह बचता रहेगा।

प्रावधानों का हो रहा पालन
सीआरपीसी की धारा 41 में गिरफ्तारी से जुड़े प्रावधान तय हैं, सीआरपीसी में तय प्रावधानों के हिसाब से ही लोकायुक्त पुलिस आरोपियों की गिरफ्तारी और जमानत का निर्णय लेती है।
- जस्टिस एनके गुप्ता, लोकायुक्त मध्यप्रदेश